शराब किसी की बर्बादी का कारण है तो सरकारों की तिजोरी भरने का जरिया भी
पिछले तीन महीने में 2400 करोड़ रुपये से अधिक के घाटे एवं राजस्व वसूली ठप होने से सरकार ने सबसे पहले शराब की दुकानों में ही कमाई का आसरा तलाशा है।
भोपाल [ संजय मिश्र ]। शराब की आलोचना तो सभी करते हैं, लेकिन उसका मोह भी नहीं छोड़ना चाहते। यही कारण है कि शराब किसी की बर्बादी का कारण है तो सरकारों की तिजोरी भरने का जरिया भी। न इसे पीने वाले छोड़ पा रहे और न पिलाने वाली सरकार त्यागने का साहस कर पा रही है।
मध्य प्रदेश में ऐसी ही स्थिति है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उन विरले नेताओं में हैं, जिन्होंने कई बार शराब की बिक्री और उसके प्रसार के खिलाफ आवाज उठाई। पिछले कार्यकाल में उन्होंने शराब की एक भी नई दुकान नहीं खुलने दी थी। नर्मदा तट के दोनों ओर पांच किलोमीटर के दायरे में दुकानें और अहाते बंद करने का निर्णय उनके कार्यकाल में ही लिए गए थे। नर्मदा सेवा यात्रा हो या फिर अन्य मंच, उन्होंने बेझिझक एलान किया था कि देश में धीरे-धीरे शराब की दुकानें कम की जाएंगी।
आज शिवराज के इस अडिग संकल्प को परिस्थितियों ने डिगा दिया है। शिवराज वही हैं, लेकिन राज्य की खराब वित्तीय हालत ने शराब को फलने-फूलने का पूरा मैदान दे दिया है। पिछले तीन महीने में 2,400 करोड़ रुपये से अधिक के घाटे एवं राजस्व वसूली ठप होने से सरकार ने सबसे पहले शराब की दुकानों में ही कमाई का आसरा तलाशा है, लेकिन इसमें कई दुश्वारियां सामने आ रही हैं। सरकार दुकानें खोलने का हुक्म दे रही है, लेकिन ठेकेदार दुकानें नहीं खोलकर टैक्स में कटौती का दबाव बना रहे हैं।
राज्य में शराब कारोबारियों एवं सरकार के बीच लुकाछिपी का खेल चल रहा है। यह भी सच है कि भाजपा से पूर्व की सरकारों में शिथिल शराब कारोबार कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में तेजी से फला-फूला। पहली बार उप दुकानें खोलने की इजाजत भी दी गई। कांग्रेस सरकार की मंशा थी कि शराब की कमाई से खजाना भरना चाहिए। पेट्रोल डीजल के अलावा शराब ही उसे सुरक्षित आय का एकमात्र जरिया लगा। इसी कारण आबकारी नीति 2019-20 में ठेके 20 फीसद बढ़ाकर नीलाम किए गए।
देसी शराब की दुकान का ठेका नहीं होने पर अंग्रेजी शराब बेचने की अनुमति देने का प्रावधान भी रखा गया। तब विपक्ष में रहे शिवराज सिंह चौहान ने इसका तीखा विरोध किया था। उन्होंने तीन ट्वीट करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ से आग्रह किया था कि ऐसा अनर्थकारी कदम न उठाएं। उप-दुकानें खोलने का फार्मूला
ऐसे ही विरोध के चलते क्रियान्वित नहीं हो सका। सरकार की मंशा 13 हजार करोड़ रुपये का राजस्व आबकारी से प्राप्त करने का था, लेकिन देशव्यापी आर्थिक सुस्ती के कारण जब लक्ष्य पूरा होना मुश्किल हो गया, तो इसे घटा दिया गया।
कमल नाथ की ही सरकार में वर्ष 2020-21 की आबकारी नीति बनाई गई, जिसमें ठेके 25 प्रतिशत अधिक दर पर दिए गए। लक्ष्य साफ था कि 15 हजार करोड़ रुपये की आय आबकारी से होनी चाहिए। इसमें करीब साढ़े 11 हजार करोड़ रुपये 3,605 दुकानों से और शेष बार, होटल, रेस्टोरेंट सहित अन्य लाइसेंस के मार्फत जुटाने की रणनीति थी। कोरोना संकट के बीच अचानक सत्ता परिवर्तन हुआ और फिर शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन गए।
उन्हें लॉकडाउन के कारण शराब की दुकानें बंद करनी पड़ीं। जाहिर है कि दुकानें बंद होने से ठेकेदार और सरकार दोनों को नुकसान हो रहा था। इस बीच मार्च और अप्रैल माह में ही सरकार को करीब 1,800 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ। मई माह में करीब छह सौ करोड़ रुपये की आय कम हुई। लॉकडाउन के दौरान सुस्त हो चुकी आर्थिक गतिविधियों का पहिया तेजी से घुमाने के लिए धन की दरकार थी, इसलिए शिवराज सरकार ने भी सावधानी के साथ प्रदेश ने शराब की दुकानें खोलने की इजाजत दे दी।
ऐसा पहली बार हुआ कि सरकार के कहने के बाद भी ठेकेदार दुकानें खोलने के लिए राजी नहीं हुए। दरअसल शराब के ठेकेदार लॉकडाउन में दुकानें बंद होने से हुए नुकसान की भरपाई चाहते हैं। उन्होंने सरकार के सामने खपत के आधार पर एक्साइज ड्यूटी लेने और ठेका राशि 25 प्रतिशत कम करने की मुख्य मांग रख दी। यह मांग मानी जाती तो सरकार को दो से तीन हजार करोड़ रुपये के राजस्व से हाथ धोना पड़ता। इसलिए
सरकार ने दूसरे विकल्पों पर विचार करना शुरू किया। उसने दुकानें सुबह सात से शाम सात बजे तक खोलने की अनुमति दे दी। फौरी राहत पाकर कुछ शहरों में दुकानें तो खुल गईं, लेकिन राहत पैकेज पर मामला अटक गया। कारोबारियों ने दुकानों पर तालाबंदी की घोषणा कर दी। सरकार और ठेकेदार पहली बार खुलकर आमने- सामने आ गए। चूंकि बात राजस्व से जुड़ी है, इसलिए बीच का रास्ता निकालते हुए सरकार ने ऑफर दिया कि लॉकडाउन अवधि का वार्षिक शुल्क कम कर दिया जाएगा और ठेका अवधि 31 मार्च से बढ़ाकर 31 मई 2021 कर दी जाएगी।
उम्मीद थी कि इससे बात बन जाएगी, लेकिन ठेकेदारों की उम्मीदें अधिक हैं। उनका तर्क है कि लॉकडाउन में शराब की खपत आधी से भी कम रह गई है, जब लोग खरीदेंगे नहीं तो फिर राजस्व आएगा कहां से। सरकार की समस्या यह है कि वह चाहकर भी आर्थिक संकट काल में शराब दुकानों को ज्यादा समय बंद रखने का जोखिम नहीं उठा सकती है। इसमें एक खतरा यह भी है कि दुकानें बंद रहेंगी तो कालाबाजारी होगी और शराब माफिया तो
चांदी काटेगा और सरकार को राजस्व से वंचित रहना होगा। ऐसे में सरकार के हाथ सिवाय बदनामी के कुछ नहीं आएगा। (संपादक, नवदुनिया)