[ जगमोहन सिंह राजपूत ]: राम जन्मभूमि पर अंतिम निर्णय के आने की प्रतीक्षा पीढ़ियों ने की है। संभव है कि चंद दिनों में निर्णायक फैसला आ जाएगा। अदालत से इतर भी अनेक बार आरंभ किए गए मध्यस्थता के प्रयास कई कारणों से सफल नहीं हो सके। यदि ये सफल हो जाते तो भारत में भाईचारा और सौहार्द बढ़ जाता। न्यायालय के निर्णय के बाद भी इसकी अपेक्षा तो है, मगर संभावना उतनी प्रबल दिखाई नहीं देती।

विश्व के लिए एक अनुकरणीय मिसाल बन जाता यदि- - -

न्यायालय के बाहर हुआ निर्णय विश्व के लिए एक अनुकरणीय मिसाल बन जाता। देश की प्रतिष्ठा बढ़ती और लोग भारत की विविधता में एकता और पंथिक सर्वस्वीकार्यता की न केवल सराहना करते, बल्कि उसकाअनुसरण करने का प्रयास भी करते। आज भी पश्चिम के देश भारत से बहुत कुछ सीखने की इच्छा रखते हैं। भारत अनेक प्रकार से विश्व शांति के प्रयासों में अग्रणी है। उसे जो सम्मान विश्वस्तर पर मिलता है उसके मुख्य कारण प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता के वे सार्वभौमिक मूल्य और आदर्श हैं जो मानव मात्र की एकता को कई हजार वर्ष पहले ही समझ चुके थे। साथ ही यह स्वीकार कर चुके थे कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सोच और चिंतन के अनुसार किसी भी पद्धति से पूजा-आराधना करने का अधिकार होना चाहिए। इस देश की प्राचीन संस्कृति में किसी भी प्रकार के धर्म-परिवर्तन का प्राविधान ही नहीं था।

अन्य धर्मों के मानने वालों को मिला भरपूर सहयोग

यह बहुधा भुला दिया जाता है कि यह भारत की प्राचीन संस्कृति और आध्यात्मिक समझ का ही परिणाम था कि यहां के समाज ने अन्य धर्मों के मानने वालों के यहां आने और बस जाने पर कोई आपत्ति नहीं की, कोई आशंका व्यक्त नहीं की, उन्हें हर प्रकार से अपने पूजास्थल निर्मित करने में भरपूर सहयोग दिया! स्पष्ट रूप से भावना तो एक ही थी-आप अपने मत/पंथ/धर्म में श्रेष्ठ बनें, हम अपने में वही प्रयास करें। मानवीय मूल्यों और जीवन-यापन के लिए आवश्यक प्रयासों में इससे कोई व्यवधान नहीं पड़ेगा। ऐसी कोई भी व्यवस्था आपसी विश्वास पर ही आधारित होकर चल सकती है।

धर्म परिवर्तन के प्रयास में पूजास्थलों को नष्ट किया जाने लगा

जब से इस देश में धर्म परिवर्तन के प्रयास जोर-जबर्दस्ती, बहला-फुसलाकर या लालच देकर प्रारंभ हुए, पूजास्थलों को नष्ट किया जाने लगा तो यह सामुदायिक विश्वास कमजोर पड़ता गया। बाहर से आए लुटेरों, आक्रांताओं और शासकों ने आपसी भाईचारे को तोड़ने के हरसंभव कुत्सित प्रयास किए और वे सफल भी रहे। देश तो बंटा ही, लोगों का आपसी विश्वास और भाईचारा भी कमजोर होता गया।

राजनेताओं ने वोट पाने के लिए सांप्रदायिकता का किया दुरुपयोग

परिणामस्वरूप अयोध्या प्रकरण पर देश को काफी कुछ खोना पड़ा है! ऐसा तब हुआ है जब इस प्रकार की हर समस्या को सुलझाने के सारे गुर हम जानते हैं, न सुलझाने के दुष्परिणाम भी जानते हैं, मगर सही राह जानकर भी उस पर चलने का साहस नहीं कर सके। न सरकारें कर पाईं, न समाज और समुदाय आगे आए! इसका मुख्य कारण भारत में पंथ-निरपेक्षता की सामाजिक परंपरागत स्वीकृति का राजनीतिकरण तथा उसे विकृत करना ही रहा है। सेक्युलरिज्म के नाम पर विभिन्न पंथों/धर्मों की उपस्थिति को नकाराने का ढोंग करना सर्वविदित है! आज देश में ऐसा कोई नहीं है जो यह स्वीकार न करता हो कि राजनेताओं ने वोट पाने के लिए सांप्रदायिकता का भरपूर दुरुपयोग किया, छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए देश में सामाजिक सद्भाव और पंथिक भाईचारे पर लगातार चोट करने में कोई हिचक नहीं दिखाई।

राष्ट्रपति ने कहा- भारतीय समुदाय अपनी सभ्यता और संस्कृति से अन्य को परिचित कराएं

सुधार की संभावनाएं कभी भी तिरोहित नहीं होती हैं। पिछले दिनों राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने फिलीपींस में गांधी जी की प्रतिमा के अनावरण के दौरान भारतीय समुदाय से कहा कि वे अपनी ज्ञान-परंपरा, सभ्यता और संस्कृति से अन्य को परिचित कराएं, क्योंकि ऐसा करना सभी के सम्मानपूर्ण, आनंदपूर्ण, शांतिपूर्ण जीवन के लिए आवश्यक है। भारत का रास्ता ही शांति से रह सकने वाले विश्व का मार्ग बनेगा। राष्ट्रपति का यह कथन हम सबके लिए दिशा-निर्देश बन जाना चाहिए। इसे वैश्विक पटल पर उभारने का उत्तरदायित्व भारत पर है।

देश की पुन: विश्वगुरु बनने की अभिलाषा!

इसी से जनित होती है हमारी पुन: विश्वगुरु बनने की अभिलाषा! जो हम कभी थे, जब हमारे नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला विश्वभर के ज्ञानार्थियों के श्रद्धा-साधना केंद्र थे! अनेक व्यवधान आए, संस्थान नष्ट किए गए, पुस्तकालय जलाए गए, मगर ज्ञानार्जन की ललक और परंपरा अपने पथ से डिगी नहीं। हमें शिक्षा व्यवस्था में प्राचीन भारत की सर्वग्राही संस्कृति को समाहित करना होगा। बदली हुई परिस्थितियों में हर समुदाय को अन्य का भावनात्मक स्तर पर सम्मान करना सीखना होगा। उस चिंतन और वैचारिकी को समझना और स्वीकार करना ही हमारा पथ प्रदर्शक बनेगा, जिसके कारण भारत ने हर संस्कृति और मत/पंथ को अपने यहां जगह देने में कोई कोताही नहीं की।

शांति और सौहार्द स्थापित करने के लिए व्यक्ति को प्रयत्नशील रहना होगा

गांधी जी ने 1946 में कहा था कि विश्व शांति से तभी रह सकेगा जब वहां रहने वाला हर व्यक्ति अपना मानस उसके लिए तैयार कर ले। यूनेस्को का सूत्र वाक्य भी यही कहता है कि चूंकि युद्ध मनुष्य के मस्तिष्क में उत्पन्न होते हैं अत: शांति की संरचना भी वहीं होनी चाहिए। शांति और सौहार्द स्थापित करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को लगातार प्रयत्नशील रहना होगा, समुदायों में सार्थक संवाद की निरंतरता स्थापित करनी होगी। प्रत्येक बच्चे के मानस को विविधता की सुंदरता को पहचानने के लिए प्रेरित किया जाए तो उसकी मूलभूत एकता को वह समय के साथ अपनी क्षमता से स्वयं पहचान लेगा।

मासूम बच्चों को धर्म के नाम पर बरगलाना जघन्य अपराध

कितन जघन्य अपराध है मासूम बच्चों को धर्म के नाम पर बरगलाना! अत: हर बच्चे को उसके परिवार के धर्म की तथा उसके साथियों के धर्म की सही जानकारी मिलनी ही चाहिए। भारत में सबसे पहले शिक्षा व्यवस्था अपने उत्तरदायित्व के रूप में यह स्वीकार करे कि हर बच्चे को हर पंथ या मजहब (प्रचलित शब्द धर्म) के मूल सिद्धांतों से परिचित करना उसका उत्तरदायित्व है। यह समझ भी बढ़े कि ऐसा करना पंथ-निरपेक्षता को बढ़ावा देगा, न कि उसे हानि पहुंचाएगा।

कोई भी धर्म सत्य, अहिंसा को अस्वीकार नहीं करता

बच्चे सभी में निहित मूल दर्शन और समानताओं को जानें, जहां-जहां अंतर है उनका आदर करना सीखें। स्कूल उन्हें कर्मकांड या पूजा पद्धतियों से परिचित नहीं कराएंगे, केवल मूल दर्शन तथा समानताओं से परिचित कराएंगे। बच्चे स्वत: ही पाएंगे कि समानताएं उन्हें जोड़ती हैं! ऐसा कौन-सा धर्म या पंथ है जो सत्य, अहिंसा, शांति, सदाचरण और प्रेम-भाईचारे को अस्वीकार करता है? यह समझ ही विश्व में पंथिक सद्भावना की राह प्रशस्त कर सकेगी।

( लेखक एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक हैैं )