सीता। आधार को लेकर विगत बुधवार को आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला बेहद समझदारीपूर्ण और संतुलित है। सुप्रीम कोर्ट ने आधार के रूप में यूनिक आइडी के विचार का तो समर्थन किया, लेकिन इसके अतिशय इस्तेमाल पर आपत्ति जताई। अब सरकार और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआइडीएआइ) आधार से जुड़ी दिक्कतों का ज्यादा गंभीरतापूर्वक आकलन करते हुए उनका समाधान तलाशने की कोशिश करें तो बेहतर है। इस संदर्भ में सरकार को क्या करना चाहिए? सबसे पहले तो आधार पंजीयन, प्रमाणीकरण और जानकारियों के अपडेशन की पूरी प्रक्रिया को यथासंभव सरल व आसान बनाए। इसके लिए विभिन्न सुगम इलाकों में पंजीयन व अपडेशन केंद्र खोलने से ही काम नहीं चलेगा। उसे यह समझना होगा कि इस सबके बावजूद लोगों को आधार से जुड़ी जानकारी में मामूली फेरबदल के लिए भी दो-दो महीने तक इंतजार करना पड़ता है। इन व्यवस्थाओं की समीक्षा करना और प्रक्रियाओं को सुधारना सरकार की शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए।

न बनाए अनिवार्य
दूसरा, सरकार हर चीज में आधार अनिवार्य करने की प्रवृत्ति से बाज आए। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में खासतौर पर कहा कि बैंक खाता, मोबाइल फोन कनेक्शन और स्कूल में दाखिला आदि के लिए आधार की अनिवार्यता की जरूरत नहीं। ऐसे में बेहतर यही होगा कि सरकार खुद भी आधार की अनिवार्यता की सूची की समीक्षा करे और देखे कि कहां-कहां इसे खत्म किया जा सकता है। इससे आम आदमी को काफी राहत हो जाएगी, जिसके लिए कई बार सिर्फ इस वजह से काफी मुश्किलें हो जाती हैं कि उसके पास आधार नहीं है या दर्ज जानकारी को अपडेट करना जरूरी है अथवा उसका बायोमेट्रिक सत्यापन नाकाम हो जाता है। तीसरा, आधार को स्वैच्छिक भी करना चाहिए। आखिर कोई ऐसा शख्स जो सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं लेना चाहता, उसके लिए आधार पंजीयन कराने की जरूरत क्यों होनी चाहिए? वह अपनी पहचान प्रमाणित करने के लिए अन्य दस्तावेज पेश कर सकता है। पहचान के सत्यापन की प्रक्रिया को भी ज्यादा आसान बनाया जाए। ऐसा करने से संभवत: लोग स्वयं खुशी-खुशी आधार पंजीयन कराने के लिए प्रेरित होंगे। यह उनके लिए एक विकल्प होना चाहिए ना कि सरकार द्वारा उन पर थोपी गई अनिवार्यता।

आधार का विकल्‍प
निजी सेक्टर से सेवाएं लेने के लिए भी आधार का विकल्प उपलब्ध होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति मोबाइल फोन कनेक्शन लेना चाहता है और अपना आधार डिटेल्स देना चाहे, क्योंकि इससे केवाइसी (ग्राहक को जानो) प्रक्रिया जल्द निपटती है तो यह उसके व टेलीकॉम कंपनी के मध्य स्वैच्छिक मामला होना चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में थोड़ी कमी लगती है। कोर्ट के फैसले से यह आभास होता है कि निजी कंपनियों को केवाइसी के लिए भी आधार संबंधी जानकारी नहीं मांगनी चाहिए। जबकि इलेक्ट्रॉनिक केवाइसी प्रक्रिया वास्तव में कागजी दस्तावेजों के आधार पर होने वाली केवाइसी से ज्यादा तेज व किफायती है और ग्राहक व कंपनी, दोनों के लिए ज्यादा सहज भी है। चौथा, केंद्र व राज्य सरकारों को इस तथ्य को स्वीकारना चाहिए कि कई बार वास्तविक हितग्राही भी सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से सिर्फ इसलिए वंचित रह जाते हैं, क्योंकि उनके पास आधार नहीं है या फिर प्रमाणीकरण के स्तर पर दिक्कतें आ गईं। ऐसे लोगों की संख्या भले ही बहुत कम या नगण्य हो, लेकिन यदि एक भी वास्तविक हितग्राही छूट रहा है तो यह गलत है।

समस्‍याओं का तुरंत निपटारा
ऐसी समस्याओं को तुरंत सक्रियतापूर्वक निपटाना चाहिए। केंद्र व राज्य सरकारों के लिए आधार के अनिवार्य इस्तेमाल का फरमान जारी करना ही काफी नहीं है। इसकी समुचित निगरानी व्यवस्था भी हो और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि सभी हितग्राहियों को आधार मिल गया है या नहीं। अगर किसी के पास आधार नहीं है तो यह उसे अपमानित करने या लाभों से वंचित करने का जरिया नहीं बनना चाहिए। सभी हितग्राही आधार से लैस हों, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिए, जनता की नहीं। सरकारी विभागों और निचले स्तर के कर्मचारियों को इसके प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए कि आधार का इस्तेमाल किस तरह किया जाए। कई बार आधार संबंधी अमल की प्रक्रिया में जिस तरह असंवेदनशीलता या सख्ती दिखाई जाती है, अनेक समस्याएं उसी से उपजती हैं।

आलोचक भी दें ध्‍यान
आधार के आलोचकों को भी अब सिर्फ यूआइडीएआइ पर फोकस करना बंद करना चाहिए। आधार पर अमल से जुड़ी अनेक समस्याएं ऐसे विभागों की ओर से भी उपजती हैं, जिन पर यूआइडीएआइ का कोई नियंत्रण नहीं होता। मसलन राशन की दुकान पर आधार के गलत क्रियान्वयन का दोष यूआइडीएआइ पर डालने से राज्य सरकार के खाद्य व नागरिक आपूर्ति विभाग को जवाबदेही से बचने की राह मिल जाती है। इससे उन्हें आधार से जुड़ी लेन-देन प्रक्रिया पर सवाल उठाने और यूआइडीएआइ को कोसने की गुंजाइश भी मिलती है। इसके साथ-साथ यूआइडीएआइ को भी विभिन्न विभागों में आधार को लेकर कुछ भी गलत होने पर उनका प्रवक्ता बनने से बचना चाहिए। उसे यह बताना चाहिए कि उसकी भूमिका सिर्फ पंजीयन और प्रमाणीकरण तक सीमित है।

निजता के मुद्दे पर गौर
पांचवां, निजता के मसले पर भी गौर करना होगा। ऐसे कई मामले हैं, जहां आधार संबंधी डाटा सार्वजनिक हो गया। तमाम स्तर के सरकारी अधिकारियों को यह पता होना चाहिए कि वे आधार में दर्ज लोगों के निजी विवरणों को लेकर लापरवाह रवैया नहीं अपना सकते। इसके अलावा सरकार को उन जालसाजों से एक कदम आगे चलना होगा जो व्यवस्था में सेंध लगाने के लिए अंगुलियों की छाप की क्लोनिंग करने जैसे हथकंडे अपनाने से बाज नहीं आते। यदि सरकार ये तमाम उपाय करती है तो जनता के बीच आधार की स्वीकार्यता बढ़ सकेगी। अभी भी आधार के प्रति लोगों की ज्यादातर बेरुखी इससे जुड़ी दिक्कतों की वजह से है। अब गेंद सरकार के पाले में है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)