राजेश माहेश्वरी। Boycott of Chinese Goods पिछले कुछ वर्षों में जब भी भारत और चीन के संबंधों में तनाव आया है, या फिर सीमा पर चीन कोई विवाद पैदा करता है तो देश भर में उसकी प्रतिक्रिया दिखाई देती है। देश में चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान चल पड़ता है। सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्ट की भरमार हो जाती है जिसमें चीनी सामान नहीं खरीदने का आह्वान होता है। किसी भी नागरिक का अपने देश के प्रति प्रेम और दुश्मन के प्रति गुस्सा जायज है। लेकिन जब गुस्से में कहा जाता है कि चीन को सबक सिखाने के लिए चीनी सामान का बहिष्कार किया जाएगा तो यह बात पूरी तरह से व्यावहारिक दिखाई नहीं देती है। चीनी सामान हमारे बाजारों और घरों में इतनी घुसपैठ कर चुके हैं कि आप चाहकर भी उन्हें सिस्टम से हटा नहीं सकते हैं। आप अपने चारों ओर नजर घुमाकर देखें, आपको सैकड़ों ऐसे उत्पाद दिखाई देंगे जो चीन के बने हैं।

गलवन घाटी की घटना के बाद से देश में नए सिरे से चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान सोशल मीडिया पर छिड़ा हुआ है। यह अलग बात है कि इस मुद्दे पर सरकार की ओर से कोई बयान या बहिष्कार की बात सामने नहीं आई है। सरकार के स्तर पर ऐसा करना आसान नहीं है, क्योंकि भारत विश्व व्यापार संगठन के नियम-कानूनों से बंधा है। इसके बावजूद भारत सरकार ने साहस दिखाते हुए चीनी बहिष्कार की शुरुआत की है। रेलवे ने एक चीनी कंपनी का 471 करोड़ रुपये का ठेका रद्द कर दिया है। दूरसंचार विभाग ने बीएसएनएल को निर्देश दिए हैं कि 4जी को अपग्रेड करने में चीनी उपकरणों का इस्तेमाल न किया जाए।

अब सवाल यह है कि अगर चीन हमारे बाजारों में इतनी गहरी पैठ बना चुका है तो हम किस आधार पर चीनी सामान के बहिष्कार की बात करते हैं। बेशक गैर-जरूरी उत्पादों की आपूर्ति भारतीय सरकार और बाजार एकदम रोक सकते हैं, क्योंकि हमारे पास विकल्प हैं और हमारे एमएसएमई इन चीजों को बनाने में सक्षम हैं, लेकिन यह सच है कि भारत के करीब 70 फीसद उद्योग चीन के सहारे ही हैं। फार्मा का 70 फीसद कच्चा माल चीन ही सप्लाई करता रहा है। देश में स्मार्टफोन बाजार दो लाख करोड़ रुपये का है, जिसमें चीन की हिस्सेदारी 72 फीसद है।

दूरसंचार उपकरणों का बाजार 12,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें चीन की हिस्सेदारी 25 फीसद है। स्मार्ट टीवी बाजार में चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 45 फीसद है। देश में होम अप्लायंसेज का मार्केट साइज 50 हजार करोड़ रुपये का है, जिसमें चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 10 फीसदी है। इस सेगमेंट में हम आसानी से चीनी माल से निजात पा सकते हैं, लेकिन अगर कोई बड़ी चीनी कंपनी इस सस्ते उत्पादों के साथ उतरती है तो फिर मुश्किल होगी। देश में ऑटोमोबाइल कल-पुर्जों का बाजार 4.27 लाख करोड़ रुपये का है, जिसमें चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 26 फीसद है। बीते साल भारत-चीन ने करीब 92 अरब डॉलर का आपसी कारोबार किया है। इसमें चीन की हिस्सेदारी हमसे चार गुना ज्यादा है। ऐसे में चीनी सामान का पूर्णतया बहिष्कार कर पाना आसान नहीं दिखता।

वैसे जनभावनाओं का सम्मान करते हुए और चीन पर मानसिक दबाव बनाने के लिए सरकार 371 चीनी सामानों को रोकने की प्रक्रिया में तेजी लाने पर विचार कर रही है। व्यापारिक संगठनों ने चीन के तीन हजार उत्पादों का बहिष्कार करना तय किया है। उसकी भी सूची अलग है, लेकिन यह सब रातोंरात संभव नहीं है। वैश्वीकरण के इस दौर में यद्यपि आयात को रोक पाना असंभव है, लेकिन आयात शुल्क बढ़ाने जैसे उपायों से भी स्वदेशी के उद्देश्य को काफी हद तक पूरा किया जा सकता है। सरकार के जनभावनाओं के अनुरूप ही चीन के साथ अपने रिश्ते आगे बढ़ाने होंगे। वहीं भारतीय बाजारों से चीन की दखल को आत्मनिर्भर भारत के माध्यम से ही काफी हद तक कम किया जा सकता है।

[लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं]