[डॉ.सुशील कुमार सिंह]। इन दिनों देश अभूतपूर्व आर्थिक चुनौती का सामना कर रहा है। अर्थव्यवस्था की गाड़ी डगमगा गई है। मगर एक सुखद पहलू यह है कि कोरोना की बड़ी मार के बाद भी भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ रहा है। देश में चौतरफा निराशाजनक स्थिति है और  उदासीनता के परिवेश से सभी जकड़े हुए हैं। बावजूद इसके विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 50 हजार करोड़ डॉलर हो जाना एक सुखद आश्चर्य ही कहा जाएगा। 

फिलहाल विदेशी मुद्रा भंडार की बढ़त के बीच भारत का बचा हुआ विकास दर यदि  शीघ्र पटरी पर नहीं आता है तो बढ़त ले चुकी आर्थिक चुनौतियां देश में नाउम्मीदी का माहौल बनाने में कोई कोर-कसर  नहीं छोड़ेंगी। विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने का एक फायदा यह होता है कि इससे सरकार और आरबीआइ को देश के बाह्य और आंतरिक आर्थिक मामलों को सुलझाने में कहीं अधिक मदद मिलती है। 

गौरतलब है कि मई में विदेशी मुद्रा भंडार में 1,240 करोड़ डॉलर का उछाल आया और माह के अंत तक यह लगभग 50 हजार करोड़ डॉलर के पास पहुंच गया। रुपये में इसे लगभग 37 लाख करोड़ से अधिक कह सकते हैं।

वैसे कई लोग सोचते होंगे कि जब  देश की माली हालत सबसे बड़े आर्थिक  गिरावट में है, उद्योग-धंधे तथा सेवा क्षेत्र समेत छोटे-बड़े कारोबार कोरोना की चपेट में हैं तो ऐसे में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कैसे बढ़ रहा है।

जाहिर है इसका कोई आर्थिक कारण तो होगा। वैसे विदेशी मुद्रा भंडारण की बढ़त में भारत ही नहीं, बल्कि चीन भी इस मामले में सुखद स्थिति में है। गौरतलब है कि मई में चीन के विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़े से पता चलता है कि माह के अंत तक यहां यह भंडार 31 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया जो अप्रैल की तुलना में 0.3 फीसद बढ़त लिए हुए है। 

हालांकि इन दिनों चीन कोरोना से राहत में है और भारत कोरोना के बीच उलझा हुआ है। ऐसे में भले ही चीन बढ़त में हो, पर भारत में मिल रही बढ़त उसकी बेहतरी का सूचक है। विदेशी मुद्रा भंडार आगामी एक वर्ष  के आयात बिल के लिए शुभ संकेत दे रहा है। साथ ही इसकी बढ़त से यह भी संकेत मिलता है कि डॉलर की तुलना में रुपया मजबूत होगा और भुगतान संतुलन के मामले में सकारात्मकता आएगी।

भारत की जीडीपी भारत के विकास का जरिया है और यहां की कुल जीडीपी में 15 प्रतिशत विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा है। इस मामले में यदि संतुलन बरकरार रहता है तो 15 फीसद वाला हिस्सा मजबूत रहेगा, लेकिन बाकी के 85 फीसद के लिए सरकार को एड़ी-चोटी का जोर लगाना ही होगा। विदेशी मुद्रा भंडार की बढ़त सभी समस्याओं का हल नहीं है लेकिन बढ़त ले चुकी समस्याओं का आनुपातिक हल जरूर है।

अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने का प्रमुख कारण भारतीय शेयरों में विदेशी निवेश, साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश माना जा रहा है। गौरतलब है कि विदेशी निवेशकों द्वारा अप्रैल और मई माह में कई भारतीय कंपनियों में रकम लगाई गई जो इसकी बढ़त का एक बड़ा कारण है। साथ ही भारतीय कंपनियों

पर इस कदम से विश्वास भी बढ़ता दिखाई देता है।

विश्व में सर्वाधिक विदेशी मुद्रा भंडार वाले देशों की सूची में भारत पांचवें स्थान पर है और चीन पहले स्थान पर।कोरोना संकट से उपजी समस्या के चलते कई यूरोपीय और अमेरिकी कंपनियां चीन से विस्थापित होने का मन बना चुकी हैं और प्राथमिकता में भारत को भी देखा जा सकता है। ऐसे में भारत की स्थिति तुलनात्मक रूप से सुदृढ़ होनी चाहिए।

अमेरिका 19 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ पहले तो चीन 13 ट्रिलियन के साथ दूसरे नंबर पर है। भारत लगभग तीन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है जो 2024 तक पांच ट्रिलियन डॉलर के मसौदे पर आगे बढ़ रहा था, मगर गत एक तिमाही में सारे प्रयासों पर पानी फिर गया है। हालांकि कोरोना महामारी से पहले भी भारत की अर्थव्यवस्था सुस्त थी। मूडीज की रिपोर्ट ने भी भारत की आर्थिक वृद्धि अनुमान  को घटाकर 0.2 फीसद कर दिया है।

इतना ही नहीं, विकास दर को मौजूदा स्थिति के अंतर्गत ऋणात्मक होने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।  हालांकि मूडीज की रिपोर्ट यह भी कहती है कि 2021 में भारत की वृद्धि दर 6.2 फीसद  होगी। यह तो आने वाला  समय बताएगा पर आरबीआइ का संदर्भ भी विकास दर के मामले में कहीं अधिक गिरावट से युक्त देखा जा सकता है।

कोरोना का मीटर इन दिनों भारत में तेजी लिए हुए है और लॉकडाउन को लगभग समाप्त कर अनलॉक को सिलसिलेवार तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है। फिलहाल विदेशी मुद्रा भंडार उखड़ती अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा मरहम है। विदेशी मुद्रा भंडार सोना और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशेष आहरण अधिकार यानी एसडीआर समेत विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों हेतु भारत द्वारा संचित एवं आरबीआइ द्वारा नियंत्रित की जाने वाली बाहरी संपत्ति है।

गौरतलब है कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार में अधिकांश हिस्सेदारी विदेशी मुद्रा संपत्तियों की ही है। जब संकट का समय आता है और उधार लेने की क्षमता घटने लगती है तो विदेशी मुद्रा आर्थिक तरलता को बनाए  रखने में मददगार होती है। ऐसे में भुगतान संतुलन से लेकर कई आर्थिक संतुलन  डगमगाने से पहले संभल जाते हैं।

( निदेशक, वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन)