[कुशल कोठियाल]: नैनीताल हाई कोर्ट के जनहित में दिए गए आदेशों की कड़ी में बीते सप्ताह एक और महत्वपूर्ण आदेश आया है। हाई कोर्ट ने राज्य में 434 दवाओं की बिक्री पर पूर्ण प्रतिंबध लगा दिया है। हाई कोर्ट ने औषधि नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रतिबंधित 434 दवाओं की बिक्री को प्रतिबंधित करते हुए मेडिकल स्टोरों में इन दवाओं के मिलने पर पुलिस की मदद से नष्ट करने के आदेश दिए हैं। साथ ही शिक्षण संस्थानों, निजी संस्थानों एवं सार्वजनिक स्थानों पर ड्रग कंट्रोल क्लब खोलने के आदेश दिए हैं। उक्त क्लबों के संचालक शिक्षा विभाग के अधिकारी होंगे। सरकार को प्रत्येक जिले में नशामुक्ति केंद्र खोलने को आदेशित किया गया है। कोर्ट ने दसवीं एवं बारहवीं के पाठ्यक्रम में नशे के दुष्प्रभाव पर आधारित पाठ पढ़ाए जाने के आदेश भी दिए हैं। इस आदेश का नशाखोरी के खिलाफ सक्रिय संस्थाओं में जहां स्वागत हुआ वहीं प्रदेश सरकार के जिम्मेदार महकमों में क्रियान्वयन को लेकर बेचैनी देखी जा रही है। जनहित याचिका पर दिए गए इस आदेश के व्यावहारिक पक्ष की विवेचना भी सरकारी स्तर पर शुरू हो गई है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड की युवा पीढ़ी नशे की जद में आती जा रही है। तमाम सरकारी प्रयास नाकाफी ही साबित होंगे, जब तक सिविल सोसायटी सक्रिय भागीदारी नहीं निभाएगी। उच्च न्यायालय का यह आदेश इस ओर सार्थक कदम ही माना जा रहा है। 

उत्तरकाशी में जघन्य अपराध

देवभूमि उत्तरकाशी में चार दिन पहले ही मानवता को शर्मिदा करने वाला जघन्य कांड हुआ। एक किशोरी को कुछ हैवान घर से उठाकर ले गए व सामूहिक दुष्कर्म के बाद उसकी निर्मम हत्या कर दी। इस कांड से पूरा प्रदेश सदमे व रोष में है। जगह-जगह प्रदर्शन व बंद का दौर जारी है। सरकार ने पांच जिलों में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी है, जिलों में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। सेना को भी तैयार रहने को कहा गया है। प्रकरण में छह लोगों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन असली अपराधी अभी भी पकड़ से बाहर हैं। पुलिस की मानें तो वह अपराधियों के काफी करीब पहुंच गई है। पर्वतीय जिलों में इस तरह का अपराध होना सरकार के लिए कानून व्यवस्था के समक्ष आने वाली बड़ी चुनौती का संकेत है। उत्तराखंडी समाज के लिए भी समाज में आ रही विकृति की आहट है, जिससे निपटने के लिए बिना देर किए कमर कसनी होगी।

मुकम्मल हो रही जांच और दबाव

उधमसिंह नगर जिले में एनएच 74 के 300 करोड़ रुपये से ज्यादा के घोटाले में एसआइटी जांच जैसे-जैसे तेजी पकड़ रही है, जिम्मेदार नौकरशाहों व उनके सफेदपोश आकाओं में बेचैनी बढ़ रही है। यह जांच त्रिवेंद्र रावत सरकार के जीरो टॉलरेंस अगेन्स्ट करप्शन के दावे की कसौटी भी बन गई है। पहले पटवारी, तहसीलदार फिर पीसीएस अफसर इसकी जद में आए तो किसी ने खुलेआम जांच का विरोध करने की जुर्रत नहीं की। अब जब दो आइएएस अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू हुई तो शासन में तूफान सा आ गया है। आइएएस एसोसिएशन सक्रिय हो गई है, दबाव बनाने के लिए मीडि‍या का एक सेक्शन भी जी जान लगा रहा है। राज्यवासियों का सीधा-साधा सवाल है कि अगर नौकरशाह पाक साफ हैं तो जांच रोकने या प्रभावित करने पर क्यों आमादा हैं, जांच से गुजरने से गुरेज क्यों? 

नहीं रहे हरदयाल सिंह

भारतीय हॉकी के स्वर्णिम सफर के सहभागी रहे हरदयाल सिंह ने 17 अगस्त को 95 साल की उम्र में दुनिया से अलविदा कह दिया। वह देहरादून में अपने परिवार के साथ रहते थे। वर्ष 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाली टीम में अहम भूमिका निभाने वाले हरदयाल ने अमेरिका के खिलाफ मैच में पांच गोल दागे थे। वह मैच भारत ने 16-0 से जीता था। उन्होंने बीस साल सेना में रह कर देश की सेवा की। खेल जगत से जुड़े लोग सरदार हरदयाल सिंह से प्रेरणा लेते थे। खेल प्रेमियों की यादों में वे हमेशा जिंदा रहेंगे।

हमेशा याद आएंगे अटल

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन से देवभूमि उत्तराखंड भी शोक संतप्त है। दरअसल अटल का उत्तराखंड से गहरा लगाव रहा। नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड अगर देश के मानचित्र पर 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया तो इसमें सबसे अहम भूमिका अटल बिहारी वाजपेयी की ही रही। उनके प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए ही अगस्त 2000 में लोकसभा व राज्यसभा से विधेयक पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी से उत्तराखंड का गठन हुआ। यही नहीं वर्ष 2003 में जब उत्तराखंड में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार थी, उस वक्त तिवारी के आग्रह पर नैनीताल आए वाजपेयी ने दलगत राजनीति को दरकिनार कर उत्तराखंड को आर्थिक पैकेज और विशेष राज्य का दर्जा प्रदान कर दिया। ज्यादातर लोग यह बात अच्छी तरह से जानते हैं देहरादून में अटल के कई मित्र भी रहे, जिनके साथ वे शहर की सड़कों पर स्कूटर की सवारी किया करते थे। उनके मित्र नरेंद्र स्वरूप मित्तल के पुत्र पुनीत मित्तल ने तो अपने पिता की बात का सम्मान करते हुए उस स्कूटर को अभी तक सहेज कर रखा हुआ है।

(राज्य संपादक, उत्तराखंड)