डॉ. मोनिका शर्मा। प्राकृतिक आपदाएं प्रकृति की मुखरता का माध्यम मानी जाती रही हैं। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को लेकर इंसानी गतिविधियों के खिलाफ कुदरत द्वारा विरोध का जताने का जरिया कही जाती रही हैं। वैसे विपदा से भी कोई न कोई सकारात्मक पहलू जुड़ा होता है। इन दिनों पूरी दुनिया में एक ठहराव आ गया है। लेकिन इंसानों के इस ठहराव ने प्रकृति के ठहरे हुए जीवन को गति दी है। कुदरत के खूबसूरत रंगों से हमें फिर रूबरू करवाया है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक गंगा नदी का जल स्वच्छ होने लगा है। जानकार गंगा के जल में प्रदूषण में 50 फीसद तक सुधार होने का दावा कर रहे हैं। राजधानी दिल्ली में यमुना नदी में गंदगी के कारण फैले रहने वाले सफेद झाग की जगह अब पानी स्वच्छ दिख रहा है। आसमान से छंटे धुएं के गुबार के चलते पंजाब के जालंधर से हिमालय की बर्फीली चोटियां नजर आने लगी हैं। यह सब बरसों बाद देखने में आ रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि देश के करीब एक सौ शहरों में पिछले कुछ दिनों में न्यूनतम वायु प्रदूषण दर्ज किया गया है।

दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार राजधानी दिल्ली में इन दिनों एयर क्वालिटी इंडेक्स पिछले छह वर्षो के सबसे बेहतर स्तर पर है। जल और वायु ही नहीं, परिवेश में ध्वनि प्रदूषण भी कम हुआ है। लॉकडाउन में रुकी औद्योगिक गतिविधियों और यातायात में कमी आने के कारण दुनिया भर में पर्यावरण की सेहत सुधर रही है। यहां तक कि बरसों से चिंता का विषय रहा ओजोन परत का छेद भी भर रहा है।

हमें इस बात को समझना होगा कि यह धरती सबकी है। लॉकडाउन में सामने आईं कुछ तस्वीरें यह भी बता रही हैं। दुनिया के कई देशों में नहरों, तालाबों और समुद्री तटों पर इंसानी गतिविधियां कम होने से कहीं डॉल्फिन मछलियां और हंसों के जोड़े लौट आए हैं तो कहीं सड़कों पर जंगली जानवर घूम रहे हैं।

हमारे यहां भी देश के हर हिस्से से ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं जो आपदा के दौर में भी इंसानों को मुस्कुराहट की सौगात दे रही हैं। शहरों में शांत परिवेश में हिरण और नीलगाय जैसे जानवर घूम रहे हैं। राजधानी दिल्ली में जहां सड़कों पर केवल वाहन दिखते थे, वहां कई इलाकों में मोर और इस तरह के कई अन्य पक्षी घूमते-फिरते नजर आ रहे हैं।

असल में देखा जाए तो कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के सन्नाटे में प्रकृति का सार्थक संदेश भी गूंज रहा है। आपदा के इस दौर में पीड़ा को जीते हुए इस सकारात्मक संदेश पर गौर करना जरूरी भी है, क्योंकि कुदरत के ऐसे पाठ भविष्य की रूपरेखा बनाने में मददगार साबित होते हैं। लॉकडाउन का यह समय आमजन को यह संदेश भी दे रहा है कि थोड़ा सा ठहराव व्यक्तिगत जिंदगी को सुकून और पर्यावरण को स्वच्छता की सौगात दे सकता है। ग्लोबल वॉर्मिग जैसी समस्या से निजात दिला सकता है।

धरती का बढ़ता तापमान ही नहीं बाढ़, सूखा और भूकंप जैसी आपदाओं को भी रोक सकता है। बिगड़ी जीवनशैली और खानपान के चलते दस्तक दे रही कई दूसरी बीमारियों पर काबू पाया जा सकता है। संसाधनों का सीमित इस्तेमाल करते हुए भी जीवन जीया जा सकता है। यह वैश्विक आपदा दुनिया के हर देश को प्रभावी रूप से सहज और संयमित जीवनशैली अपनाने की सीख दे रही है।

हालांकि आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक मोर्चे पर इंसान बहुत लंबे समय तक ऐसे ठहराव को नहीं जी सकता, पर यह विपदा जीवन के हर मोर्चे पर चल रही गैर-जरूरी आपाधापी को रोकने की सीख तो देती ही है। साथ ही यह सबक भी लिए है कि प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के बजाय संतुलित विकास और समन्वयकारी सोच, पर्यावरण ही नहीं स्वयं मनुष्य का जीवन भी खतरे में पड़ने से बचा सकती है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)