राजीव सचान। इन दिनों मुस्लिम समाज के धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक नेतृत्व के बीच बड़ी हलचल है। इसका कारण केवल यह नहीं कि वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह, धार के भोजशाला की कमाल मौलाना मस्जिद और दिल्ली की कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद के मामले नए सिरे से सतह पर आ गए हैं और अदालतों में पहुंच रहे हैं। मुस्लिम नेतृत्व इन मामलों में अदालतों के संभावित फैसलों को लेकर संशकित-चिंतित हैं। यह स्वाभाविक है, लेकिन उसकी चिंता का एक अन्य कारण देश में खुद को एक्स मुस्लिम कहने वालों की बढ़ती सक्रियता और उनका मुख्यधारा में उपस्थिति दर्ज कराना है। दुनिया के कई अन्य देशों और खासकर अमेरिका और यूरोप में एक्स मुस्लिमों की सक्रियता एक आंदोलन का रूप ले चुकी है। अब भारत में भी ऐसा होता दिख रहा है।

एक साल पहले भारत में खुद को एक्स मुस्लिम कहने और अपने यूट्यूब चैनल के जरिये इस्लामी जगत की कुरीतियों और सहअस्तित्व में बाधक बनने वाली कट्टर मान्यताओं एवं धारणाओं पर अपने विचार खुलकर रखने वालों की संख्या महज दो-तीन थी। आज उनकी गिनती करना कठिन है, क्योंकि वे लगातार बढ़ रहे हैं। केरल के एक्स मुस्लिमों ने तो सार्वजनिक रूप से सामने आकर अपना एक संगठन भी बना लिया है। हर वर्ष नौ जनवरी को एक्स मुस्लिम दिवस मनाने वाले इस संगठन का उद्देश्य इस्लाम से बाहर आने वालों की मदद करना है।

अमेरिका, यूरोप के साथ इस्लामी देशों और यहां तक कि पाकिस्तान, ईरान और सऊदी अरब में भी एक्स मुस्लिमों की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही है, उससे चिंतित होकर एक मौलाना का कहना पड़ा कि आने वाले दिनों में इस्लाम छोडऩे वालों की सुनामी आ सकती है। पता नहीं उनकी आशंका कितनी सही है, लेकिन यह एक उल्लेखनीय घटना और बदलाव की एक बड़ी आहट है कि भारत के कुछ एक्स मुस्लिम अपनी पहचान छिपाए बिना अपनी बात कहने के लिए आगे आ गए हैं। अभी तक वे अपनी सुरक्षा के लिए संकट और सामाजिक बहिष्कार के भय से अपनी पहचान छिपाने को विवश थे, लेकिन अब वे खुलकर यूट्यूब चैनलों के साथ समाचार चैनलों पर भी आ रहे हैं। इनमें से साहिल और समीर प्रमुख हैं।

कुछ समय पहले इन्हें डराने-धमकाने के लिए कुछ कट्टरपंथियों ने उनसे दोस्ती गांठकर उनकी पहचान उजागर कर दी। मकसद यह था कि इससे वे डर जाएंगे, लेकिन उन्होंने डरने के बजाय सच के लिए लडऩे का जज्बा दिखाया। तमाम जोखिम के बाद भी वे न केवल खुलकर अपनी बात कह रहे हैं, बल्कि उन दकियानूसी मान्यताओं पर तथ्यों एवं तर्कों के साथ सवाल खड़े कर रहे हैं, जिनका जाकिर नाइक जैसे लोग छल के सहारे महिमामंडन करते रहते हैं। दिलचस्प यह है कि एक समय ये दोनों युवा जाकिर नाइक के मुरीद थेे, लेकिन अब इंसानियत और समरस देश-दुनिया के लिए समर्पित होकर एक नई राह पर हैं। वे ऐसी मान्यताओं से बिल्कुल भी सहमत नहीं कि सृष्टि अथवा कायनात का निर्माण किसी अल्लाह, ईश्वर या परमेश्वर ने किया है। उनकी नजर में जन्नत या स्वर्ग की अवधारणा कोरी कल्पना के अलावा और कुछ नहीं।

स्पष्ट है कि उनके ऐसे विचार धर्मगुरुओं को रास नहीं आते। वे उनसे जब-तब बहस तो करते हैं, लेकिन उनके सवालों का जवाब देने के बजाय उन्हें काफिर या मुर्तद यानी कत्ल के काबिल बताकर चलते बनते हैं, लेकिन अनेक मुस्लिम युवा उनकी बातों से प्रभावित हो रहे हैं। इसीलिए देश में इस्लाम त्यागने की घोषणा करने वालों की संख्या बढ़ रही है। इनमें से कई अपनी पहचान छिपाकर अपने यूट्यूब चैनल भी चला रहे हैं। अपनी पहचान उजागर करने वाले एक्स मुस्लिमों की सुरक्षा किस तरह खतरे में है, इसका पता इससे चलता है कि अभी इसी माह केरल के अस्कर अली का कुछ लोगों ने अपहरण करने की कोशिश की, ताकि वह वैज्ञानिक सोच के साथ समाज में सुधार को बढ़ावा देने वाले संगठन 'एसेंस ग्लोबल' द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपनी बात न कह सकें। संयोग से पुलिस समय पर पहुंची और उनकी जान बची।

खतरा उन्हें भी है, जो अपनी पहचान छिपाकर एक्स मुस्लिम, एथिस्ट अथवा एग्नास्टिक के रूप में सक्रिय हैं। इन्हें भी कत्ल की धमकियां मिलती रहती हैं। इनमें से एक 'सचवाला' हैं, जो कुरान के साथ अरबी भाषा के जानकार हैं और तीस साल सऊदी अरब में रहे हैं। इस दौरान वहां की मस्जिद में इमामत भी करते रहे हैं। बीते कुछ समय से वह भारत में रहकर अपना यू ट्यूब चैनल चला रहे हैं। पहचान छिपाने के बाद भी उन्हें अपना घर, परिवार छोड़कर दूसरे शहर जाना पड़ा। जब वहां भी खतरा पैदा हुआ तो उन्होंने तीसरे शहर में शरण ली। उन्हें लगता है कि जल्द ही उन्हें किसी नए ठिकाने पर जाना पड़ सकता है। उनसे भारत से लेकर पाकिस्तान के मुल्ला-मौलवी इसलिए ज्यादा खफा हैं, क्योंकि उनके सवालों का कोई जवाब उन्हें सूझता ही नहीं। वह एक तरह से एक्स मुस्लिम ही नहीं, एक्स मुल्ला भी हैं। चूंकि उन्हें इस्लामी इतिहास और साहित्य की कहीं गहरी जानकारी है, इसलिए उनके आगे किसी भी मुल्ला-मौलवी की दाल नहीं गलती।

यह खेद की बात है कि सभ्य समाज को चुनौती देने वाली धार्मिक मान्यताओं पर सवाल उठाने वाले इन लोगों को उस भारत देश में डर के साये में रहना पड़ रहा है, जहां ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने और यहां तक कि उसके अस्तित्व को नकारने वालों को ऋषि-मुनि की संज्ञा दी गई और जहां खुद को नास्तिक बताना सहज-सामान्य रहा। खेद की बात यह भी है कि सरकारें भी कट्टरता के खिलाफ अलख जगाने और बदलाव के वाहक बने ऐसे तर्कशील लोगों की न तो कोई मदद कर रही हैं और न ही उनकी सुरक्षा की चिंता कर रही हैं।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)