[ सुधींद्र कुलकर्णी ]: अगस्त के पहले सप्ताह में मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पाकिस्तान की ओर से बौखलाहट भरी प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक थी, लेकिन एक अप्रत्याशित घटनाक्रम यह भी हुआ कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान महात्मा गांधी का हवाला देते नजर आ रहे हैं। चलो इसी बहाने सही, इमरान खान ने महात्मा गांधी की प्रासंगिकता को समझा। पाकिस्तान के गठन के बाद बीते 72 वर्षों में यह पहली बार है जब उसके किसी शीर्ष नेता ने इस तरह सार्वजनिक तौर पर उन आदर्श मूल्यों को याद किया जिनकी खातिर भारत के राष्ट्रपिता ने अपना जीवन कळ्र्बान कर दिया था। ये आदर्श मूल्य थे- हिंदू-मुस्लिम सौहार्द और भारत-पाक के मध्य सहज संबंध। मैं इसे दोनों देशों के ऊपर मंडराते दुश्मनी के काले बादलों के बीच रोशनी की एक किरण की तरह देखता हूं।

टू नेशन थ्योरी पर बना था पाकिस्तान

हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान की सेना, सरकार, बुद्धिजीवी वर्ग और मजहबी तंत्र भारत के स्वाधीनता संग्राम और उसमें महात्मा गांधी की केंद्रीय भूमिका के प्रति अपनी समझ को नए सिरे से तय करने के साथ-साथ जिन्ना और मुस्लिम लीग द्वारा समर्थित टू नेशन थ्योरी यानी द्विराष्ट्र सिद्धांत की गंभीर खामियों को भी देखें, क्योंकि इसी आधार पर पाकिस्तान बना था। कश्मीर समस्या भी एक बड़ी हद तक मुस्लिम लीग की इसी अति-विकृत सोच का नतीजा है कि मुस्लिम और हिंदू दो अलग देश हैं। इसीलिए उसने भारत के मुस्लिमों के लिए एक स्वतंत्र एवं संप्रभु राज्य की मांग को जायज ठहराया।

हिंदू-मुस्लिम सौहार्द कायम करना

यदि पाकिस्तान अपने खराब इतिहास का पूरी ईमानदारी से पुनरावलोकन करता तो वह यकीनन महात्मा गांधी के दर्शन और आचार-विचार में अनेक खूबियां देख पाता। हां, हम भारतीयों को भी ईमानदारी से यह देखने की जरूरत है कि क्या हम अपने देश के भीतर हिंदू-मुस्लिम सौहार्द कायम करने, जातीय एवं लैंगिक विभेद मिटाने, एक समतावादी और सतत सामाजिक-आर्थिक विकास का मॉडल विकसित करने से लेकर विभिन्न गतिविधियों में सत्य और अहिंसा के गांधीवादी पथ पर डटे हैं?

गांधीजी के व्यक्तित्व और राजनीति की पाक में गलत व्याख्या

हालांकि जरूरी नहीं कि गांधीजी के हर कार्य और विचार से हम सहमत ही हों, लेकिन यदि हम ईमानदारी से दोनों देशों के मध्य शांति और मेल-मिलाप चाहते हैं तो इसके लिए गांधीजी हमारे साझा प्रकाशपुंज, प्रेरणा और मार्गदर्शक हो सकते हैं। गांधीजी के व्यक्तित्व और राजनीति को मोटे तौर पर पाकिस्तान में गलत ढंग से पेश किया गया है। पाकिस्तानियों के मन में गांधी को लेकर दो काफी गलत धारणाएं हैं। पहली, उन्हें एक हिंदू पार्टी (कांग्रेस) के ऐसे हिंदू नेता की तरह देखा जाता है जो अंग्रेजों के जाने के बाद हिंदू राज स्थापित करना चाहते थे। यह सर्वथा गलत है।

महात्मा गांधी के प्रति इमरान का आदरभाव

जैसा कि इमरान खान द्वारा महात्मा गांधी का आदरभाव से जिक्र करने से लगता भी है कि वह (और कांग्रेस पार्टी भी) हिंदू-मुस्लिम एकता की नींव पर खड़े सेक्युलर भारत के पक्षधर थे। गांधी का हिंदुत्व सहिष्णु, समावेशी, उदार और दूसरों की आस्थाओं का सम्मान करने वाला था। वास्तव में इस उपमहाद्वीप या पूरी दुनिया के इतिहास में किसी और नेता ने गांधीजी की तरह अंतर-धार्मिक सौहार्द को अपने राजनीतिक संघर्ष का केंद्रीय एजेंडा नहीं बनाया।

गांधी जी नहीं चाहते थे कि पाकिस्तान एक अलग मुल्क बने

दूसरी गलत धारणा, जिसने गांधीजी के बारे में पाकिस्तानियों को निष्पक्ष धारणा बनाने से रोका, यह है कि गांधी यह नहीं चाहते थे कि पाकिस्तान के रूप में एक अलग मुल्क बने। पाकिस्तानियों को पता होना चाहिए कि आखिर क्यों गांधीजी ने टू नेशन थ्योरी के आधार पर इसका विरोध किया था? भीखू पारेख ने अपनी किताब गांधीज पॉलिटिकल फिलॉस्फी: ए क्रिटिकल एग्जामिनेशन में इसे बेहतर ढंग से समझाया है। उन्होनें लिखा है कि गांधी ने भारत को भौगोलिक नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के लिहाज से परिभाषित किया और वह इसकी भौगोलिक सीमाओं के बजाय मानव-सभ्यता को अखंड रखने को लेकर अधिक फिक्रमंद थे।

गांधी जी टू स्टेट थ्योरी पर सहमत थे

उनके लिए भारतीय सभ्यता विविधता और मत-भिन्नता के प्रति न सिर्फ सहिष्णु बल्कि उसका सम्मान करने वाली भी थी। अपनी तमाम कमियों और कभी-कभार होने वाले झगड़ों के साथ भारत एक खुशहाल परिवार था। चूंकि गांधी के लिए भारत के बारे में यही सत्य था, इसलिए उसका विभाजन एक झूठ था। यद्यपि वह टू नेशन थ्योरी के विरोधी थे, लेकिन भारतीयों और पाकिस्तानियों, दोनों को यह जानना चाहिए कि गांधी जी टू स्टेट थ्योरी पर सहमत थे यानी पाकिस्तान समानता के आधार पर भारत से परिसंघीय जुड़ाव के साथ एक अलग स्टेट बन सकता था।

गांधीजी और जिन्ना के बीच पत्राचार

इसके बारे में उनके और जिन्ना के मध्य हुए पत्राचार से भी पता चलता है। 11 सितंबर 1944 को गांधीजी ने जिन्ना को लिखा, हिंदू-मुस्लिम एकता मेरे जीवन का ध्येय रहा है, लेकिन इसे विदेशी ताकतों को खदेड़े बगैर हासिल नहीं किया जा सकता। इससे अप्रभावित जिन्ना ने जवाब में लिखा, भारत की समस्या का एक ही समाधान है कि पाकिस्तान और हिंदुस्तान के रूप में इसके विभाजन को स्वीकार कर लिया जाए। गांधीजी अलग राष्ट्र की धारणा से सहमत नहीं थे। लिहाजा उन्होंने निराश होकर जिन्ना को लिखा, आप यह तो मानेंगे कि (लाहौर) संकल्प में भी टू नेशन थ्योरी का कोई जिक्र नहीं था। मुझे इतिहास में ऐसी कोई मिसाल नजर नहीं आती जहां पर कोई धर्मांतरित निकाय और उसके वंशज अपनी पितृ इकाई से जुदा होकर एक अलग राष्ट्र बनने का दावा करें। यदि भारत इस्लाम के प्रादुर्भाव से पहले एक राष्ट्र था तो इसे अब भी वैसा ही रहना चाहिए, भले ही उसके बच्चों के एक बड़े वर्ग की आस्थाएं बदल गई हों।

देश का विभाजन दो भाइयों के बीच जैसा हो

गांधीजी ने देश के उत्तर-पश्चिमी एवं पूर्वी मुस्लिम-बहुल इलाकों में स्व-निर्णय के आधार संप्रभु राज्यों के निर्माण की बात कही थी। उन्होंने जिन्ना से कहा, यदि आप इन्हें पाकिस्तान कहना चाहें तो कह सकते हैं। उन्होंने इस सीमा तक लाहौर-संकल्प को स्वीकार किया था। उन्होंने कहा, मैं एक रास्ता सुझाता हूं। यदि विभाजन होना ही है, तो वैसा हो, जैसा दो भाइयों के बीच होता है।

भारत और पाक के बीच अमन तभी आएगा जब लोग गांधीजी के सिद्धांतों को मानें

आज भारत और पाकिस्तान के बीच अमन और सद्भावना की उम्मीद तभी साकार हो सकती है जब दोनों देशों के लोग और सत्ता-तंत्र गांधीजी के मूल सिद्धांतों और दृष्टिकोण को वास्तविक रूप में अंगीकार करें। अपनी हत्या से कुछ दिनों पहले गांधीजी ने घोषणा की थी, भारत और पाकिस्तान, दोनों मेरे मुल्क हैं। मैं पाकिस्तान जाने के लिए पासपोर्ट लेने वाला नहीं हूं। भले ही भौगोलिक और राजनीतिक रूप से भारत दो भागों में बंट गया हो, लेकिन दिल से तो हम आपस में दोस्त और भाई बने रहें, जो एक-दूसरे की मदद करें और सम्मान करें और बाहरी दुनिया के लिए हम एक हों।

( स्तंभकार ‘म्यूजिक ऑफ द स्पिनिंग व्हील्स: महात्मा गांधीज मैनिफेस्टो फॉर द इंटरनेट एज’ पुस्तक के लेखक हैैं )