पानीपत, सतीश चंद्र श्रीवास्तव। सर्दी के बावजूद प्रदेश की राजनीति में गर्माहट उफान पर है। वर्ष के अंत में जनता की नजर में मुख्यमंत्री मनोहर लाल, उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और गृह मंत्री अनिल विज सत्ता के तीन केंद्रों के रूप में उभरे। व्यवहार में भी यही दिख रहा है। प्रभाव को लेकर घमासान भी है। 2020 में भी जारी है। केंद्र में है गृहविभाग के तहत पांचवीं प्राथमिकता वाली सीआइडी। गुप्तचरी पर गृहमंत्री की तरफ से बार-बार जवाब-तलब किए जाने पर नौकरशाही काफी परेशानी में थी।

मुखमंत्री को केंद्रीय नेतृत्व के सामने मामला उठाना पड़ा। भाजपा के प्रदेश प्रभारी डॉ. अनिल जैन को स्वीकार करना पड़ गया कि आक्रामक अनिल विज और शांत स्वभाव वाले मुख्यमंत्री मनोहर लाल के बीच कुछ गलतफहमी पैदा कर दी गई थी। दोनों से बात कर समस्या का समाधान करा दिया गया है। अब सीआइडी को गृहमंत्रालय से अलग करते हुए मुख्यमंत्री ने अपने कार्यक्षेत्र में शामिल कर लिया है। मुख्यमंत्री कार्यालय और हरियाणा सरकार की वेबसाइट के जरिये साफ कर दिया गया है कि गृहमंत्री के पास अब खुफिया विभाग नहीं है।

मजे की बात है कि दोनों नेताओं की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर किसी को कभी संदेह नहीं रहा है। इनकी पुरानी दोस्ती को भी सभी जानते और स्वीकारते हैं। संयोग से दोनों अविवाहित भी हैं। इसकी वजह से माना जाता है कि ये न भ्रष्टाचार करेंगे और न ही करने देंगे। चुनाव परिणाम के बाद बदली परिस्थितियों में गठबंधन के कारण अगर नंबर दो की भूमिका उपमुख्यमंत्री के रूप में दुष्यंत चौटाला के पास चली गई तो मुखमंत्री ने दोस्त की प्रतिष्ठा का ध्यान रखते हुए अनिल विज को गृह मंत्रालय सौंप दिया था। अब सवाल खड़ा हो गया है कि इतनी नजदीकी और समानताओं के बावजूद वह कौन है जिसने दोस्ती में दरार डाल दी है। ना-ना करते हुए नाम नौकरशाही का ही आ रहा है।

विधानसभा चुनाव के दौरान दुष्यंत चौटाला के खिलाफ अनिल विज ने जिस तरह का आक्रामक रुख अपनाया था, उससे पहले ही तय हो गया था कि मनो-टू गठबंधन सरकार का रास्ता आसान नहीं होगा। शालीन मुख्यमंत्री ने अनिल विज को गृह मंत्रालय का कार्यभार सौंप दिया। धीरे-धीरे परिस्थितियां बदलती गईं। चुनाव परिणाम आने के बाद जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के जो समर्थक भाजपा के साथ सत्ता में भागीदारी की आलोचना कर रहे थे, अब अग्रणी लाभार्थियों में शामिल हो गए। उनका रुतबा कायम होने लगा। अधिकारियों-कर्मचारियों के बदला-बदली में वे निर्णायक होते गए।

गठबंधन सरकारों में हितों की रक्षा के लिए दांवपेच कोई नई बात भी नहीं है। बड़े दल को बहुत कुछ बर्दाश्त करना पड़ता है। समर्थन देने वाले छोटे दल के नेता इस तरह उछल कूद करते हैं जैसे जनता ने उनको ही सत्ता सौंपी हो। चाहे केंद्र की सरकार हो या किसी प्रदेश की, गठबंधन की यही रीत है। इसमें सूचनाएं अहम हो जाती हैं, जिसकी जिम्मेदारी गुप्तचर विभाग के पास होती है। इससे नौकरशाही परेशान हो गई। विज बार- बार गुप्तचर विभाग से विधानसभा चुनाव की रिपोर्ट तलब कर रहे थे। इसी बीच नौकरशाही ने गृहमंत्री को बिना विश्वास में लिए आइपीएस अधिकारियों के तबादले कर दिए।

केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद पूरे प्रदेश में गब्बर के नाम से पुकारे जाने वाले गृहमंत्री अनिल विज को पीछे हट जाना पड़ा है। मामला था भी गंभीर। नेताओं के ही नहीं, बल्कि अधिकारियों की गर्दन भी फंस जानी थी। नौकरशाही जिस तरीके से सरकार की दिशा-दशा तय करती रही है, उसमें अनिल विज का गृहमंत्री के रूप में दखल भारी पड़ने जा रहा था। प्रदेश की राजनीति के जानकार जानते हैं कि इनेलो (इंडियन नेशनल लोक दल) हो या कांग्रेसी नेता, नौकरशाही में अभी मजबूत घुसपैठ रखते हैं। चौटाला (ओम प्रकाश) और हुड्डा (भूपेंद्र सिंह) को सरकार के अंदर की खबर पहुंचाने वालों की लंबी फेहरिश्त है।

यह भी माना जा रहा है कि इनेलो समर्थक नौकरशाही लॉबी अब उसी भाव के साथ उप मुख्यमंत्री दुष्यंत को समर्पित हो चुकी है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौती है कि बड़ी संख्या में वही अधिकारी प्रभावशाली हैं जो इनेलो और कांग्रेस के कार्यकाल में प्रभावी रहे। अनिल विज उनके लिए परेशानी बन रहे थे। फिलहाल माना जा सकता है कि मनोहर लाल और अनिल विज की पुरानी दोस्ती विवाद को शांत करने का आधार बनेगी। मुख्यमंत्री का अनिल विज के प्रति भरोसा ही था कि उन्होंने परंपरा तोड़ते हुए उन्हें गृह मंत्रालय सौंपा। संगठन के प्रति संमर्पण भाव के कारण दोनों के बीच तीसरे की भूमिका शायद ही प्रभावी हो पाएगी।

[समाचार संपादक,पानीपत]

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