विनोद बंसल। यूं तो वेब जगत की कहानी और उसके करतब ना तो नए हैं और ना ही किसी से छिपे हैं। किंतु पिछले कुछ वर्षों में इसकी सामग्री (कंटेंट) में आमूल-चूल परिवर्तन देखे गए हैं। यह दुनिया बड़ी ही निराली है जिसमें विश्व की अच्छी-बुरी, सच्ची-झूठी हर प्रकार की जानकारी व मनोरंजन आसानी से उपलब्ध है। इसे कोई भी व्यक्ति विश्व के किसी भी कोने से सरलता से ना केवल उपयोग कर सकता है, बल्कि अपलोड भी कर सकता है।

जहां यह वेब जगत जहां ज्ञान, सूचनाओं, जानकारियों, उपलब्धियों तथा समाचारों का सुगम व त्वरित उपलब्ध माध्यम है, वहीं इसमें अनेक विकृतियां भी हैं। यह संसार के अनेक अधर्मों, अपराधों, दुष्कर्मों, व्यसनों, दुराचारों के साथ आतंकवाद, सांप्रदायिकता, विद्वेष तथा देश-द्रोह तक को प्रोत्साहित करता है। इसमें स्वच्छंदता का स्तर इतना गिर चुका है कि धार्मिक, सामाजिक व राष्ट्रीय मानबिंदुओं का उपहास तो ऐसे उड़ाया जाता है कि जैसे इनका कोई मूल्य है ही नहीं।

अनेक हिंदू देवी-देवताओं के प्रति फूहड़ता व निकृष्टतम मजाक, धर्म-ग्रंथों, मठ-मंदिरों, ऋषि-मुनियों, संतों-महापुरुषों, स्वतंत्रता-सेनानियों, अमर-बलिदानियों, वीर-माताओं तथा ऐतिहासिक व पुरातन कलाकृतियों इत्यादि के विषय में घटिया मानसिकता का प्रसारण आज सोचने को मजबूर करता है। इस वेब जगत में फैली माता-पिता, गुरुजनों तथा मार्गदर्शकों के प्रति घृणा, अश्लीलता व नग्नता किशोर व युवा वर्ग के मन-मस्तिष्क को भी बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं। अनेक लोग अपने धर्म-पथ से विमुख हो कर देश, धर्म, समाज व न्याय व्यवस्था के ही नहीं, बल्कि स्वयं के भी जानी दुश्मन बनते देखे गए हैं।

असंख्य वेब साइट्स, वीडियो चैनल, वेब सीरीज, कॉमेडी शो, एप्स आदि अनवरत चलते रहते हैं। बात चाहे नेट फ्लिक्स पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों –लीला-, -सेक्रेड गेम्स- आदि की हो या अमेजन प्राइम वीडियो के -पाताल लोक- सरीखे कार्यक्रमों की या फिर एएलटी बालाजी के -एक्सएक्सएक्स2- की हो या एमएक्स प्लेयर के –रक्तांचल- की, वूट के -असुर- की हो या डिज्नी प्लस की तथाकथित कलाकृतियों की या फिर अन्य अनगिनत कॉमेडी शो की, किसी ने भी तो कसर नहीं छोड़ी। इन रचनाओं के कुपात्रों में चाहे कुनाल कामरा हो या एजाज खान, आलोकेश सिन्हा हो या सुरलीन कौर, सभी ने एक ही सोच को परिलक्षित किया है, वह यह कि हिंदू धर्म का कितना ही उपहास उड़ा लो, क्या फर्क पड़ता है। भगवान ब्रह्मा-विष्णु-महेश हों या श्री लक्ष्मी-गणेश-सरस्वती, माता पार्वती व सीता हों या श्रीराम-कृष्ण, कोई भी तो नहीं छूटा प्रसिद्धि पाने की इनकी लालसा से। संतों-महंतों व ऋषि-मुनियों की तो बात ही क्या!

एक बात और है कि ऐसी ही बातें यदि किसी अन्य गैर-हिंदू सेकुलर संप्रदाय या उनके मानबिंदुओं के विषय में गलती से भी इनके मुख से निकल गईं होतीं तो इन जनाब या मोहतरमा का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया होता। एक प्रश्न यह भी है कि क्या ये लोग मात्र अपनी प्रसिद्धि या पैसों के लिए यह सब कर रहे हैं या ये एक सोची-समझी रणनीति के तहत हिंदू धर्म तथा भारतीय संस्कृति के विरुद्ध किसी गहरे षड्यंत्र के सहभागी हैं। क्या यह सब सिर्फ किसी व्यक्ति, निर्माता या निर्देशक की हिंदू द्रोही या देश विरोधी मानसिकता की उपज है या ईसा-मूसा व कम्यूनिस्टों के इशारों का परिणाम है?

इस सब का एक कारण यह भी है कि असीमित परिमिति में फैली इस वेब जगत की समालोचना करने वाला कोई है ही नहीं। यह पूरी तरह से अनियंत्रित व निरंकुश दुनिया है। फिल्मों को प्रमाणित करने के लिए फिल्म सर्टिफिकेशन बोर्ड है तथा टीवी सीरियलों को भी उनके प्रसारण पूर्व बारीकी से जांचा-परखा जाता है। किंतु इस प्रकार की कोई भी व्यवस्था इस संपूर्ण वेब जगत के लिए नहीं है।

हाल ही में विश्व हिंदू परिषद ने वेब जगत के दोषों के निवारण तथा उसे समस्त भारत वासियों के लिए सर्वथा उपयोगी बनाने हेतु भारत से अपलोड होने वाले या भारत में दिखाए जाने वाली समस्त सामग्री की जांच व प्रमाणन की उचित व्यवस्था के लिए एक वेब जगत नियामक बोर्ड बनाए जाने के लिए भारत सरकार को पत्र लिखा है, ताकि इसके दोषों को दूर कर इसे व्यवस्थित करते हुए सभी के लिए सदुपयोगी बनाया जा सके। वैसे भी निरंकुश व्यवस्था अनेक प्रकार के दोषों को जन्म देती है तो इसके लिए निदेशकों की उचित व्यवस्था आखिर क्यों ना हो? परिषद की ओर से तमाम संबंधित कंपनियों व संस्थानों को भी इस बारे में पत्र लिखकर अनुरोध किया गया है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि जिन कंपनियों, निर्माताओं, निर्देशकों या कलाकारों के द्वारा यह सब किया जा रहा है, उन्हें तुरंत बंद कर देना चाहिए। भारत सरकार अविलंब इस पर कार्रवाई कर वेब जगत स्वच्छता अभियान प्रारंभ करे तथा इसे संक्रमित करने वालों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था करे। सभी संबंधित पक्षों को यह समझाना होगा कि राष्ट्र-भक्त हिंदू समाज सहिष्णु तो है, किंतु कायर नहीं। कहीं ऐसा ना हो कि पीड़ित समाज अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए सड़कों पर उतर आए। इसके लिए सरकार को भी इसकी गंभीरता को समझते हुए अपनी ओर से सार्थक पहल करने के लिए आगे आना चाहिए। समय रहते यदि सरकार हमारी संस्कृति पर हो रहे प्रहार को नहीं रोक पाई तो फिर समाज को इसके संक्रमण से बचाने के लिए वैक्सीन विकसित करना होगा।

[राष्ट्रीय प्रवक्ता, विश्व हिंदू परिषद]