देवेंद्रराज सुथार। Tamper With Nature: हम यह भूलते जा रहे हैं कि भौतिकवाद की जिस दुनिया में रहते हैं यह हमें पर्यावरण की दोहरी कीमत पर हासिल हुई है। जंगलों का अंधाधुंध तरीके से दोहन व पर्यावरण के विरुद्ध आधुनिक जीवनशैली अपनाने की हठधर्मिता ने पृथ्वी को रेट अलर्ट के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। पर्यावरण मानव के जीवन का अभिन्न अंग हैं। मानव जीवन को विकसित करने में पर्यावरण की भूमिका एक निर्माणकारी तत्व की है।

पर्यावरण और प्रकृति का शुद्ध रूप विकृत

यदि पर्यावरण नहीं होता तो मानव जीवन ही नहीं, अपितु पादप व प्राणी जीव के जीवन की कल्पना करना भी दूभर था। संतुलित व मानव अनुकूल पर्यावरण ने अपने आंचल में प्रत्येक प्राणी को जीवन व्यतीत करने के लिए वे समस्त संसाधन उपलब्ध कराए जो जीवन जीने के लिए अनिवार्य होते हैं। लेकिन मानवीय जीवन में हुई विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की प्रगति व तकनीकी घुसपैठ ने, न केवल मानवीय जीवन की दिशा को परिवर्तित कर दिया, अपितु पर्यावरण और प्रकृति का शुद्ध-सात्विक रूप भी काफी हद तक विकृत कर दिया।

पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रमों के नियमों की अनुपालन

पर्यावरण समस्या की यह स्थिति इतनी जटिल होती जा रही है कि वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय संस्थाओं द्वारा आयोजित कराए गए पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रमों में बनाई गई योजनाओं व नियमों की अनुपालन भी सही ढंग से नहीं हो पा रही हैं। भले वह स्टॉकहोम सम्मेलन हो या रियो का पृथ्वी सम्मेलन, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल हो या क्योटो प्रोटोकॉल, सभी में विकृत होते पर्यावरण व प्रकृति को लेकर कई योजनाएं बनी और कई कार्यक्रम संचालित करने का निर्णय हुआ, पर जमीनी धरातल पर इन सारी योजनाओं और कार्यक्रमों का अब तक उचित क्रियान्वयन नहीं होने के कारण पर्यावरण संरक्षण की कवायद अंजाम तक नहीं पहुंच सकीं।

धरती को माता का दर्जा

कहने को तो हमारे ग्रंथों व पुराणों में ‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या’ अर्थात धरती को माता का दर्जा दिया गया है और उसके प्रति सारे मनुष्यों को पुत्र (संतान) के जैसा आचरण करने की बात बताई गई है। लेकिन इसके विपरीत आज के मनुष्य का आचरण तो कदापि धरती के प्रति मां के समरूप दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है।  वस्तुत: पॉलिथीन के बढ़ते प्रयोग और हानिकारक रासायनिक तत्वों के उपयोग के कारण आज धरती अपनी उर्वरक क्षमता खोकर कैंसर की बीमारी से जूझ रही है। असंतुलित होते पर्यावरण के कारण आज न केवल मनुष्य के जीवन पर आपदाएं आ रही हैं, बल्कि कई पशु-पक्षियों की प्रजातियां सदैव के लिए लुप्तप्राय-सी होती जा रही हैं। इधर धरती का तापमान प्रत्येक वर्ष बढ़ रहा है।

अंधाधुंध प्रकृति से छेड़छाड़ 

यदि अब भी हम सचेत नहीं हुए तो वह समय दूर नहीं जब हमें सांसें भी खरीदने पड़ेगी। पर्यावरण के संकेत को समझकर इसकी हत्या बंद कर देने में ही हमारी भलाई हैं। क्योंकि जो पर्यावरण जीवन को विकसित करने में सहायक सिद्ध हो सकता हैं वह समय आने पर विनाश का तांडव भी कर सकता है। सही मूल्यांकन किए बिना अंधाधुंध प्रकृति से छेड़छाड़ करते रहे और उसकी सीमाओं का उल्लंघन करते रहे तो कुछ भी हाथ नहीं आएगा। साथ ही आमजन में पर्यावरण शिक्षा एवं अवबोध को लेकर जागरूकता लाई जाए।

पर्यावरण प्रदूषण का प्रमुख कारण जनसंख्या में वृद्धि 

प्रकृति के पारंपरिक ऊर्जा के स्नोत (गैस, तेल और कोयला) के सीमित उपयोग के साथ ही यथासंभव उनके स्थान पर उर्जा के गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत (सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, बायोगैस और परमाणु ऊर्जा) के उपयोग को लेकर ध्यान आकर्षित किया जाए। पर्यावरण प्रदूषण का प्रमुख कारण जनसंख्या में वृद्धि होना भी है। इस बढ़ती जनसंख्या के लिए जीवन की सामान्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की दृष्टि से वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान का उपयोग करते हुए संसाधनों का तीव्र गति से अंधाधुंध दोहन किया जा रहा हैं। इसीलिए जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में कदम उठाने की आज महती आवश्यकता है। हमें सर्व सहभागिता के साथ पर्यावरण संरक्षण को लेकर सच्चे मन से प्रयास करने ही होंगे। हम प्रकृति और पर्यावरण के लिए हर उस काम से परहेज करें जिससे उसे हानि का सामना करना पड़े। व्यापक पैमाने पर पौधरोपण करने हेतु अभियान चलाने जैसी मुहिम इस दिशा में सार्थक पहल होगी।