संजय गुप्त

बागी तेवर दिखा रहे भाजपा नेता यशवंत सिन्हा की अर्थव्यवस्था के हालात पर एक टिप्पणी के बाद से एक बहस छिड़ गई है। विपक्ष को यशवंत सिन्हा की टिप्पणी इसलिए रास आई, क्योंकि उसमें सरकार और विशेष रूप से वित्तमंत्री अरुण जेटली पर निशाना साधा गया था। इसी कारण आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला कायम हुआ। इस सिलसिले के बीच प्रधानमंत्री ने आर्थिक स्थिति को लेकर उठ रहे सवालों का आंकड़ों के आधार पर जवाब दिया। इसके जरिये उन्होंने एक बार फिर अपनी स्पष्ट सोच और दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया। इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटीज ऑफ इंडिया के स्वर्ण जयंती समारोह में लगभग एक घंटे के भाषण में प्रधानमंत्री ने आर्थिक मंदी की आशंकाओं को खारिज करने के साथ एक स्टेट्समैन की तरह जनता के साथ कारोबारियों को भी आश्वस्त किया कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जो भी कदम जरूरी हैैं वे उठाए जाएंगे। ऐसा हुआ भी। जीएसटी काउंसिल की बैठक में कई ऐसे निर्णय लिए गए जिनसे छोटे और मझोले कारोबारियों को बड़ी राहत मिली। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक कर कारोबार संबंधी छोटी-मोटी कमियों को तुरंत दूर करने का निर्देश दिया। आने वाले समय में सरकार के स्तर पर अर्थव्यवस्था को बल देने वाले कुछ और फैसले लिए जा सकते हैैं।

अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए प्रधानमंत्री की सक्रियता यह बताती है कि उन्हें जमीनी हकीकत का अहसास है। यह एक बड़ी बात है, क्योंकि आम तौर पर राजनीतिक नेतृत्व किसी क्षेत्र विशेष की छोटी-मोटी कमियों से अनभिज्ञ रहता है। इसके चलते कई बार समस्याएं गंभीर हो जाती हैैं। चूंकि प्रधानमंत्री ने जीएसटी के रूप में ऐतिहासिक कर सुधार लागू होने के बाद कारोबारियों के समक्ष आ रही दिक्कतों को पहचाना और उन्हें दूर करने की पहल भी की इसलिए जनता के बीच भरोसे का एक सकारात्मक संदेश गया। प्रधानमंत्री की ओर से जीएसटी के कारण होने वाली परेशानी को स्वीकार करना उल्लेखनीय बात रही। यह भी असाधारण रहा कि उन्होंने 26 स्लाइड वाले पावर प्वाइंट प्रजेटेंशन के जरिये तथ्यों के साथ विपक्ष को आईना दिखाते हुए बताया कि आर्थिक हालात को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं और आने वाले दिनों में हालत बेहतर होगी। प्रधानमंत्री ने महज भाषण देने के बजाय तथ्यों के साथ अपनी बात इसलिए रखी, क्योंकि शायद उन्होंने महसूस किया कि विपक्ष ने नकारात्मक माहौल खड़ा करने की जो कोशिश की है उसकी काट करना आवश्यक है। उन्होंने महाभारत से एक उदाहरण लेते हुए कहा कि शल्य प्रवृत्ति के लोगों को पहचानने की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि पांडवों के मामा राजा शल्य महाभारत के युद्ध में कर्ण के सारथी थे, लेकिन युद्धकाल में वह कर्ण को ही हतोत्साहित करते थे। जो लोग एक तिमाही में विकास दर 5.7 प्रतिशत पर आ जाने को आर्थिक मंदी का प्रमाण बता रहे हैं उनसे प्रधानमंत्री ने यह सही सवाल किया कि क्या ऐसा पहली बार हुआ है? संप्रग सरकार में आठ बार ऐसे मौके आए जब विकास दर 5.7 प्रतिशत या उससे भी नीचे गई-यहां तक कि 0.2 प्रतिशत और 1.5 प्रतिशत भी। उन्होंने आलोचकों को यह भी याद दिलाया कि जब केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने विकास दर 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था तब उसे खारिज कर दिया गया था, लेकिन जब उसने बीती तिमाही में 5.7 प्रतिशत विकास दर का आंकड़ा पेश किया तो विपक्ष ने उसे तुरंत लपक लिया। प्रधानमंत्री ने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को यह खास तौर पर याद दिलाया कि उसके नेतृत्व वाले संप्रगशासन में भारत को उन पांच देशों की सूची में रखा गया था जिनकी आर्थिक स्थिति नाजुक थी।
अपने हाल के गुजरात दौरे की शुरुआत करते हुए भी प्रधानमंत्री ने नकारात्मकता के दुष्प्रभावों के प्रति लोगों को सचेत करने के साथ कारोबारियों की समस्याओं के समाधान का भरोसा फिर से दिलाया। उनके अनुसार अर्थव्यवस्था की हालत बेहतर करने के लिए जिस कड़वी गोली की आवश्यकता थी वह दी जा चुकी है। पहले नोटबंदी और जीएसटी कड़वी गोली ही है। ये दोनों फैसले दो नंबर की अर्थव्यवस्था के मकड़जाल को तोड़ने के लिए हैं। स्वाभाविक है कि इनसे सबसे ज्यादा तकलीफ उन्हें हुई जो अपना कारोबार दो नंबर में करते हैं। जिस तरह कारोबारियों के एक वर्ग ने जीएसटी और नोटबंदी के फैसलों का विरोध किया उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि दो नंबर की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ने के लिए ये फैसले कितने आवश्यक थे। अभी भी तमाम कारोबारी खुद को जीएसटी के दायरे से बाहर रखना चाह रहे हैं। उनकी सोच सरकार को टैक्स न देने की है। जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद एक तरह से नब्बे फीसद कारोबारियों को मासिक रिटर्न दाखिल करने से जो छूट दी गई वह एक बड़ी राहत है। कंपोजीशन स्कीम की मौजूदा सीमा को सालाना 75 लाख से बढ़ाकर एक करोड़ करना और डेढ़ करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाले कारोबारियों को हर माह रिटर्न फाइल करने से छूट देना भी ऐसे कदम हैं जिनके बाद कारोबारी यह शिकायत नहीं कर सकते कि सरकार उनके बारे में कुछ सोच नहीं रही। इसके साथ ही निर्यातकों को भी जीएसटी काउंसिल की ओर से बड़ी राहत दी गई। निर्यातक रिफंड की समस्या से जूझ रहे थे, लेकिन अब उन्हें मार्च 2018 तक पहले की तरह आइजीएसटी से छूट मिलेगी और उसके बाद उनके लिए ई-वॉलेट की व्यवस्था की जाएगी। स्पष्ट है कि जीएसटी काउंसिल ने यह समझा कि नई व्यवस्था के कुछ नियम निर्यातकों के समक्ष परेशानी खड़ी कर रहे थे और इसके चलते उनके लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करना मुश्किल हो रहा था। किसी भी नई व्यवस्था में कुछ दिक्कतें आती ही हैं। यह अच्छी बात है कि जीएसटी काउंसिल ने उन्हें पहचान कर दूर किया।
जीएसटी काउंसिल के फैसले के बाद देखना यह है कि कारोबारियों को जो रियायतें दी गई हैं उनसे वे संतुष्ट होते हैं या नहीं और वे सरकार द्वारा दी गई रियायत का लाभ उठाने के बावजूद पुराने रंग-ढंग यानी टैक्स देने से बचने की कोशिश में रहते हैं या फिर कानून सम्मत तरीके से अपना कारोबार करते हैं? रियायत और छूट के जीएसटी काउंसिल के फैसले के बाद कारोबारियों की समस्याएं अवश्य कम होंगी, लेकिन इसी के साथ उन कारोबारियों की संख्या 40 फीसद से भी ज्यादा बढ़ जाएगी जो जीएसटी देंगे ही नहीं। इससे एक असंतुलन भी कायम होगा और कुछ नई समस्याएं भी खड़ी होंगी। छूट-रियायत से उपजी समस्याएं धीरे-धीरे गंभीर रूप ले लेती हैं और चूंकि कारोबारी नई व्यवस्था अपनाने से बचे रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं इसलिए उनका समाधान और कठिन हो जाता है। ऐसी स्थिति न बने, यह सबको सुनिश्चित करना चाहिए। जब मोदी सरकार अर्थव्यवस्था के समक्ष उभरी कुछ चुनौतियों का सामना करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ है तब कारोबारियों को भी चाहिए कि वे आर्थिक माहौल को बेहतर बनाने को लेकर अपनी जिम्मेदारी समझें और हर स्तर पर अपना कारोबार विधि सम्मत तरीके से करें।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]