[ योगेंद्र शर्मा ]: 16 अप्रैल, 1853 को देश की पहली यात्री ट्रेन मुंबई से ठाणे के बीच चली थी। इस ट्रेन ने 14 कोच में 400 यात्री लेकर 34 किमी का सफर किया था। तब से अब तक भारतीय रेलवे विविध परिचालन, र्आिथक एवं तकनीकी सुधार कर चुका है। वर्तमान में भारतीय रेलवे विश्व में चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क एवं देश की लाइफलाइन बन चुका है। भारतीय रेलवे विश्व में सर्वाधिक कर्मचारियों वाला विभाग भी है। 1990 के दशक में रेलवे ने अर्थव्यवस्था का उदारीकरण करना शुरू किया था। इसके लिए कई सेवाओं में निजीकरण करने के छोटे-छोटे कदम उठाए गए, जैसे स्टेशनों पर कैटरिंग सेवा, ट्रेन में खाना पहुंचाने की सुविधा, सफाई व्यवस्था। 2006 में रेलवे ने कंटेनर ट्रेन के संचालन के लिए निजी ऑपरेटर्स के लिए रास्ते खोले। इसी समय गैर सरकारी रेलवे लाइन बनाने में निजी निवेश को अनुमति दी गई।

राज्य सरकारों ने रेल नेटवर्क के विस्तार के लिए निजी निवेश को दी हरी झंडी 

राज्य सरकारों एवं पब्लिक सेक्टर ने रेल नेटवर्क के विस्तार के लिए निजी निवेश को हरी झंडी दी, ताकि आखिरी व्यक्ति तक रेल सेवा पहुंचाई जा सके। यात्री ट्रेन के निजीकरण की शुरुआत 2018 में की गई, जब रेलवे ने आइआरसीटीसी को यात्री ट्रेन चलाने की अनुमति दे दी। नई दिल्ली-लखनऊ रेलमार्ग पर चलने वाली इस ट्रेन को तेजस के नाम से जाना जाता है। 2019-20 इस लिहाज से काफी अहम साबित हुआ कि इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विस के जरिये लंबे अरसे से रुकी पड़ी आठ श्रेणियों की री-स्ट्रक्चरिंग की गई और आरएफक्यू (रिक्वेस्ट फॉर क्वॉलिफिकेशन) के जरिये निजी यात्री ट्रेन चलाने की अनुमति प्रदान की गई। अब 109 मार्ग प्राइवेट ट्रेनों के लिए खोले गए हैं, जिनमें 16 कोच की 151 ट्रेनें चलाई जा सकती हैं।

निजी ट्रेन का संचालन अप्रैल 2023 से शुरू होगा

माना जा रहा है कि निजी ट्रेन का संचालन अप्रैल 2023 से शुरू होगा। यह समय निजी ऑपरेटर्स को रोलिंग स्टॉक की व्यवस्था करने एवं बिजनेस प्लान बनाने के लिए दिया गया है। निजी निवेशकों के नजरिये से प्राइवेट ट्रेन चलाने के लिए अनुमानित 30 हजार करोड़ रुपये की लागत चाहिए होगी। यह प्रमुख रूप से रोलिंग स्टॉक के डिजाइन, उत्पादन तथा खरीद, यात्री कोच एवं लोकोमोटिव (इंजन) खरीद के लिए होगी। यह भी ध्यान रखना होगा कि ट्रेन को 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से एक बार में चार हजार किमी तक चलाना होगा। ट्रेन 40 हजार किमी बिना किसी बड़े मेंटेनेंस के चलनी चाहिए। जाहिर है इसके लिए निवेश भी बहुत बड़ा करना होगा।

बोली लगाने वाले को ट्रेन के टर्मिनल पर रोलिंग स्टॉक मेंटेनेंस की सुविधा विकसित करनी होगी

आरएफक्यू यह भी कहता है कि बोली लगाने वाले को ट्रेन के टर्मिनल पर रोलिंग स्टॉक मेंटेनेंस की सुविधा विकसित करनी होगी। जब कई ऑपरेटर एक ही रूट पसंद करेंगे तो यह चुनौतीपूर्ण कार्य हो जाएगा। इस सुविधा के लिए कुशल मैनपावर की आवश्यकता होगी। जमीन की समस्या को देखते हुए यह कार्य मुश्किल भी हो सकता है। हालांकि आरएफक्यू में यह नियम है कि रेलवे टर्मिनल के पास पिट लाइन उपलब्ध कराएगा, पर निजी ऑपरेटर को मशीनरी तथा मैनपावर वहीं ले जानी होगी, क्योंकि हर 30 दिन बाद ट्रेन सेट एवं लोकोमोटिव का मेंटेनेंस होगा। भारी मशीन एवं स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर के बीच यह कार्य कैसे होगा, इसका मॉडल भी देखने लायक होगा। आइआरसीटीसी के उदाहरण को ही देखिए। निजी कैटरर से अलग-अलग बेस किचन बनाकर शताब्दी/राजधानी जैसी ट्रेन में खाना उपलब्ध कराने को कहा गया, पर हुआ क्या? अधिकांश कैटरर ने शिफ्ट के अनुसार खाना बनवाना शुरू कर दिया, जो खाने की शुद्धता के हिसाब से ठीक नहीं था। आइआरसीटीसी के लिए यह एक सबक था, इसलिए उसके द्वारा थर्ड पार्टी को मेगा बेस किचन बनाकर सिर्फ ट्रेन में खाना देने को कहा गया। ऐसे में थर्ड पार्टी द्वारा संचालित रोलिंग स्टॉक मेंटेनेंस कार्य के निरीक्षण की भी आवश्यकता होगी। अलग तरह के ट्रेन सेट के स्टॉक रखना भी बड़ी चुनौती होगी।

निजी ऑपरेटर को बोली कुल राजस्व के आधार पर डालनी होगी विद्य

अब आते हैं वाणिज्यिक पहलू पर। आरएफक्यू के अनुसार निजी ऑपरेटर को बोली कुल राजस्व के आधार पर डालनी होगी, जिसमें टिकट दर, प्रीमियम सीट, वाइ-फाइ, पठनीय सामग्री, मनोरंजन, कैटरिंग आदि शुल्क शामिल होंगे। रेलवे इन निजी ऑपरेटर से टीएसी (ट्रैक एक्सेस चार्ज) भी ले सकता है, जिसमें रूट पर ट्रेन चलाना, स्टेशन का उपयोग, क्रू एवं गार्ड की उपलब्धता शामिल होगी। इसके अलावा ऑपरेटर को बिजली उपयोग का चार्ज भी रेलवे को देना होगा, जो रेलवे द्वारा विद्युतीकृत मार्ग से ली जाएगी। टीएसी रेलवे के लिए इस प्रयोग की सफलता की चाबी होगी।

रेलवे को सही टीएसी लगाने की योजना बनानी होगी

रेलवे को सही टीएसी लगाने की योजना बनानी होगी, तभी वह अपनी लागत की रिकवरी कर सकेगा। रेलवे के लिए ट्रेन चलवाने की सही लागत का आकलन करना भी मुश्किल होगा। प्राइवेट ट्रेन को माल ढुलाई में सब्सिडी मिलेगी, ताकि यात्री किराए को कम रखा जा सके। अगर हम दुनिया भर में टीएसी फिक्स करने का मॉडल देखें तो रेलवे को इसके लिए पारदर्शी योजना बनानी होगी। ब्रिटिश रेल के निजीकरण को भी देखना होगा, जो फेल साबित हुआ था।

निजी ट्रेन का अप्रैल 2023 में शुरू होना एक चुनौती है

निजी ट्रेन का अप्रैल 2023 में शुरू होना भी एक चुनौती है। इच्छुक कंपनियों से उनका जवाब 8 सितंबर, 2020 तक जमा करने को कहा गया है। 60 दिन के अंदर रेल मंत्रालय कंपनी शॉर्ट लिस्ट करेगा। जो जगह बनाने में सफल रहेंगे, उनके पास पूरी तैयारी के लिए 24 महीने ही शेष रहेंगे। 2006 में शुरू हुई कंटेनर ट्रेन का उदाहरण देखें, जिसमें 16 निजी ऑपरेटर्स को लाइसेंस मिला था, पर अभी तक कई ऑपरेटर पहले चरण की र्सिवस भी शुरू नहीं कर सके हैं तो कई भारी परिचालन हानि के चलते ऑपरेशन बंद कर चुके हैं।

यदि रेलवे को प्राइवेट ट्रेन के मॉडल को सफल बनाना है तो उसे पारदर्शी नीतियों के साथ बिजनेस प्लान के तहत कार्य करना होगा। निवेशक एवं ऑपरेटर, दोनों के लिए ऐसी स्थिति बनानी होगी, ताकि अपने प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा सकें।

( लेखक सेवानिवृत्त रेलवे अधिकारी हैं )