अरविंद जयतिलक। आपसी आर्थिक, वाणिज्यिक समझदारी और साझेदारी का ही परिणाम है कि आज भारत में विदेशी निवेश के लिहाज से फ्रांस तीसरा सबसे बड़ा निवेशक देश बन चुका है। भारत में 400 से अधिक फ्रांस की कंपनियां काम कर रही हैं और सभी कंपनियों का संयुक्त टर्नओवर तकरीबन 25 अरब डॉलर से अधिक है। फ्रांस भारत का भरोसेमंद दोस्त इसलिए भी है कि जब परमाणु परीक्षण से नाराज दुनिया के ताकतवर देश भारत पर प्रतिबंध थोप रहे थे तब (1998) फ्रांस ने भारत के साथ रणनीतिक समझौते को आयाम दिया।

इतिहास में भी जाएं तो भारत और फ्रांस के संबंध लगातार परिवर्तित और मजबूत होते रहे हैं। इंग्लैंड की ही भांति फ्रांस भी भारत में एक औपनिवेशिक ताकत रहा है। बावजूद इसके दोनों देशों के बीच कभी भी खटास उत्पन्न नहीं हुई और फ्रांस द्वारा भारत के साथ आधुनिकीकरण के दौर में व्यापार, अर्थव्यवस्था, तकनीकी सहायता, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, परमाणु एवं रक्षा क्षेत्रों में नवीन सहयोग विकसित किया गया।

गौर करें तो दोनों देशों के बीच आर्थिक और सामरिक क्षेत्रों में बढ़ते सहयोग का मूल आधार विकसित रणनीतिक-राजनीतिक समझदारी ही है। विगत दो दशकों में भारत-फ्रांस संबंधों को एक नया आयाम मिला है और दोनों देशों ने राजनीतिक, आर्थिक व सामरिक संबंधों में बेहतरी के लिए गंभीर प्रयास किया है। फ्रांस के नेतृत्व के दृष्टिकोण में बदलाव के साथ-साथ कुछ द्विपक्षीय बाध्यताओं ने भी दोनों को एक-दूसरे के निकट लाया है। यह तथ्य है कि चीन युद्ध के बाद भारत न केवल महाशक्तियों, अपितु अफ्रीका व एशियाई देशों से भी अलग-थलग पड़ गया था।

भारत को एक ऐसे देश के प्रति आकृष्ट होना स्वाभाविक था, जिससे उसका काई क्षेत्रीय विवाद न रहा हो। फ्रांस व भारत के मध्य विचारधारा के स्तर पर विरोधाभास होने के बावजूद भी डी गॉल और पंडित नेहरू की विदेश नीति संबंधित पहल में कई प्रकार की समानताएं थीं जो एक-दूसरे को आकर्षित कीं। इसके अलावा 1962 में भारत व फ्रांस के बीच क्षेत्रों के हस्तांतरण संबंधी संधि के अनुमोदन ने भी दोनों देशों के रिश्तों में मिठास घोली।

उल्लेखनीय तथ्य यह कि फ्रांस सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए भारतीय प्रयास का समर्थन करने वाले प्रथम देशों में से एक था। फ्रांस आज भी अपने उसी पुराने रुख पर कायम है। दरअसल दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व में कई द्विपक्षीय तथा अंतरराष्ट्रीय विषयों के संबंध में समान सोच है और इस समानता के विकास का मुख्य कारण दोनों देशों के नेताओं द्वारा एक-दूसरे के यहां यात्राएं करने से उत्पन हुआ सद्भाव है।

भारत मुख्य रूप से फ्रांस से मशीनरी एवं कलपुर्जे मंगाता है। भारत से फ्रांस को होने वाले निर्यात में परंपरागत एवं गैर परंपरागत सामान एवं सेवाएं शामिल हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात जो दोनों देशों के व्यापार में अहम है वह यह कि 1994 के बाद व्यापार संतुलन हमेशा भारत के पक्ष में बना हुआ है। गौर करें तो भारत व फ्रांस के मध्य नजदीकियां विकसित होने का मुख्य कारण द्विपक्षीय सहयोग के साथ-साथ फ्रांस का तीसरी दुनिया के प्रति दृष्टिकोण भी रहा है। सामरिक लिहाज से भी दोनों देशों के बीच परंपरागत जुड़ाव रहा है।

1971 के भारत-पाक युद्ध के उपरांत भारत दक्षिण एशिया में एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरकर सामने आया। दशकों तक वह अपने रक्षा उत्पादन में पूर्व सोवियत संघ पर निर्भर रहा, लेकिन बदलते वैश्विक परिदृश्य में सामरिक सहयोग के क्षेत्र में भारत व फ्रांस की निकटता बढ़ी है। भारत को फ्रांस की ओर से राफेल युद्धक विमान प्राप्त हुए हैं। द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय सहयोगों के अतिरिक्त सद्भावना ने भी दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को नई ऊंचाई दी है। इस प्रकार जाहिर है कि दोनों देशों के नेतृत्व के बीच बढ़ती निकटता भारत और फ्रांस के हित में तो है ही साथ ही वैश्विक संतुलन साधने की दिशा में भी एक क्रांतिकारी पहल है।