[ ब्रह्मा चेलानी ]: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय जापान दौरे के लिए रविवार को टोक्यो पहुंच गए हैं। बीते चार वर्षों में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबी के साथ यह उनकी 12वीं मुलाकात है। मोदी के आगमन पर एबी उन्हें अपना सबसे भरोसेमंद दोस्त बताते हुए द्विपक्षीय रिश्तों को नए क्षितिज पर ले जाने का भरोसा जता चुके हैं। इस वार्ता के दौरान दोनों नेता सैन्य साझेदारी को एक नया मुकाम दे सकते हैं जिसमें दोनों देशों की एक दूसरे के ठिकानों तक पहुंच होगी। एशिया के सबसे संपन्न-समृद्ध लोकतंत्र और सबसे बड़े लोकतंत्र उस ‘मुक्त एवं खुली हिंद-प्रशांत रणनीति’ के अहम हिस्से हैं जिसे अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन मजबूती से आगे बढ़ा रहा है। वास्तव में एबी ही इस रणनीति के असल शिल्पकार हैं जिसकी अवधारणा उन्होंने औपचारिक रूप से दो साल पहले नैरोबी में अफ्रीकी नेताओं को संबोधित करते हुए सामने रखी थी। आज हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विधिसम्मत, मुक्त व्यापार, आवाजाही की आजादी और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए उपयुक्त ढांचा बनाने के लिहाज से जापान और भारत उसकी अहम धुरी हैं।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ‘मुक्त एवं स्वतंत्र’ क्षेत्र बनाने के लिए ट्रंप प्रशासन भारत-जापान संबंधों के महत्व को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुका है। ट्रंप की हिंद-प्रशांत नीति उनके पूर्ववर्ती ओबामा की एशिया केंद्रित नीति का ही नया रूप है। ओबामा ने 2011 में इसे पेश किया था जिसे बाद में ‘एशियाई पुनर्संतुलन’ का नाम दिया गया। अमेरिका को लगा कि उसने पश्चिम एशिया पर जरूरत से ज्यादा ध्यान दिया और अब इस नीति को सुधारने की दरकार है। अब अमेरिका अपने दीर्घकालिक हितों के लिए एशिया की अहमियत पर फिर से ध्यान केंद्रित कर रहा है।

एशियाई सुरक्षा प्रतिस्पर्धा मुख्य रूप से सामुद्रिक मोर्चे पर ही चल रही है। ’हिंद-प्रशांत’ शब्द का बढ़ता चलन भी इसे दर्शाता है जो हिंद और प्रशांत जैसे दो महासागरों के मिलन का भी प्रतीक है। इस क्षेत्र में भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा भी जोर पकड़ रही है जिसमें दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं, बढ़ता सैन्य खर्च और नौसैनिक क्षमताएं, प्राकृतिक संसाधनों को लेकर गलाकाट प्रतिस्पर्धा और कुछ खतरनाक इलाके शामिल हैं। इस तरह देखें तो वैश्विक सुरक्षा और नई विश्व व्यवस्था की कुंजी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हाथ में ही है।

दरअसल हिंद-प्रशांत क्षेत्र को और व्यापक बनाकर अमेरिका एक तरह से चीन की बेल्ट एंट रोड इनिशिएटिव जैसी योजना की काट तलाश रहा है जिसमें चीन का भारी निवेश हिंद महासागर की परिधि में पड़ने वाले देशों में ही हो रहा है। जिबूती में तैयार चीन के पहले विदेशी नौसैनिक अड्डे और मालदीव के कई निर्जन द्वीपों पर उसके काबिज होने के बाद हिंद महासागर भी बीजिंग का भू-सामरिक अखाड़ा बनता जा रहा है। इससे पहले वह दक्षिण चीन सागर में कई कृत्रिम द्वीप बनाकर उनका सैन्यीकरण करने में सफल रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी के जापान दौरे के दूसरे दिन कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर होने हैं। इसमें साझेदारी के जरिये नौसैनिक मोर्चे पर जागरूकता बढ़ाने वाला करार भी शामिल है। जापानी और भारतीय सेनाओं के लिए लॉजिस्टिक यानी सैन्य तंत्र साझेदारी अनुबंध होना है। पहले इसे एक्विजिशन एंड क्रॉस सर्विसिंग एग्र्रीमेंट यानी एसीएसए का नाम दिया गया था। यह दोनों सेनाओं के लिए बेहद जरूरी हो गया है, क्योंकि वे कई दांव एक साथ आजमा रही हैं जिनमें त्रिस्तरीय सैन्य अभ्यास भी एक है। इसमें अमेरिकी नौसेना भी शामिल होती है जिसे हिंद और प्रशांत महासागर में अंजाम दिया जाता है। 

भारत के साथ एसीएसए करार से हिंद महासागर में जापान की बढ़ती नौसैनिक शक्ति को स्थायित्व मिलेगा। इसमें जापानी पोतों को भारतीय नौसैनिक ठिकानों पर ईंधन और मरम्मत कराने की सुविधा मिलेगी। वहीं जापानी सामुद्रिक आत्मरक्षा बल यानी जेएमएसडीएफ को भी अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में भारतीय नौसैनिक सुविधाओं की सौगात मिलेगी जो मलक्का जलडमरूमध्य के पश्चिमी द्वार के काफी नजदीक स्थित है।

जापान और चीन का काफी व्यापार और तेल आयात का एक बड़ा हिस्सा इसी मार्ग से गुजरता है। एबी के शासन में सेना पर कई कानूनी एवं संवैधानिक प्रावधानों को कुछ नरम बनाया गया है। इससे जापानी नौसेना की भूमिका का दायरा बढ़ा है। अब वह जापानी तटों से दूर भी सक्रियता से संचालन कर सकती है। वास्तव में संयुक्त सैन्य अभ्यास से लेकर सैन्य प्रशिक्षण के जरिये क्षेत्रीय सुरक्षा में भागीदारी को लेकर जापान का नया उत्साह उंसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बदलते भू-सामरिक समीकरणों का एक प्रमुख खिलाड़ी बनाता है।

भारत ने अमेरिका और फ्रांस के साथ भी सैन्य ढांचे वाला अनुबंध किया हुआ है। इन दोनों के र्भी ंहद और प्रशांत महासागर में अहम सैन्य ठिकाने हैं। ऐसे में जापान के साथ सैन्य ढांचे की साझेदारी वाला करार और व्यापक द्विपक्षीय नौसैनिक सहयोग भारतीय नौसेना को पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपनी पैठ बनाने में मदद करेगा। भारत और जापान का न तो इतिहास में कोई टकराव रहा है और न ही किसी महत्वपूर्ण रणनीतिक मुद्दे पर उनमें असहमति है इस लिहाज से दोनों स्वाभाविक साझेदार के रूप में ही नजर आते हैं जिनके परस्पर हित जुड़े हुए हैं।

वास्तव में जापान ही इकलौता ऐसा देश है जिसे भारत के कुछ संवेदनशील इलाकों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर काम करने की अनुमति है। इनमें पूर्वोत्तर और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं। अगर जापान और भारत अपने रिश्ते में सुरक्षा से संबंधित कुछ ठोस पहलू जोड़ते हैं तो उनकी रणनीतिक साझेदारी एशिया में बाजी पलटने वाली साबित हो सकती है। व्यापार एवं निवेश पर जितना जोर दिया जा रहा है उसे व्यापक रणनीतिक सहयोग के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। भारत में जापान के राजदूत केंजी हीरामत्सू भी कहते हैं कि अब सामरिक भागीदारी को बढ़ाने की दरकार है।

शी चिनफिंग के साथ एबी की हालिया बैठक और अप्रैल में मोदी के साथ बैठक इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकतीं कि भारत और जापान चीन की गंभीर चुनौती का सामना कर रहे हैं। यह व्यापार, तकनीक एवं अन्य मोर्चों पर ट्रंप का चीन पर दबाव ही है जिसने चिनफिंग को मोदी और एबी जैसे नेताओं से संपर्क करने को विवश किया।

चिनफिंग को उम्मीद है कि जब अमेरिका की चीन नीति में बुनियादी रूप से बदलाव हो रहा है तो उसे जापान का वैसा ही साथ मिलेगा जैसे उसने 1989 में थियानमेन चौक पर छात्रों के नरसंहार को लेकर फंसे चीन का दिया था। तब चीन पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने वाला जापान शुरुआती देशों में एक था। चीन के साथ रिश्तों को लेकर अब जापान भी व्यावहारिक नजरिये वाला हो गया है। वहीं भारत भी किसी भ्रम में नहीं है कि चिनफिंग के नेतृत्व में चीन हेकड़ी छोड़कर अच्छा पड़ोसी बनने जा रहा है।

इस परिदृश्य में एबी-मोदी वार्ता कई मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने का एक अवसर है जिसमें दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन, शक्ति स्थायित्व एवं सामुद्रिक सुरक्षा में परस्पर योगदान पर चर्चा कर सकते हैं। जहां तक वाशिंगटन की बात है तो दक्षिण चीन सागर में बदलते हालात से निपटने के लिए उसे स्पष्ट नीति की दरकार है, क्योंकि ‘स्वतंत्र एवं मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र’ की अवधारणा को मूर्त रूप देने के लिए यह बेहद अहम रणनीतिक गलियारा है।

[ लेखक सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं ]