[ रामसरन वर्मा ]: एक अर्से से फसलों को प्राकृतिक आपदा से बचाने, कृषि लागत घटाकर अधिक उत्पादन करने और किसानों की आमदनी बढ़ाने की बातें हो रही है। इसी क्रम में किसानों को खेती के साथ पशुपालन एवं अन्य स्वरोजगार की सलाह भी दी जा रही है। इस दिशा में सरकारी प्रयास भी हो रहे हैैं, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि खेती की समस्या का निदान किसानों के खेत में ही है। समय आ गया है कि किसान जलवायु विविधिता पर ध्यान दें और पानी की उपलब्धता एवं उसके बचाव को ध्यान में रखकर खेती करें।

अधिक पानी की मांग करने वाली फसलें उगाना बंद करें

भारत की जलवायु में जैसी विविधिता है वैसी दुनिया के कुछ ही हिस्सों में देखने को मिलती है। यहां सर्दी, गर्मी और बरसात में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह की फसलें होती हैं। बुंदेलखंड जैसे इलाकों को छोड़कर पूरे देश में भू-गर्भ जल स्तर अच्छा है। जहां जमीन ऊंची-नीची है वहां खेतों को समतल करने की जरूरत है, क्योंकि ऐसा करके 25 फीसद पानी बचाया जा सकता है। देश के जिन इलाकों में भूजल स्तर नीचे जा रहा है वहां अधिक पानी की मांग करने वाली फसलें उगाना बंद करने की जरूरत है। हरित क्रांति में अग्रणी रहे पंजाब-हरियाणा के किसान लंबे समय से धान की खेती कर रहे हैैं। धान को पानी की अधिक जरूरत होती है। अब पंजाब में पानी की कमी होने लगी है। इसलिए पंजाब के किसानों को चाहिए कि वे धान के बजाय मक्का, सोयाबीन उगाएं और बागवानी में पपीता और सब्जी उत्पादन करें। इससे पानी की भी बचत होगी और मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी।

गन्ने के बजाय फलों और सब्जियों का उत्पादन करें

धान के बाद गन्ने की फसल को पानी की सबसे अधिक जरूरत होती है। पश्चिमी यूपी के किसानों को चाहिए कि वे गन्ने के बजाय फलों और सब्जियों का उत्पादन करें। वे केला, संतरा, किन्नू, आम, अमरूद, तरबूज आदि की भी खेती कर सकते हैैं। गन्ने की फसल में भुगतान मिलों में अटक जाता है, मगर केला, टमाटर, आलू सहित अन्य सब्जी एवं बागवानी की फसलों में तुरंत भुगतान मिलता है। सब्जी एवं बागवानी फसलें एक एकड़ में डेढ़ से दो लाख रुपये तक आमदनी कराती हैैं। उत्तर भारत के अनेक इलाकों में केले की खेती की जा रही है, फिर भी यहां केले महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात से आ रहे हैैं।

महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में जलस्तर 400 फिट नीचे है

महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में जलस्तर करीब तीन से चार सौ फिट नीचे है। महाराष्ट्र के जलगांव, सोलापुर एवं नासिक और आंध्र प्रदेश के पुलवेंद्रा, कड़पा, बंग्लौर एवं अनंतपुर से केले के साथ टमाटर की खेती की जा रही है। बेहतर होगा कि महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात के किसान केले की खेती का क्षेत्रफल कम करके अनार, पपीता, तरबूज, अंगूर आदि की फसलों का रकबा बढ़ाएं।

बिहार में सब्जी और फल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

खेती में पानी की उपलब्धता के साथ तापमान के स्तर पर भी ध्यान देने की जरूरत होती है। बागवानी एवं सब्जी की फसलों के लिए 10 से 40 डिग्री तापमान बेहतर होता है। बिहार में सब्जी और फल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु है। इसीलिए यहां केला और लीची का उत्पादन होता है। बंगाल की जलवायु भी सब्जियों की खेती के लिए उपयुक्त है। बंगाल के किसान मक्का और दलहनी फसलों की खेती को भी प्राथमिकता दे सकते हैैं। चूंकि मध्य प्रदेश में भी पानी कम है इसलिए वहां के किसान मक्का, कपास, अनार, अंगूर और दलहनी फसलों की खेती कर पानी की समस्या से निजात पा सकते हैं।

बदल-बदल कर फसलें उगाएं

किसानों के लिए यह भी जरूरी हो गया है कि वे बदल-बदल कर फसलें उगाएं। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और फसलों का उत्पादन भी। यदि किसी किसान के पास चार एकड़ जमीन है तो वह एक एकड़ में गेहूं एवं धान, एक एकड़ में बागवानी की फसल एवं एक एकड़ में सब्जी की खेती करे और शेष एक एकड़ में पशुओं के चारे वाली फसलें उगाए। धान एवं गेहूं से एक एकड़ में 35 हजार तक, बागवानी से एक लाख तक, सब्जी की खेती से 80 हजार रुपये तक की आमदनी हो सकती है। पशुपालन करने पर दूध के साथ ही खेत के लिए गोबर की खाद भी मिलेगी। गोबर की खाद से 20 प्रतिशत तक उत्पादन बढ़ जाएगा। इससे न सिर्फ रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होगी, बल्कि किसान की आमदनी दोगुनी हो जाएगी।

गांव में रोजगार देकर पलायन रोका जा सकता है

बड़े किसान एक से दो एकड़ में जंगल भी लगा सकते हैं। जंगल से आशय इमारती लकड़ी के पौधे लगाने से है। इससे पर्यावरण संरक्षण होगा और हर 15-20 साल में एकमुश्त मोटी रकम भी मिलती रहेगी। फल एवं सब्जी की खेती से गांव में रोजगार देकर पलायन रोका जा सकता है। टमाटर, सेब, केला, अंगूर की खेती में गांवों के खेतिहर मजूदरों को भरपूर काम मिलता है।

लघु एवं सीमांत किसानों के लिए प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना

लघु एवं सीमांत किसानों के लिए प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना एक अच्छी योजना है। यदि किसान इसका उपयोग कृषि बागवानी एवं पशुपालन में करें तो बेहतर। छह हजार रुपये में एक किसान एक एकड़ के आठवें भाग में सब्जी की खेती कर सकता है। इससे वह कम से कम 20 हजार रुपये की सब्जी का उत्पादन कर सकता है। यदि वह छह हजार रुपये की बकरी एवं मुर्गी खरीदता है तो एक साल बाद 10 से 15 हजार रुपये तक लाभ कमा सकता है। यह उसके लिए स्वरोजगार का जरिया भी हो जाएगा।

खेती में पानी बचाने की चुनौती

चूंकि खेती में पानी बचाने की चुनौती है इसलिए किसानों को चाहिए कि यदि ऊंची-नीची जमीन समतल न हो सके तो फौव्वारे एवं ड्रिप सिंचाई का प्रयोग करें। वर्षा के औसत को देखकर ही फसलों का चुनाव किया जाना चाहिए। जिनके पास ज्यादा जमीन है वे किसान खेत में तालाब खोदकर भूगर्भ जल स्तर बढ़ाने के साथ ही मछली पालन कर अतिरिक्त आमदनी कर सकते हैं।

मक्का की फसल कम पानी एवं कम समय में तैयार होती है

मक्का की फसल पानी बचाने का बेहतर विकल्प है। यह फसल कम पानी एवं कम समय में तैयार होती है। आजकल तो इसका उपयोग पौष्टिक आहार के रूप में भी हो रहा है। दुनिया भर में मक्का की मांग है, क्योंकि मछली एवं मुर्गी का दाना और पशुआहार मक्का से ही बनाए जाते हैैं। अमेरिका और चीन में मक्का सबसे अधिक उगाई जाने वाली फसल है। धान की फसल बोने वाले किसान मक्का उगाकर अपनी आमदनी बढ़ाने के साथ ही भू-गर्भ जलस्तर को और गिरने से बचा सकते हैं।

( लेखक उन्नत खेती के लिए पद्मश्री से सम्मानित कृषक हैैं )