[ प्रो. रसाल सिंह ]: अनुच्छेद 370 और 35ए की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर में हुए पहले बड़े चुनाव में भाजपा सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में उभरी है। इस चुनाव में उसने जम्मू-कश्मीर के 20 जिलों की 280 जिला विकास परिषद यानी डीडीसी सीटों में से न सिर्फ 75 सीटों पर विजय प्राप्त की है, बल्कि उसे प्राप्त मत प्रतिशत में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। 2014 के विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा को कुल 22.98 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे, वहीं इस बार यह और बढ़कर 44 फीसद से अधिक हो गया है।

डीडीसी चुनाव: भाजपा ने जम्मू संभाग में गुपकार गठजोड़ का किया सूपड़ा साफ

भाजपा ने न सिर्फ जम्मू संभाग में गुपकार गठजोड़ का सूपड़ा साफ कर दिया है, बल्कि पहली बार कश्मीर संभाग में भी तीन सीटें जीतकर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह वही कश्मीर है जहां भाजपा का झंडा तो क्या एक समय तिरंगा उठाना मुश्किल था। वहीं भाजपा की बढ़ती पैठ से आशंकित नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी सहित सात विपक्षी दलों ने ‘पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लरेशन’ के बैनर तले गठबंधन बनाकर यह चुनाव लड़ा था। वस्तुत: यह चिर-प्रतिद्वंद्वी दलों का मौकापरस्त और मतलबपरस्त गठजोड़ मात्र था।

चुनाव नतीजों ने गुपकार गठजोड़ पर पानी फेर दिया

गुपकार से जुड़े दलों में नेशनल कांफ्रेंस को 67, पीडीपी को 27 और कांग्रेस को 26 सीटें ही मिलीं। गठबंधन के बावजूद कई सीटों पर ये दल खुद आमने-सामने थे। निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी 49 सीटों पर जीत दर्ज की। पहले गुपकार गठजोड़ चुनाव में भागीदारी को लेकर असमंजस में था और चुनाव बहिष्कार की योजना बना रहा था, किंतु बाद में उन्हें लगा कि कहीं चुनाव बहिष्कार करके वे भी अलगाववादी हुर्रियत कांफ्रेंस की तरह अलग-थलग पड़कर अप्रासंगिक न हो जाएं। इसीलिए वे गठबंधन बनाकर परिणामों के माध्यम से कोई बड़ा राजनीतिक संदेश देने का मंसूबा पाले हुए थे, लेकिन चुनाव नतीजों ने उन पर पानी फेर दिया।

डीडीसी चुनाव का बड़ा संदेश:  जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली

इन चुनावों का वास्तविक और सबसे बड़ा संदेश राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली और उसमें व्यापक जन भागीदारी है। आतंकवादी और अलगाववादी संगठनों को दरकिनार करते हुए न सिर्फ भारी संख्या में उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा, बल्कि मतदाताओं ने भी पिछले चुनावों से कहीं ज्यादा मतदान किया। इस बार 280 सीटों के लिए कुल 2178 प्रत्याशी चुनाव में उतरे और कुल 51.42 प्रतिशत मतदान हुआ।

राज्य की जनता ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी आस्था व्यक्त की, भारतीय संघ में विश्वास जताया

गुपकार गठजोड़ इन चुनावों को जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार के संवैधानिक परिवर्तनों पर ‘रेफेरेंडम’ के रूप में प्रचारित करना चाहता था, किंतु राज्य की जनता ने न सिर्फ लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी आस्था व्यक्त की, बल्कि भारतीय संघ में अपना विश्वास और उसके प्रति अपनी एकजुटता भी प्रदर्शित की। जिस षड्यंत्र के तहत गुपकार गठबंधन चुनाव लड़ रहा था, वह न सिर्फ उजागर हुआ, अपितु असफल भी हो गया। ये नतीजे पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला द्वारा दिए गए राष्ट्र-विरोधी बयानों का जम्मू-कश्मीर की जनता द्वारा दिया गया मुंहतोड़ जवाब हैं। साथ ही उनकी सरकारों में ‘रोशनी एक्ट भूमि घोटाले’ और जम्मू संभाग के ‘इस्लामीकरण’ जैसी कारस्तानियों का भी प्रतिफल हैं।

जिला विकास परिषद के चुनाव पहली बार कराए गए

जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा पिछले दिनों मुख्य निर्वाचन आयुक्त केके शर्मा की नियुक्ति के साथ ही प्रदेश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली की हलचल तेज हो गई थी। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सभी नागरिकों की विश्वास बहाली और भागीदारी सुनिश्चित करना किसी भी राज्य का सर्वप्रमुख कर्तव्य है और यही उसकी सबसे बड़ी चुनौती भी है। आज केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर इस चुनौती को स्वीकार करने में सफल हुआ है। वहां त्रि-स्तरीय पंचायती राज्य व्यवस्था के सबसे बड़े सोपान जिला विकास परिषद के चुनाव पहली बार कराए गए हैं।

पंचायती राज व्यवस्था लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूत नींव, स्वशासन और सुशासन की पहचान है

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने अक्टूबर में ही पंचायती राज से संबंधित 73वें संविधान संशोधन को जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह लागू कर दिया था। राज्य में यह कानून पिछले 28 वर्षों से लंबित था। पंचायती राज व्यवस्था न सिर्फ लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूत नींव है, बल्कि स्वशासन और सुशासन की भी पहचान है। यहां पहली बार पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी, गोरखा और वाल्मीकि समुदाय के लोगों को अपने मतदान का अवसर प्राप्त हुआ। कुछ समय पहले ही केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर ने नई अधिवास नीति, मीडिया नीति, भूमि स्वामित्व नीति और भाषा नीति में बदलाव करते हुए शेष भारत से अपनी दूरी और अलगाव को खत्म किया है। भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर राजभाषा अधिनियम, 2020 लागू करते हुए पांच भाषाओं-कश्मीरी, डोगरी, हिंदी, उर्दू और अंग्र्रेजी को राजभाषा का दर्जा दिया है। बहुत जल्दी जम्मू-कश्मीर की औद्योगिक नीति भी घोषित होने वाली है। ये चुनाव और इनके परिणाम केंद्र सरकार और उपराज्यपाल शासन की उपरोक्त सकारात्मक और संवेदनशील नीतियों पर भी मुहर लगाते हैं। 

चुनाव आयोग जम्मू-कश्मीर की विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन करा रहा

उल्लेखनीय है कि अतीत में जम्मू-कश्मीर की राज्य विधानसभा में क्षेत्रीय असंतुलन रहा है। इसलिए चुनाव आयोग वहां विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन करा रहा है। यह अगले वर्ष तक पूरा होने की संभावना है। परिसीमन प्रक्रिया के पूर्ण हो जाने के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था और विकास प्रक्रिया में सभी क्षेत्रों और समुदायों का समुचित प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी। इससे शासन-प्रशासन की कश्मीर केंद्रित नीति भी संतुलित हो सकेगी और अन्य क्षेत्रों के साथ होने वाले भेदभाव तथा उपेक्षा की भी समाप्ति हो जाएगी। यह विकास और विश्वास बहाली की राष्ट्रीय परियोजना है। इन चुनाव परिणामों का कूटनीतिक महत्व भी है। पाकिस्तान और चीन जैसे ईर्ष्यालु पड़ोसी देश इन चुनावों में जनता की भागीदारी, हिंसा और चुनाव परिणामों की ओर टकटकी लगाकर देख रहे थे। राज्य की जनता ने उनकी बोलती बंद कर दी है।

( लेखक जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं )