[ डॉ. जयंतीलाल भंडारी ]: विगत 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टॉयकैथन 2021 के प्रतिभागियों को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने खिलौनों को बच्चों का पहला मित्र बताते हुए खिलौना उद्योग के र्आिथक एवं रोजगारपरक पहलुओं को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि आज दुनिया भारतीय समाज को ज्यादा बेहतर तरीके से समझना चाहती है और इसमें भारतीय खिलौने और गेमिंग उद्योग बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। बाजार में मुख्य रूप से दो तरह के खिलौने दिखते हैं। कुछ खिलौने ऐसे होते हैं, जो बच्चों की मौज-मस्ती का जरिया बनकर उन्हें खुशी देते हैं। वहीं दूसरी किस्म के खिलौने बच्चों को खुश करने के साथ ही उनके मानसिक विकास में भी उपयोगी होते हैं। फिलहाल बाजार में लकड़ी, पत्थर, मिट्टी, प्लास्टिक और दूसरी कृत्रिम चीजों से बने परंपरागत खिलौनों के अलावा नई तकनीक की रंग-बिरंगी गुड़ियों से लेकर मैकेनिकल सेट, डिजाइनर बोर्ड गेम्स, लिगो, पजल्स, कंप्यूटर गेम्स, डॉल हाउस, स्टफ्ड एनिमल्स, रोबोट और रिमोट कंट्रोल से चलने वाले खिलौने मुख्य रूप से प्रचलित हैं।

100 अरब डॉलर के वैश्विक खिलौना बाजार में भारत की हिस्सेदारी मात्र डेढ़ अरब डॉलर

वैश्विक खिलौना बाजार वर्तमान में करीब 100 अरब डॉलर का है। इसमें भारत की हिस्सेदारी मात्र डेढ़ अरब डॉलर के आसपास ही है। देश में करीब 80 प्रतिशत खिलौने आयात किए जाते हैं। उनमें भी 70 फीसदी खिलौने चीन से आते हैं। ऐसे में खिलौनों के मोर्चे पर आत्मनिर्भरता और उनके आयात पर व्यय हो रही विदेशी मुद्रा को बचाने के लिए सरकार रणनीतिक रूप से आगे बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। इसीलिए उसने खिलौना उद्योग को 24 प्रमुख प्राथमिकता वाले सेक्टरों में स्थान दिया है। गत वर्ष कोरोना संकट की चुनौतियों के बीच सरकार ने वोकल फॉर लोकल व आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत खिलौना उद्योग को आगे बढ़ाने तथा खिलौना बाजार से चीनी खिलौनों को हटाने की रणनीति बनाई। केंद्र के अलावा कई राज्य सरकारों द्वारा भी स्थानीय खिलौना उद्योग को प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए फरवरी 2020 में खिलौनों पर आयात शुल्क में 200 फीसद की बढ़ोतरी की गई है। इसके अलावा 1 सितंबर 2020 से आयातित खिलौनों के लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैडर्ड के मापदंड भी लागू कर दिए गए हैं। न्यूनतम क्वालिटी कंट्रोल नियम और वर्ष 2021-22 के बजट में मेक इन इंडिया अभियान को मिले प्रोत्साहन से भी स्वदेशी खिलौना उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा।

सरकार भारतीय खिलौना उद्यमियों को बड़ी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित कर रही

स्पष्ट है कि सरकार भारतीय खिलौना उद्यमियों को वैश्विक खिलौना बाजार में बड़ी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित कर रही है। सरकार की रणनीति है कि सिर्फ घरेलू बाजार में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय खिलौना बाजार में भी भारतीय खिलौनों की छाप दिखाई दे। खिलौना निर्माताओं से यह अपेक्षा की जा रही है कि वे ऐसे खिलौने बनाएं, जिनमें ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की झलक दिखे। उन खिलौनों को देखकर दुनिया वाले भारतीय संस्कृति, पर्यावरण के प्रति भारत की गंभीरता और भारतीय मूल्यों को भी समझ सकें। इस समय बाजार में उपलब्ध अधिकांश ऑनलाइन और डिजिटल गेम भारतीय अवधारणाओं पर आधारित नहीं हैं। वे न केवर्ल ंहसा को बढ़ावा देते हैं, बल्कि मानसिक तनाव भी पैदा करते हैं। ऐसे में डिजिटल गेमिंग के लिए भारत में अपार संभावनाएं एवं सामथ्र्य है। भारत जल्द ही अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा तो उसे देखते हुए खिलौना उद्यमी स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की कहानियों तथा उनके शौर्य और नेतृत्व को खिलौनों और गेमिंग की अवधारणाओं के रूप में प्रस्तुत कर सकते है।

विदेशी खिलौनों पर लगाम लगाने के सरकारी प्रयास खासे फलीभूत हुए

आंकड़े बताते हैं कि विदेशी खिलौनों पर लगाम लगाने के सरकारी प्रयास खासे फलीभूत हुए हैं। इसका फायदा जहां स्थानीय खिलौना व्यापारियों को मिला है तो इससे रोजगार एवं स्वरोजगार के अवसर भी बढ़े हैं। देश में कहीं भी सॉफ्ट टॉय मेकिंग को स्वरोजगार के रूप में सरलता से शुरू किया जा रहा है। इससे न केवल खिलौना आयात पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा बचेगी, बल्कि निर्यात बढ़ाकर ऐसी मुद्रा और अधिक अर्जित की जा सकेगी। यह तभी संभव है जब खिलौना उद्योग की राह में बची-खुची बाधाओं को जल्द दूर किया जाए। आवश्यक होगा कि खिलौना उद्योग की समस्याएं सुलझाने के लिए उससे संबंधित विभिन्न एजेंसियों के बीच उपयुक्त तालमेल बनाया जाए। साथ ही सरकार ने जो प्रोत्साहन दिए हैं, उनका उचित क्रियान्वयन सुनिश्चित हो। इसमें संदेह नहीं कि खिलौना उद्योग में आदिवासियों, महिलाओं और गरीबों को बड़ी संख्या में रोजगार प्रदान करने की क्षमता है। वैश्विक स्तर पर भारतीय खिलौनों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए नवाचार और वित्तपोषण के नए मॉडल को अपनाना जरूरी है। इस दिशा में नए विचार इनक्यूबेट करने, नए स्टार्टअप प्रोत्साहित करने, परंपरागत खिलौना बनाने वालों तक नई डिजाइन व आधुनिक तकनीक पहुंचाने और खिलौनों की नई बाजार मांग बनाने की डगर पर आगे बढ़ना होगा। देश में सुगठित खिलौना डिजाइन संस्थान की स्थापना भी आवश्यक होगी। खिलौना उद्योग के लिए वित्तीय पहुंच सुनिश्चित करने के साथ ही उन्हें जीएसटी से राहत देने पर भी विचार किया जाए।

भारत बनेगा खिलौनों का वैश्विक हब

उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार भारत को खिलौनों का वैश्विक हब बनाने और उसके वैश्विक बाजार में चीन को टक्कर देने की रणनीति के तहत देश में टॉय क्लस्टर को शीघ्र आकार देने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेगी। इसके साथ ही वह खिलौना बनाने वाले कारीगरों के कौशल विकास को प्राथमिकता दे ताकि नए विचार और सृजनात्मक तरीके से गुणवत्तापूर्ण खिलौनों का निर्माण संभव हो, जो वैश्विक मानकों पर खरे उतर सकें। खिलौना उद्योग का रणनीतिक विकास करके सरकार न केवल देश को खिलौना उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि वैश्विक बाजार में भी अपनी पैठ बढ़ाएगी। इसके निश्चित रूप से बहुआयामी लाभ होंगे।

( लेखक अर्थशास्त्री हैं )