[अभिषेक कुमार सिंह]। Coronavirus:  समस्त ब्रह्मांड में अब तक अगर कहीं जीवन पूरी ताकत से फल-फूल रहा है तो वह हमारी धरती यानी पृथ्वी ही है। सदियां बीत गईं जब इस ग्रह पर जिंदगी की शुरुआत हुई थी। इस दौरान सभ्यता ने कई खतरे भी झेले, लेकिन हर मुसीबत के बाद भी इस ग्रह पर जीवन बचा रहा, पर अब सवाल है कि क्या हमारी पृथ्वी पर जीवन हमेशा इसी तरह धड़कता रहेगा? आज के दौर में यह एक मुश्किल सवाल है, क्योंकि इसके जवाब आशंकित करने और डराने वाले हैं।

फिलहाल ऐसा एक संकट दुनिया के समक्ष कोविड-19 यानी कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न स्थितियों में पैदा हुआ है। इस वायरस के खौफ ने जहां एक ओर इटली समेत दुनिया के कई मुल्कों में लॉकडाउन (पूरी तरह तालाबंदी) जैसे हालात पैदा कर दिए हैं, वहीं इस वायरस की जांच में खामियों और अपना रूप बदलकर पूरी ताकत के साथ इंसानों पर टूट पड़ने वाले इस संक्रमण की पैदावार के पीछे चीनी साजिश की आशंका ने एक अलग किस्म का भय पैदा कर दिया है। दुनिया की आधी आबादी के इससे खत्म हो जाने की आशंकाएं जोरशोर से प्रकट की जाने लगी हैं। दावा किया जा रहा है कि यह एक ऐसा प्रलय होगा, जिसे इंसान ने अपने हाथों से रचा है और अगर हालात काबू में न किए गए तो इससे धरती से जीवन के खत्म होने का संकट पैदा हो जाएगा।

जीवन के विनाश का खतरा : उल्लेखनीय है कि करीब चार महीने पहले ही (दिसंबर, 2019 में) एक घोषणा की गई थी कि अब इस धरती और इसके जीवन के महाविनाश का खतरा पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ गया है। यह अनुमान द बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स (बीएएस) ने लगाया था और इसका फौरी आधार कोरोना वायरस के बजाय धरती पर युद्धक (खासतौर से एटमी) हथियारों की मौजूदगी, विध्वंसकारी तकनीकों, झूठी खबरों-वीडियो, ऑडियो, अंतरिक्ष में सैन्य ताकत बढ़ाने की कोशिशों और हाईपरसोनिक हथियारों की बढ़ती होड़ को बताया गया था, लेकिन कोविड-19 ने दर्शा दिया है कि हमारी ही चंद लापरवाहियां और असावधानी की कमजोर कड़ियां किस तरह हम पर भारी पड़ सकती हैं।

बहरहाल महाविनाश चाहे जिस कारण से आए, इसके खतरे का अंदाजा देने वाली प्रलय की घड़ी डूम्सडे क्लॉक के मुताबिक घड़ी में आधी रात का वक्त होने में जितना कम समय रहेगा, दुनिया की तबाही का खतरा उतना ही नजदीक होगा। गौरतलब है कि इस साल (2020 में) महाविनाश का जितना बड़ा खतरा बताया गया है, वैसा खतरा इससे पहले वर्ष 2018-19 और 1953 में यानी सिर्फ दो बार बताया गया था। इससे पहले 1991 में एक मौका ऐसा भी आया था, जब दुनिया में शीतयुद्ध (कोल्ड वॉर) की समाप्ति पर डूम्सडे क्लॉक को मध्य रात्रि के 17 मिनट पहले तक सेट किया गया था। ध्यान रहे कि डूम्सडे क्लॉक एक सांकेतिक घड़ी है जो मानवीय गतिविधियों के कारण वैश्विक तबाही की आशंका को बताती है। घड़ी में मध्यरात्रि 12 बजने को भारी तबाही का संकेत माना जाता है।

इंसानों का है ज्यादा योगदान : असल में जिस तरह से अब कोरोना वायरस के आगे दुनिया पस्त पड़ गई है, उसने यह आशंका पैदा कर दी है कि धरती से हमारी सभ्यता का अब जो विनाश होगा, उसमें हम इंसानों का ही योगदान ज्यादा होगा, न कि किसी वाह्य कारक का। हालांकि इस संक्रामक विषाणु के स्रोत के रूप में शक की अंगुली चीन की तरफ ही उठ रही है। दावा किया जा रहा है कि आमतौर पर जानवारों में पाए जाने वाले कोरोना या करॉन वायरस की शुरुआत दिसंबर, 2019 में चीन के वुहान प्रांत के फ्रेश सी-फूड मार्केट से हुई थी। हालांकि इसकी पुष्टि होना शेष है कि इस वायरस की उत्पत्ति चमगादड़ों और सांप के मांस से तैयार की गई डिश (भोजन) से हुई है या फिर इसमें कुछ योगदान वुहान स्थित उस प्रयोगशाला का है, जिसमें खतरनाक वायरसों पर प्रयोग किए जाते हैं।

वुहान स्थित जैव प्रयोगशाला पी4 पर दुनिया भर के मीडिया ने शक जताया है कि कोरोना वायरस चीन के जैविक (बायोलॉजिकल) हथियारों की खतरनाक योजना से ही फैला है। इस शक की एक वजह यह है कि चीन के वुहान में न्यूमोनिया का जब पहला केस नजर आया था तो उससे कुछ दिन पहले ही चीन के उपराष्ट्रपति चुपचाप वुहान पहुंचे थे। सवाल उठाया गया है कि वह वहां जैविक हथियारों की योजना की प्रगति देखने गई थे। जैविक हथियारों पर अध्ययन करने वाले इजरायल के एक पूर्व मिलिट्री इंटेलिजेंस ऑफिसर का दावा है कि कोरोना वायरस को चीन की ही पी4 लैब में तैयार किया गया है।

बढ़ रहे वायरस जनित रोग : जैविक हथियार के रूप में कोविड-19 को विकसित करने में चीन की भूमिका भले ही संदिग्ध हो, लेकिन बीते दो दशकों में संक्रमणों (वायरस जनित रोगों) की पैदावार और उनके प्रसार ने साफ कर दिया है कि इंसानी सभ्यता अगर नष्ट होगी तो उसके लिए कोई वाह्य कारक जिम्मेदार नहीं होगा। यानी मनुष्य या तो खुद के हाथों बनाए एटमी हथियारों की जंग में खत्म हो जाएगा या फिर उसके द्वारा पैदा किए ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु परिवर्तन की समस्या से उसका जीवन हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।

फिलहाल तो इनमें सबसे बड़ा खतरा वायरसों के हमले की वजह से ही पैदा होता दिख रहा है। इसमें कोविड-19 सबसे ताजा और सबसे ज्यादा संहारक वायरस प्रतीत हो रहा है, लेकिन पिछले एक-दो दशकों के दायरे में नजर दौड़ाने से पता चलता है कि ऐसे संक्रमणों का एक पूरा सिलसिला चल पड़ है। वैसे तो इतिहास स्पेनिश फ्लू जैसे हादसे की सूचनाओं से भरा पड़ा है, जिसने करीब 12 करोड़ लोगों की जान ली थी, लेकिन बीते दो दशकों में ऐसी दर्जनों घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें कई संक्रामक या वायरस जनित बीमारियां देखते-देखते दुनिया पर हावी हो गईं और कई देशों को हांफने के लिए मजबूर कर दिया। ऐसी एक घटना 2002-03 की है, जब सार्स यानी सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम ने चीन को काफी हलकान किया था। इसका असर वहां करीब सात महीने तक रहा था और इससे करीब 900 लोगों की मौत हो गई थी।

नुकसान सिर्फ जानों का नहीं हुआ था, बल्कि इससे एशिया-प्रशांत क्षेत्र की एयरलाइंसों की कमाई में उस दौरान छह अरब डॉलर की कमी आ गई थी और पूरी दुनिया की विकास दर (जीडीपी) को 33 अरब डॉलर की चपत लगी थी। इसके बाद स्वाइन फ्लू ने 2009-2010 में सार्स की तरह ही दुनिया के अलग-अलग देशों में अपना आतंक मचाया था। मेडिकल जर्नल-द लांसेट में छपे एक लेख के दावे के अनुसार स्वाइन फ्लू से पूरी दुनिया में 1,51,700 से 5,75,400 लोगों की मौतें हुई थीं, लेकिन सरकारों ने इस आंकड़े को स्वीकार नहीं किया। इसके बजाय प्रयोगशालाओं से प्रमाणित 18 हजार मौतों की बात स्वीकार की जाती है तो भी एक साल के अंतराल में स्वाइन फ्लू के कारण हुई मौतों की यह संख्या भी काफी बड़ी है और कोरोना के मौजूदा मामलों को देखते हुए स्वाइन फ्लू अभी भी एक बड़ी त्रासदी नजर आती है।

स्वाइन फ्लू के बाद दुनिया में इबोला का काफी हंगामा मचा था। खासतौर से पश्चिमी अफ्रीका को अपनी चपेट में लेने वाले इबोला के कारण वर्ष 2014 में 11 हजार से ज्यादा मौतें हुई थीं। विश्व बैंक ने इबोला के कारण पर्यटन आदि में हुई कमी के आधार पर गुयाना, लाइबेरिया और सिएरा लियोन की अर्थव्यवस्था को 2.2 अरब डॉलर के नुकसान का अनुमान लगाया था। इसके बाद मच्छरों के जरिये फैलने वाले जीका वायरस ने वर्ष 2015 से 2017 के बीच दक्षिण अमेरिका और कैरेबियाई देशों में ही इतना कहर बरपाया कि इससे वहां करीब 12 करोड़ लोगों की जिंदगी के संकट में पड़ जाने का अनुमान लगाया गया। उस दौरान इन देशों की अर्थव्यवस्था को सात से 18 अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा था।

सवाल है कि वायरस जनित संक्रमण महाविनाश की आशंका क्यों पैदा कर रहे हैं? असल में इसके पीछे खानपान की बिगड़ती शैलियों, दवाओं के गलत इस्तेमाल, कामकाज के लिए ग्लोबल आवाजाही आदि कारणों को गिनाया जा रहा है। इनका नतीजा यह निकला है कि हम संक्रमणों की शृंखला तोड़ने में ही नाकाम नहीं हुए, बल्कि कुछ मामलों में तो इन्हें और मजबूत ही बनाया गया है। बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, इबोला, डेंगू बुखार और एचआइवी-एड्स से होने वाली मौतों में बीचे तीन-चार दशकों में कई गुना बढ़ोतरी हो चुकी है।

रूप बदलने में माहिर वायरस : 1973 के बाद से विषाणु जनित 30 नई बीमारियों ने मानव समुदाय को घेर लिया है। धरती पर फैले सबसे घातक रोगाणुओं ने एंटीबायोटिक और अन्य दवाओं के खिलाफ जबर्दस्त जंग छेड़ रखी है और बीमारियों के ऐसे उत्परिवर्तित वायरस आ गए हैं, जिन पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। फ्लू जैसी पुरानी बीमारियों के वायरसों से जुड़ी यह एक बड़ी समस्या है कि इनके वायरस म्यूटेशन (यानी उत्परिवर्तन) का रुख अपना रहे हैं और कोरोना इसकी सबसे ताजा मिसाल है। इसका मतलब यह है कि मौका पड़ने पर वायरस अपना स्वरूप बदल लेते हैं जिससे उनके प्रतिरोध के लिए बनी दवाइयां और टीके कारगर नहीं रह पाते हैं। एक वजह यह है कि दुनिया के ज्यादातर देश आरंभ में ऐसे संक्रमणों की बात को अर्थव्यवस्था चौपट होने की आशंका में स्वीकार ही नहीं करते हैं। इसके अलावा वे जनता को इस बारे में न तो जागरूक करते हैं और न ही उनकी जान बचाने को प्राथमिकता देते हैं। ऐसे में एक जगह से फूटा संक्रमण चंद दिनों में पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लेता है।

बचाव ही कोरोना का इलाज है : कोरोना लैटिन शब्द है, जिसका अर्थ होता है, ‘मुकुट’। यह एक ऐसा वायरस है, जिसके सेल की संरचना मुकुट सरीखे होती है, इसलिए इसे कोरोना वायरस कहा जाता है। ऐसा अनुमानित है कि यह पशु-पक्षियों में पाया जाता है। यह वायरस संक्रमित व्यक्ति द्वारा खांसते या छींकते वक्त फैलता है। इसका इंक्यूबेशन पीरियड दो से चौदह दिन अनुमानित है, परंतु यह संक्रमण के पश्चात चार दिनों के भीतर लक्षण दिखा सकता है। जिन लोगों को मधुमेह, हृदय रोग या एचआइवी संक्रमण होता है, ऐसे लोगों के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है और उनमें कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।

खांसी, ज़ुकाम, बुखार, सिरदर्द कोरोना वायरस के संक्रमण के लक्षण हो सकते हैं। जिन लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, उन्हें न्यूमोनिया भी हो सकता है। इसकी जांच के लिए थ्रोट स्वैब को लेकर पीसीआर टेस्ट किया जाता है, जिसमें वायरस के आरएनए का पता लगाया जाता है। कोरोना वायरस के संक्रमण का विशेष इलाज अब तक संभव नहीं हो सका है और इसका टीका भी उपलब्ध नहीं है, इसलिए इससे बचाव ही इसका इलाज है।

बीते दो दशकों में वायरस जनित रोगों के प्रसार ने साफ कर दिया है कि इंसानी सभ्यता अगर नष्ट होगी तो उसके लिए कोई बाहरी कारक जिम्मेदार नहीं होगा। मनुष्य या तो खुद के हाथों बनाए एटमी हथियारों की जंग में खत्म हो जाएगा या फिर उसके द्वारा पैदा किए ग्लोबल वार्मिंग से उसका जीवन हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। फिलहाल सबसे बड़ा खतरा वायरसों के हमले की वजह से ही पैदा होता दिख रहा है। इसमें कोरोना सबसे ज्यादा संहारक वायरस प्रतीत हो रहा है।

[संस्था एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध]