लोकमित्र। महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे भले व्यापक उथल-पुथल को प्रदर्शित न करते हों, लेकिन इन नतीजों में मौजूदा राज्य सरकारों के प्रति मतदाताओं की नाराजगी जरूर दिख रही है। साथ ही ये नतीजे मीडिया के गलत अनुमानों की भी बड़ी बानगी हैं। जिस तरह लगभग सभी टीवी चैनल दोनों ही राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टियों की सहज वापसी की घोषणा कर रहे थे, असल नतीजे उसे नकार रहे हैं। एक और बात स्पष्ट है कि भले ही इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे, इन प्रदेशों में काबिज सरकारों के कामकाज पर मतदाताओं की नाराजगी की मुहर हों, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन नतीजों में केंद्र के लिए भी एक संदेश, एक चेतावनी मौजूद है।

अगर एग्जिट पोल की नजर से देखें तो करीब 95 फीसद अनुमान ध्वस्त हो गए। जिस महाराष्ट्र में कई मीडिया चैनल भाजपा और शिवसेना को 220 से लेकर 243 तक सीटें एग्जिट पोल में दे रहे थे, हकीकत में ये सीटें 160 के आसपास रही हैं। जबकि साल 2014 में शिवसेना और भाजपा ने मिलकर महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में 185 सीटें जीती थीं। बाद में 20 से ज्यादा विभिन्न पार्टियों के विधायक भी भाजपा में शामिल हो गए थे, तो अंतत: जो भाजपा और शिवसेना का गठबंधन महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरा था, उसके खाते में करीब 207 सीटें थीं।

लेकिन अगर ताजा नतीजों को 2014 के नतीजों के मुकाबले देखें तो महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना दोनों की ही सीटें कम हुई हैं। भाजपा 122 से 105 पर आ गई है, इस तरह उसे 17 सीटों का नुकसान हुआ है। जबकि शिवसेना 63 से 56 सीटों पर आ गई है। इस तरह उसने भी सात सीटें पिछली बार के मुकाबले गंवाई है। हालांकि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यानी गुरुवार को संध्या साढ़े आठ बजे तक अंतिम नतीजे नहीं आए थे, फिर भी जो नतीजे ठोस रूप ले चुके थे जिसके मुताबिक भाजपा को पिछली बार के मुकाबले वोट प्रतिशत में भी दो फीसद से ज्यादा का नुकसान हुआ है।

शिवसेना को भी करीब दो ही फीसद का नुकसान हुआ है। जबकि एनसीपी ने करीब करीब अपने वोट बैंक को बरकरार रखा है। कांग्रेस को करीब ढाई फीसद का नुकसान हुआ है। हरियाणा में तो नतीजों ने इससे भी ज्यादा हैरान किया है।

ज्यादातर एग्जिट पोल बता रहे थे कि भाजपा हरियाणा में दो तिहाई बहुमत के साथ चुनाव जीत रही है। लेकिन भाजपा को साधारण बहुमत भी नहीं मिला। संध्या साढ़े आठ बजे भाजपा 40 सीटों पर जीत/ बढ़त बनाए थी। यह अलग बात है कि उसे 2014 के मुकाबले हासिल मतों के मामले में जरूर फायदा हुआ है। जहां 2014 में भाजपा को हरियाणा में 33.2 फीसद मतों के साथ 47 सीटें मिली थीं, वहीं 2019 में 36.5 फीसद मतों के साथ 40 के आसपास सीटें मिली हैं।

कांग्रेस को वर्ष 2014 में हरियाणा में 20.6 फीसद मतों के साथ 15 सीटें मिली थीं, जबकि 2019 में उसे लगभग 28.1 फीसद मतों के साथ करीब 31 सीटें मिली हैं। वर्ष 2014 में हुए मतदान में हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल को 19 सीटें मिली थीं, इस बार एक पर सिमट गई है। वास्तव में हरियाणा में किंग मेकर की भूमिका में जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी उभरी है, जो पिछले चुनाव में नहीं थी। मौजूदा चुनावों से कुछ दिन पहले बनी और अपने पहले ही प्रयास में उसने 10 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। माना जा रहा है कि हरियाणा की आगामी सरकार की चाबी जेजेपी के पास ही होगी। एक तरह से भाजपा और कांग्रेस उससे काफी ज्यादा मत पाकर भी समीकरणों के लिहाज से सरकार बनाने के लिए उसी पर निर्भर हैं।

इन विधानसभा चुनाव परिणामों को मतदाताओं द्वारा दिया गया ‘चेतावनी जनादेश’ कहा जा सकता है। इस जनादेश के कई मतलब हैं। इस जनादेश ने बता दिया है कि आम चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे भले कितनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हों, लेकिन स्थानीय चुनावों में स्थानीय मुद्दे ही काम आते हैं।

(इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर)

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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