संजय मिश्र। राजनीति में जुबान चलाने के गहरे मायने होते हैं। कभी यह जुबान भटकाती है तो कभी दिशा भी दे देती है। जुबान समय से और सही संदर्भ में चली तो सबका प्रिय बना देती है और यदि फिसल गई तो अनर्थ भी कर देती है। इसीलिए संत कबीर ने कहा था, ‘बोली एक अनमोल है, जो कोई बोले जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।’ अर्थात वाणी अनमोल होती है, इसे सोच समझकर ही बोलना चाहिए।

हाल ही में महिला मित्र के फांसी लगाने के बाद मुकदमे का सामना कर रहे पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार को न्याय दिलाने के नाम पर मध्य प्रदेश कांग्रेस ने ऐसा जुबानी दांव चला कि अब वह उसे ही उल्टा पड़ने लगा है। शिवराज सरकार और भाजपा को धमकाते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने कहा था कि ‘भाजपा के नेता ये न भूलें कि हनी ट्रैप मामले की मूल सीडी उनके पास सुरक्षित है। वह चाहें तो उनके (भाजपा) कई लोग बेनकाब हो जाएंगे।’ इसके साथ ही उन्होंने कोरोना के नियंत्रण में भाजपा की विफलता का जिक्र करते हुए कोरोना के भारतीय वैरिएंट का मुद्दा उठा दिया।

कांग्रेस नेता के इस बयान ने भाजपा को एक तरह की ताकत दे दी, जो सिंघार मामले को लेकर आलोचना का सामना कर रही थी। कांग्रेस आरोप लगा रही थी कि सिंघार के खिलाफ किसी ने शिकायत नहीं की है। उनके घर फांसी लगाने वाली महिला के पुत्र और मां ने भी सिंघार को पाक-साफ बता दिया है। इसके बावजूद पुलिस ने भाजपा के दबाव में उन पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा दर्ज कर लिया। यह विधायक को धमकाने की कोशिश है। इस तरह के आरोपों से परेशान भाजपा ने कमल नाथ की टिप्पणी को मुद्दा बनाकर उन्हें सियासी मोर्चे पर तो घेरा ही, कानूनी रूप से भी घेर दिया है।

भाजपा विधायकों की शिकायत पर कमल नाथ के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया है। भाजपा कमल नाथ से पूछ रही है कि वह बताएं कि यह सीडी उन्हें कहां से मिली और किस हैसियत से उसे अपने पास रखे हुए हैं। यदि सीडी है तो सार्वजनिक करें। साथ ही यह भी सवाल उठाया कि ‘भारतीय वैरिएंट’ कहकर देश का अपमान क्यों कर रहे हैं। भाजपा हमलावर है जबकि कमल नाथ को अपना बचाव करना मुश्किल हो रहा है। इस जुबानी जंग में एक बार फिर हनी ट्रैप का मामला सियासत के केंद्र में आ गया है।

लगभग डेढ़ साल पहले मध्य प्रदेश में हनी ट्रैप का मामला सामने आया था। तब कमल नाथ ही राज्य के मुख्यमंत्री थे। 17 सितंबर 2019 को इंदौर नगर निगम के इंजीनियर हरभजन सिंह ने पुलिस से शिकायत की थी कि कुछ महिलाओं द्वारा उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा है। यह शिकायत मध्य प्रदेश के बहुर्चिचत हनीट्रैप कांड की शुरुआत थी। मामला इतना गर्म हुआ कि लंबे समय तक राज्य की सियासत इसी के इर्द-गिर्द घूमती रही। सरकार ने तह तक जाने के लिए विशेष जांच दल (एसआइटी) गठित कर दी। सबसे पहले इसका चीफ पुलिस के आइजी डॉ. श्रीनिवास वर्मा को बनाया गया, लेकिन 24 घंटे में ही उन्हें हटा दिया गया। वे सख्त अधिकारी माने जाते हैं। इसके बाद एडीजी संजीव को जांच की कमान सौंपी गई, लेकिन कुछ दिनों में उन्हें भी हटाकर राजेंद्र कुमार को जिम्मेदारी दे दी गई। बार-बार एसआइटी चीफ हटाने से सरकार की आलोचना होने लगी। कहा जाने लगा कि सरकार बडे़ नौकरशाहों और कुछ नेताओं को बचाने के लिए ही बार-बार एसआइटी चीफ को बदल रही है।

उल्लेखनीय है कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए हाइकोर्ट को आदेश देना पड़ा कि बिना उसकी अनुमति के एसआइटी में बदलाव नहीं किया जाएगा। राजेंद्र कुमार अगस्त 2020 तक एसआइटी चीफ रहे, लेकिन एक-दो मामले को छोड़कर उनकी जांच टीम अधिकारिक रूप से बड़े नाम सामने नहीं ला सकी। हालांकि जाते-जाते वे हाइकोर्ट को हनी ट्रैप मामले से जुड़े 40 लोगों की एक सूची देकर गए हैं। अब एडीजी विपिन माहेश्वरी एसआइटी के चीफ हैं, लेकिन जांच फिलहाल ठंडे बस्ते में है। एक तथ्य यह भी है कि एसआइटी गठित होने के बाद जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, वैसे-वैसे कई नौकरशाहों और राजनेताओं की भूमिका सामने आने लगी थी। पता चला कि गैर सरकारी संगठन चलाने के नाम पर कुछ महिलाओं ने बड़े नौकरशाहों और कांग्रेस-भाजपा के कई नेताओं से नजदीकी रिश्ते बनाए और उनके अंतरंग वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करने लगीं। वीडियो सार्वजनिक न करने के मामले में महिलाएं उनसे बड़ी रकम वसूलती थीं। कुछ आरोपित महिलाओ को गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले में खूब सियासत हुई।

जांच के दौरान छह से सात नेताओं और एक दर्जन से अधिक आइएएस और आइपीएस अधिकारियों के वीडियो-ऑडियो पुलिस ने बरामद किए। इनमें कई अपर मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव स्तर के अफसरों के नाम बताए जाते हैं। हालांकि उनके नाम आधिकारिक रूप से सार्वजनिक नहीं किए गए। वैसे दिसंबर 2019 में एक महिला की शिकायत के आधार पर दर्ज मानव तस्करी केस में पुलिस ने भोपाल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी थी, जिसमें राजधानी के एक बड़े बिल्डर और कई बडे़ अधिकारियों के नाम सामने आए थे, लेकिन इसमें भी वे बडे़ नाम नहीं थे जिनकी चर्चा बडे़ स्तर पर हो रही थी। अब जबकि इस मुद्दे पर राज्य के दो बड़े राजनीतिक दलों में जुबानी जंग छिड़ी है, इसलिए लोग उम्मीद कर रहे हैं कि मध्य प्रदेश की सियासत में इस काले अध्याय की जांच में शायद तेजी आए और सच्चाई सामने आ सके।

[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]