लखनऊ, आशुतोष शुक्ल। लगभग पांच वर्ष पूर्व लखनऊ के हजरतगंज में एक वृद्ध टाइपिस्ट के साथ एक सब इंस्पेक्टर ने ज्यादती कर दी। राज्यपाल की फ्लीट को निकलना था लेकिन, मार्ग में वह फुटपाथ पड़ता था जहां बैठकर कुछ टाइपिस्ट जीविकोपार्जन करते थे। पुलिस सुरक्षा कारणों से सबको कुछ देर के लिए हटा चुकी थी लेकिन, एक वृद्ध डटे हुए थे।

जब वह किसी तरह हटने को तैयार नहीं हुए तो सब इंस्पेक्टर ने उनके टाइपराइटर को लात मारकर फेंक दिया। टाइपराइटर टूट गया। लात मारना अमानवीय था, लिहाजा शोर मच गया और टाइपिस्ट कृष्ण कुमार के पुलिस उत्पीड़न की कहानी देशभर में फैल गई। पत्रकार उनके घर पहुंचने लगे, सामाजिक संगठन सक्रिय हो गए, उनके घर के बाहर टीवी कैमरे तैनात हो गए और तत्कालीन राज्य सरकार पर मानवाधिकार हनन के आरोपों की झड़ी लग गई। अचानक पीड़ित पक्ष खामोश हो गया। पार्टयिां सदमे में और मीडिया हैरान।

वह शांत हुए तो मुद्दा समाप्त : हुआ यह था कि घटना के चंद घंटों बाद लखनऊ के जिलाधिकारी राजशेखर और एसएसपी राजेश पांडेय दो नए टाइपराइटर लेकर वृद्ध के घर जा पहुंचे। उनसे क्षमा मांगी। वृद्ध संतुष्ट। आर्थिक भरपाई तो उन्हें अच्छी लगी ही लेकिन, उससे भी अधिक अफसरों की विनम्रता उन्हें छू गई। जिले के सबसे बड़े अफसर जिस तरह उनके घर जा पहुंचे, उनके उस विनीत भाव ने बुजुर्ग का क्रोध शांत कर दिया। वह शांत हुए तो मुद्दा समाप्त।

सोशल मीडिया ने अफवाहों का जो आटा गूंथा : हाथरस के बूलगढ़ी गांव में यही नहीं हुआ। एक हफ्ते तक सोशल मीडिया ने अफवाहों का जो आटा गूंथा और हंगामे व आरोपों का परथन लगा लगाकर राजनीति ने जैसी रोटियां सेकीं, वह सब कतई न होता अगर हाथरस प्रशासन ने पीड़िता के शव को घर जाने दिया होता। अफसरों ने यह साधारण सी बात समझनी ही नहीं चाही कि किसी घर का बच्चा गया है। उन्होंने यह भी नहीं देखा कि बनारस छोड़कर सूर्यास्त के पश्चात कहीं दाह संस्कार नहीं होता। जिला प्रशासन के इसी जबरिया व्यवहार से तिल का ताड़ बनता चला गया और कई मेडिकल परीक्षणों में दुष्कर्म की पुष्टि न होने पर भी राजनीतिक पार्टियों ने इसे मुद्दा बना दिया।

सभी पक्षों के नार्को टेस्ट और सीबीआइ जांच : एक लड़की की स्मृति और उसके परिवार की चिंता नहीं की गई। यह सब तब हुआ जबकि मुख्यमंत्री के दखल के बाद परिवार को 35 लाख रुपये की सहायता और एक सरकारी नौकरी की घोषणा हो चुकी थी। साथ की यह फोटो देखिए। अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी और पुलिस महानिदेशक हितेश अवस्थी लड़की के दुखी परिवार से मिलने हाथरस जा पहुंचे। यही काम हाथरस प्रशासन शुरू में ही कर सकता था। शुक्रवार को मुख्यमंत्री ने हाथरस पुलिस अधीक्षक सहित कई अन्य पुलिस वालों को निलंबित तो किया ही, उनके नार्को टेस्ट का आदेश भी कर दिया। आरोपितों और वादी परिवार के साथ पुलिस अधिकारियों के भी नार्को टेस्ट कराने का यह पहला मामला है और तय समझिए कि इसके परिणाम बड़ी खबर बनेंगे। शनिवार को ही मुख्यमंत्री ने सीबीआइ जांच की घोषणा भी कर दी। आश्चर्य की बात है कि सभी पक्षों के नार्को टेस्ट और सीबीआइ जांच का अपेक्षित स्वागत नहीं हुआ है।

इस प्रसंग की चर्चा लंबी हो रही है लेकिन गत सप्ताह की यही सबसे बड़ी घटना भी तो है और फिर विपक्ष ने भी इसे सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने में कसर नहीं छोड़ी। बड़ा मोर्चा कांग्रेस ने संभाला और प्रियंका वाड्रा व राहुल गांधी सड़क पर उतर आए। कांग्रेस के साथ ही सपा के कार्यकर्ता भी जिलों में प्रदर्शन करने निकल पड़े, जबकि बसपा ने अपने को निंदा करने तक सीमित रखा। घटनाक्रम में रविवार को नाटकीय मोड़ आया, जब राज्य सरकार ने हाथरस कांड को षड्यंत्र मान लखनऊ में एफआइआर दर्ज करा दी।

विपक्ष की रोजगार आयोग के गठन की खबर ने भी बीते हफ्ते सुर्खियां बटोरीं। यह एक ऐसा आयोग होगा जो नौकरी के नए अवसर तलाशने के साथ ही भर्ती प्रक्रिया में स्वच्छता भी सुनिश्चित करेगा। नौकरी जाने के इस दौर में आयोग गठन बहुत सकारात्मक ऊर्जा लाया है बशर्ते, यूपी की ब्यूरोक्रेसी अच्छे परिणाम देने के लिए भी तैयार हो। वही तो असल चुनौती है..!

[संपादक, उत्तर प्रदेश]