भरत झुनझुनवाला। वर्तमान में गिरती मांग को बढ़ाने का पहला उपाय लोगों को ऋण उपलब्ध करना है, जिससे वे उस रकम के जरिये बाजार से फ्रिज इत्यादि वस्तुएं खरीद सकें। पहली नजर में तो यह सही दिखता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि ऋण लेकर खपत करने से केवल तत्काल मांग बनती है और शीघ्र  ही कुल खपत में गिरावट आती है। मान लीजिए, आपने 100 रुपये का ऋण लिया तो उस पर 10 रुपये का ब्याज अदा करेंगे। पहले आपको खर्च के लिए 100 रुपये उपलब्ध थे जो अब घटकर 90 रुपये रह जाएंगे। इसलिए ऋण देकर खपत बढ़ाना तत्काल राहत पहुंचा सकता है, लेकिन यह समस्या का हल नहीं है। विशेषकर इसलिए कि कोविड-19 संकट के बने रहने के आसार हैं।

मांग पैदा करने का दूसरा उपाय है कि सरकार कुछ रकम लोगों के खातों में ट्रांसफर कर दे। इस दिशा में सरकार ने अपने कर्मचारियों को लीव ट्रैवल कनसेशन यानी एलटीसी के एवज में खपत करने की छूट दी है। यह सही कदम है, लेकिन सरकारी कर्मचारियों के माध्यम से मांग कम ही उत्पन्न होगी। अमीर को यदि 100 रुपये की अतिरिक्त आय होती है तो वह उसमें से 40 रुपये की खपत करता है और 60 रुपये की बचत करता है। इसका वह सोना या शेयर खरीदने में, बैंक में जमा करने में अथवा विदेश भेजने में उपयोग करता है। दूसरी तरफ, यदि किसी गरीब को 100 रुपये की अतिरिक्त आय होती है तो वह 90 रुपये की खपत करता है और केवल 10 रुपये की बचत करता है। इसलिए कहा जाता है कि अमीर की तुलना में गरीब की खपत की प्रवृत्ति ज्यादा प्रबल होती है। अत: सरकार को धनराशि का ट्रांसफर गरीब के खाते में करना चाहिए, लेकिन उसके सामने समस्या यह है कि इतनी बड़ी रकम आएगी कहां से? वर्तमान में अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी हुई है। सरकार की टैक्स वसूली दबाव में है। सरकार की आय कम है। एक उपाय यह भी है कि नोट छापकर रकम जनता के खाते में ट्रांसफर की जाए। हालांकि, यह प्रभावी नहीं होगा, क्योंकि नोट छापने से शीघ्र ही महंगाई बढ़ जाएगी।

इस विकट परिस्थिति में एक मात्र उपाय यह है कि सरकार आयात शुल्क में भारी वृद्धि करे। सरकार को एक वर्ष में आयात शुल्क से लगभग 170 हजार करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है। इसमें 50 प्रतिशत की वृद्धि कर दी जाए तो 85 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय हो सकती है, जिससे देश के 130 करोड़ लोगों को 700 रुपये प्रति व्यक्ति अथवा 3,500 रुपये प्रति परिवार प्रति वर्ष ट्रांसफर किया जा सकता है। गरीबों द्वारा इस रकम से माल की खरीद की जाएगी। चूंकि उनकी खपत की प्रवृत्ति अधिक होती है, इसलिए बाजार में माल की मांग पैदा होगी। आयात शुल्क बढ़ाने का दूसरा लाभ होगा कि देश में विदेश से मंगाए जाने वाले माल के दाम बढ़ जाएंगे और उसके अनुरूप घरेलू उत्पादन बढ़ेगा। गणेश जी की प्रतिमा चीन आयातित किए जाने के स्थान पर मुरादाबाद में बनेगी। घरेलू उत्पादन बढ़ने से आम आदमी को रोजगार मिलेगा। रोजगार से आय उत्पन्न होगी। कमाई होने से जनता का आत्मविश्वास बढ़ेगा। वे खर्च करने की हिम्मत कर सकेंगे क्योंकि उन्हें भरोसा होगा कि आने वाले समय में उनकी आमदनी बरकरार रहेगी।

इस नीति को लागू करने में विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ की समस्या है। हमने आश्वासन दे रखा है कि निर्धारित सीमा से ऊपर आयात शुल्क नहीं बढ़ाएंगे, लेकिन यह विपदा की स्थिति है। हमारे सामने प्रश्न है कि हम जिएंगे या मरेंगे? इस विकट परिस्थिति में आपद धर्म को अपनाना चाहिए। डब्ल्यूटीओ के नियमों से बंधे रहकर मरने का कोई औचित्य नहीं है। सरकार को कड़ा और क्रांतिकारी कदम उठाते हुए डब्लूटीओ से बाहर आकर आयात पर भारी शुल्क लगाना चाहिए, जिसके एक साथ दो लाभ होंगे। पहला यह कि बढे़ हुए आयात शुल्क से अर्जित रकम को सीधे ट्रांसफर कर देश के हर नागरिक के खाते में राशि भेजी जा सकेगी, जिससे वह बाजार से माल खरीदेगा। दूसरा यह कि आयात से संरक्षण मिलने से घरेलू उत्पादन में गति आएगी, रोजगार बढ़ेंगे और मांग बढ़ेगी। हां, आयात शुल्क बढ़ाने से आयातित गणेश जी की प्रतिमा के मूल्य बढ़ जाएंगे, लेकिन हमारे सामने चुनौती है कि हम विदेशी सस्ते माल की खपत कर अपने को गड्ढे में डालेंगे अथवा विदेशी महंगे माल के भार का वहन करके अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करेंगे।

(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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