[ हृदयनारायण दीक्षित ]: अव्याख्येय की व्याख्या असंभव। तब शब्द, उदाहरण, प्रतीक और प्रतिमान काम नहीं आते। इतिहास में साधारण से असाधारण हो जाने वाले व्यक्तित्वों की सूची बड़ी है, लेकिन साधारण से सर्वोत्तम साधारण होने का उदाहरण केवल गांधी जी हैं। गांधी विश्व इतिहास की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति हैं। वह गृहस्थ थे। महात्मा थे। वेदांती थे। राजनीतिक कार्यकर्ता थे। आंदोलनकारी थे। सत्याग्रही थे। सत्य प्रयोग के अभ्यासी थे। दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य से टकरा रहे थे। ब्रिटिश सभ्यता और संस्कृति को उसके ही मैदान में ललकार रहे थे। उन्होंने ब्रिटिश संसद को वेश्या कहा। ब्रिटिश सत्ता बौखलाई थी। अब उसी ब्रिटिश संसद परिसर में गांधी जी की मूर्ति है। वह ईश्वरनिष्ठ थे, लेकिन ईश्वर को लेकर जिज्ञासु भी।

गांधी जी को कैसे याद करें

भारतीय संस्कृति के शील आचार के अभ्यासी गांधी भारत के राष्ट्रपिता कहे गए। संयुक्त राष्ट्र ने 2007 में गांधी जयंती को अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया था। इस साल दो दिन बाद उनकी 150वीं जयंती पर भारत और विश्व में विशेष आयोजन हैं। मूलभूत प्रश्न है कि हम भारतीय उन्हें कैसे याद करें? क्या उनके व्यक्तित्व की शल्य परीक्षा करें? क्या उन पर व्याख्यान देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री करें? करें तो क्या करें?

मार्टिन लूथर किंग गांधी के प्रशंसक थे

गांधी विश्व इतिहास का आश्चर्य हैं। विराट व्यक्तित्व के कारण वह भाषा और परिभाषा की पकड़ में नहीं आते। गांधी के जीवन और दर्शन पर तमाम अंतरराष्ट्रीय शोध हुए जो अनवरत जारी हैं। गांधी अफ्रीकी नेता नेल्सन मंडेला की प्रेरणा थे। युगांडा में नील नदी के उद्गम पर गांधी मूर्ति का दर्शन मैंने पांच दिन पूर्व ही किया है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा गांधी के प्रशंसक हैं। मार्टिन लूथर किंग गांधी के प्रशंसक थे। गांधी पुराण पुरुष जैसे हैं। उन्होंने सार्वजनिक जीवन की आकाश स्पर्शी मर्यादा रेखा खींची। कोई दूसरा महान नेता भी त्याग, सादगी और शील की उस मर्यादा तक नहीं पहुंच सका।

ब्रिटिश सत्ता ने गांधी की 'हिंद स्वराज’ पुस्तक पर प्रतिबंध लगाया

उन्होंने 1909 में 'हिंद स्वराज’ लिखी थी। पुस्तक अंतरराष्ट्रीय चर्चा में आई। धम्म पद बौद्धों का आस्था ग्रंथ है। तिब्बती नेता सामदोंग रिपोछे ने इसकी तुलना ‘धम्म पद’ से की। ईसा मसीह का पहाड़ पर दिया गया प्रवचन ‘सरमन ऑन दि माउंट’ कहा जाता है। अमेरिकी विद्वानों ने हिंद स्वराज को ‘सरमन ऑन सी’ कहा था। डरी ब्रिटिश सत्ता ने पुस्तक पर प्रतिबंध लगाया। जन-प्रतिक्रिया के बाद प्रतिबंध हटा। पुस्तक में पश्चिमी सभ्यता और संसद पर भी तीखी टिप्पणियां हैं।

'हिंद स्वराज’ में ‘स्वैच्छिक गरीबी’ की चर्चा है

गांधी सबकी समृद्धि चाहते थे। गरीबी आर्थिक होती है, मानसिक भी होती है। 'हिंद स्वराज’ में ‘स्वैच्छिक गरीबी’ की चर्चा है, ‘जैसे भोगवाद से संयम ब्रह्मचर्य है, वैसे ही उपभोक्तावाद से संयम स्वैच्छिक गरीबी का चयन है।’ यहां गरीबी का अर्थ हिंसक उपभोक्तावाद से बचाव है। भौतिक साधन स्टेटस सिंबल हैं, लेकिन उन्होंने आत्मसंयम को स्टेटस सिंबल बनाया। खादी चरखा और त्याग गांधी समर्थकों के स्टेटस सिंबल बन रहे थे। गांधी जी के ऐसे आग्रह पिछड़ेपन भी कहे गए, लेकिन गांधी गहरे अनुभूतिकर्ता थे। गीत-संगीत जैसी कला विधाएं आधुनिक उपलब्धियां हैं।

गांधी जी पर संगीत का प्रभाव

गांधी जी ने लिखा था, ‘हम पर संगीत का बहुत प्रभाव पड़ता है। वेदों की रचना संगीत के आधार पर हुई जान पड़ती है। मधुर संगीत आंतरिक उद्विग्नता को शांत करता है। संगीत की शुद्ध शिक्षा मिले तो बच्चों का समय बचे।’ क्या यह पिछड़े सत्याग्रही का संगीत प्रेम है? सौंदर्यबोध विरलों को ही होता है। गांधी ने ब्रह्मपुत्र नदी का वर्णन किया, ‘नदी की भव्य शांति मनोहर प्रतीत होती है। बादलों में छुपा चंद्र जल को प्रकाशित कर रहा है, लेकिन मेरा मन अशांत है।’ दुनिया बदलने के इच्छुक व्यक्ति की चित्त अशांति स्वाभाविक है।

गांधी जी लक्ष्य और साधन की पवित्रता के पक्षधर थे

गांधी जी लक्ष्य और साधन दोनों की पवित्रता के पक्षधर थे। लिखा है कि साधन बीज है और साधन प्राप्त किए जाने का माध्यम पेड़ है। बीज और पेड़ के संबंध आत्मीय हैं, वैसे ही साध्य और साधन के संबंध हैं।’ आत्मबल भारतीय सभ्यता का सार है। गांधी जी ने इसे सभ्यता की मस्ती और खुमारी कहा है। यहां भारतीय सभ्यता की गहन समझ का आनंद है। उन्होंने सभ्यताओं की तुलना में लिखा-'हिंदुस्तान की सभ्यता में नीति की मजबूती है, पश्चिमी सभ्यता का झुकाव अनीति को मजबूत करने पर है।’ भारत और भारतीयता गर्व करने लायक है। गांधी जी ने इसके पक्ष में एचएस मेन, विलियम हंटर आदि कई पश्चिमी विद्वानों के उदाहरण भी दिए थे। गांधी जी के विचार और कर्म भारतीय सभ्यता का आधुनिक व्यवहार शास्त्र हैं। आधुनिक उपभोक्तावादी जीवन का संपूर्ण विकल्प भी हैं।

गांधी पंथिक अंधविश्वासी नहीं थे

गांधी पंथिक अंधविश्वासी नहीं थे। उन्होंने 1894 में अपने प्रश्नों की सूची बनाई थी। जैसे ‘आत्मा क्या है? क्या वह कत्र्ता है? क्या उस पर कर्म का प्रभाव होता है? ईश्वर क्या है? क्या जगत्कर्ता है? मोक्ष क्या है? क्या देह में रहते हुए वह जाना जा सकता है? आर्य धर्म क्या है? वेद किसने रचे? क्या अनादि हैं? अनादि का अर्थ क्या है? गीता किसने रची? ईसाइयों के अनुसार बाइबिल ईश्वर प्रेरित है? क्या ईशा ईश्वर के पुत्र थे? क्या अनीति का अंत होगा?’ अंतिम प्रश्न ‘अनीति’ का खात्मा है। शेष प्रश्न वैज्ञानिक जिज्ञासा हैं। वह पूरी जिजीविषा के साथ अनीति से ही टकरा रहे थे। उन्होंने गीता पर किताब लिखी। पुस्तक में प्रकृति पर जोर है, लेकिन उन्होंने इस प्रत्यक्ष ब्रह्म के सामने भी समर्पण नहीं किया। उन्होंने 1916 में अछूत समस्या पर कहा, ‘मैं नहीं मानता कि यह कलंक अनादि काल से चला रहा है है। अस्पृश्यता का शर्मनाक भूत हमारे इतिहास में तब आया होगा जब हम कालगति में पतन की पराकाष्ठा पर थे।’

गांधी जी जीवित होते तो 150 वर्ष के होते

गांधी जी जीवित होते तो 150 वर्ष के होते। तब क्या होता? वह ब्रिटिश संसदीय पद्धति के विरोधी थे। उनका स्वप्न था कि ‘सांसदों को संसद में भलाई के लिए जाना चाहिए। संसद को श्रेष्ठ काम करने चाहिए।’ वह शिक्षा को श्रेष्ठ मनुष्य बनाने का उपकरण मानते थे। ऐसा प्राय: नहीं हुआ। कुछ विवेचक उनकी असफलताओं का उल्लेख करते हैं। वह खिलाफत आंदोलन में शामिल हुए। यह निर्णय गलत था। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह स्वाधीनता आंदोलन में मुसलमानों का सहयोग चाहते थे। मई 1947 में अरुणा आसफ अली ने उनसे पूछा, ‘क्या पाकिस्तान का कोई विकल्प है? गांधी जी ने कहा कि इसका विकल्प अखंड भारत ही है।’

गांधी किसी पद के अभिलाषी नहीं थे

भारत बंटा, पाकिस्तान अब आतंकी छावनी है, लेकिन इसके दोषी गांधी नहीं, तत्कालीन नेतृत्व ही है। यही नेतृत्व भारत को अंग्रेजों द्वारा बनाया राष्ट्र मानता था। गांधी ने लिखा, ‘यह धारणा अंग्रेजों की है। भारत अंग्रेजी राज के पहले भी राष्ट्र था।’ गांधी ने लोकमत के लिए इंडियन ओपिनियन, हरिजन जैसे तमाम अखबार निकाले। गांधी का व्यक्तित्व आकाशस्पर्शी है। गांधी किसी पद के अभिलाषी नहीं थे। नाना रूप। विविध आयाम। कैसे करें उनका स्मरण? पूरे जीवन नहीं तो क्या एक माह भी हम गांधी जैसे जी सकते हैं? इसी प्रश्न का उत्तर गांधी जयंती पर उनका सही स्मरण है।

( लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं )