[डॉ. जयंतीलाल भंडारी]। इस वक्त लोगों की निगाहें मोदी सरकार द्वारा एक फरवरी को पेश किए जाने वाले अंतरिम बजट की ओर हैं। ऐसे संकेत मिले हैं कि इस अंतरिम बजट में सिर्फ चार माह के लिए लेखानुदान ही पेश नहीं किया जाएगा, वरन देश की कुछ आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों के समाधान के लिए नीतिगत दिशाएं भी प्रस्तुत की जाएंगी।

चूंकि यह चुनावी साल है, लिहाजा उम्मीद की जा रही है कि अंतरिम बजट में आम आदमी, किसान, छोटे उद्यमियों एवं कारोबारियों, मध्यम वर्ग और लघु आयकरदाताओं के लिए राहत की घोषणाएं हो सकती हैं। इस बजट को लोक-लुभावन बनाए जाने की पूरी संभावनाएं हैं।

अंतरिम बजट को लेकर ऐसी कोई कानूनी या संवैधानिक बाधा नहीं है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष करों में संशोधन करने का प्रस्ताव करने से रोके। अब तक अलग-अलग समय पर विभिन्न केंद्र सरकारों द्वारा कुछ गैर-पारंपरिक अंतरिम बजट पेश हुए हैं। वर्ष 1962-63 में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने अंतरिम बजट में नमक पर शुल्क हटाने के प्रस्ताव के साथ ही प्रशुल्क और व्यापार पर सामान्य समझौता (गैट) के तहत कुछ वादों को जारी रखने का भी प्रस्ताव किया था।

वर्ष 1977-78 में वित्त मंत्री एमएम पटेल ने अंतरिम बजट में कंपनियों को आयकर पर अधिभार के भुगतान के एवज में भारतीय औद्योगिक विकास बैंक में जमा करने के लिए सक्षम बनाने का प्रस्ताव किया था। 1980-81 में वित्त मंत्री आर वेंकटरमन ने लद्दाख के निवासियों, गरीबी उन्मूलन से जुड़े करदाताओं, अनुसूचित जाति-जनजाति के हितों को बढ़ावा देने वाले निगमों या अन्य संस्थाओं को आयकर में छूट का प्रस्ताव किया था।

वर्ष 2004-05 में वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने अंतरिम बजट पेश था। आर्थिक सुधारों की वजह से उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की गतिशीलता दिखाई दे रही थी। जसवंत सिंह ने अंतरिम बजट में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों में नई रियायतों के प्रस्ताव रखे थे। खासतौर से कुछ तरह के सामान पर राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क लगाने का प्रस्ताव था। वर्ष 2014-15 में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जब अंतरिम बजट पेश किया था तो अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं थी। वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे थे और राजकोषीय घाटा चिंताजनक स्थिति में था। ऐसे में अंतरिम बजट पेश करते हुए चिदंबरम ने जहां आर्थिक दिशाएं प्रस्तुत की, वहीं कई उत्पादों पर उत्पाद शुल्क घटा दिए थे। कई घरेलू उत्पादों के संरक्षण के लिए उत्पाद शुल्क की नई दरें भी घोषित कीं।

यदि हम पिछले अंतरिम बजटों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पाते हैं कि 2004-05 में जसवंत सिंह ने और 2014-15 में पी चिदंबरम ने कराधान प्रस्ताव जोर-शोर से प्रस्तुत किए थे और साथ ही पूरे साल के लिए विभिन्न वर्गों के लिए राहतकारी प्रावधान भी पेश किए थे। मोदी सरकार का यह अंतरिम बजट मुख्यत: खेती और किसानों को संबल प्रदान करने वाला हो सकता है। सरकार इस बजट में ऐसी योजना पेश कर सकती है जिसके तहत किसानों को सब्सिडी देने के बजाय सीधे उनके खातों में नकद रकम भेजी जाए। सरकार खेती-बाड़ी से जुड़ी तमाम सब्सिडी को जोड़ने की एक उपयुक्त योजना प्रस्तुत कर सकती है। कृषि कर्ज का लक्ष्य भी 10 फीसद बढ़ाकर करीब 12 लाख करोड़ रुपये किया जा सकता है।

देश में असमानता व बेरोजगारी बढ़ रही है और इनसे निपटने के लिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआइ) की जरूरत महसूस की जा रही है। पूर्व वित्तीय सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने 2016-17 के आर्थिक सर्वे में इसकी सिफारिश की थी। अंतरिम बजट में इस आशय की घोषणा होने की भी उम्मीद है। छोटे आयकरदाता नौकरीपेशा वर्ग के साथ मध्य वर्ग के लोग भी चाहते हैं कि उन्हें आयकर राहत मिले, ऐसे में सरकार उनके बारे में भी सोच सकती है। आयकर की छूट की सीमा को दोगुना करके पांच लाख रुपये तक किया जा सकता है। आयकर की विभिन्न स्लैबों के तहत भी राहत दी जा सकती है। अभी ढाई लाख से पांच लाख रुपये की आय पर पांच प्रतिशत की दर से कर लगता है। वहीं पांच से 10 लाख रुपये की आय पर 20 प्रतिशत तथा 10 लाख रुपये से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत आयकर लगता है। अब पांच से 10 लाख रुपये तक की आमदनी पर कर की दर घटाकर 10 प्रतिशत और 10 से 20 लाख रुपये की आय पर 20 प्रतिशत तथा 20 लाख रुपये से अधिक की आय पर 25 प्रतिशत आयकर लगाया जा सकता है। वरिष्ठ नागरिक एवं महिला वर्ग के लिए आयकर में छूट की सीमा भी बढ़ाई जा सकती है।

इसके साथ ही बचत को प्रोत्साहन देने के लिए धारा 80सी के तहत कटौती की सीमा बढ़ाकर 2.50 लाख रुपये की जा सकती है। चिकित्सा खर्च और परिवहन भत्ते पर भी आयकर छूट मिल सकती है। आगामी बजट में छोटी-बड़ी हर प्रकार की कंपनियों पर कॉरपोरेट कर की दर घटाकर 25 फीसद रखी जा सकती है। इससे कारोबार का विस्तार होगा और कर संग्रह भी बढ़ेगा। अंतरिम बजट में रीयल एस्टेट सेक्टर को भी प्रोत्साहन दिखाई दे सकता है। यदि इस सेक्टर को उद्योग का दर्जा मिलता है तो इससे जुड़े अन्य उद्योगों को भी तेजी मिलेगी। इससे कम दर पर फंडिंग हासिल करने में भी मदद मिलेगी। डिजिटल ट्रांजेक्शन करने पर टैक्स में छूट दी जा सकती है।

इस बजट में स्टार्टअप्स के लिए एंजेल टैक्स खत्म करने और ई-केवाईसी में ढील की स्थिति दिखाई दे सकती है। एंजेल टैक्स के कारण स्टार्टअप्स में निवेश बाधित हो रहा है। इसके अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा, छोटे उद्योग-कारोबार और कौशल विकास जैसे विभिन्न आवश्यक क्षेत्रों के लिए बजट आवंटन में बढ़ोतरी की जा सकती है। निर्यातकों को रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर विशेष इंसेंटिव दिया जा सकता है। सालाना पांच करोड़ रुपये तक बिजनेस वाली कंपनियों को कर्ज पर ब्याज में दो फीसद तक छूट देने का प्रोत्साहन सुनिश्चित किया जा सकता है। हम आशा करें कि अंतरिम बजट में सरकार एक ओर विभिन्न वर्गों की आर्थिक अपेक्षाओं के मुताबिक उपयुक्त रियायतें एवं प्रोत्साहन देते हुए दिखाई देगी, वहीं दूसरी ओर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के ऐसे कदम उठाती हुई भी दिखेगी जिससे वर्ष 2019 के अंत तक भारत वैश्विक अध्ययन रिपोट्र्स में जताए गए अनुमानों के मुताबिक दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन जाए।
[अर्थशास्त्री]