[ ए. सूर्यप्रकाश ]: भारत सरकार और ट्विटर में रार के बीच सरकार ने इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य हिंसा और अश्लीलता को बढ़ावा देने वाली आपत्तिजनक ऑनलाइन सामग्री से निपटना है। ये दिशा-निर्देश इसलिए आवश्यक थे, क्योंकि ओटीटी समेत इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म किसी नियमन के दायरे में नहीं हैं। इसीलिए उनकी मनमानी पर लगाम नहीं लग पा रही थी। इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म न तो फेक न्यूज रोकने के लिए कुछ कर रहे थे और न ही हिंसा, वैमनस्य आदि पर लगाम लगाने के लिए। ऐसे दिशा-निर्देश इसलिए आवश्यक हो गए थे, क्योंकि इस संदर्भ में जैसे नियम-कानून विभिन्न देशों ने बना लिए हैं वैसे भारत में नहीं हैं। जहां फेसबुक ने इन दिशा-निर्देशों का स्वागत किया है, वहीं ट्विटर मौन साधे हुए है। उसके कर्ताधर्ता मुख्यबिंदु से भटक रहे हैं।

इंटरनेट कंपनियों को भारत के संविधान और संसद द्वारा पारित कानूनों के दायरे में काम करना होगा

मुख्यबिंदु यह है कि भारत में कारोबार करने की इच्छुक कंपनियों को देश के संविधान और संसद द्वारा पारित कानूनों के दायरे में ही काम करना होगा। भले ही कंपनी के अपने कायदे-कानून हों, पर भारतीय कानूनों के समक्ष वे बेमानी हैं। यह सब कहने की आवश्यकता इसलिए पड़ रही है, क्योंकि ट्विटर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर हमारे संविधान पर अपनी सोच थोपने की फिराक में है। इस प्रकरण की शुरुआत सरकार द्वारा ट्विटर से उन 1178 अकाउंट पर कार्रवाई के निर्देश के साथ हुई, जिनके तार पाकिस्तान और खालिस्तानी समर्थकों से जुड़े हुए थे। वे फर्जी सूचनाओं से किसानों को भड़का रहे थे। सरकार ने ट्विटर से कहा कि वह न केवल ऐसे अकाउंट हटाए, बल्कि ‘फार्मर्सजेनोसाइड’ यानी किसानों का संहार जैसे नितांत आपत्तिजनक हैशटैग भी हटाए। ट्विटर ने इस निर्देश पर तात्कालिक कार्रवाई नहीं की। बाद में भी उसने महज खानार्पूित करने का ही काम किया।

भारत में असंतोष को हवा देने और सौहार्द बिगाड़ने में ट्विटर मंच का दुरुपयोग

उस कुख्यात टूलकिट को लेकर भी सरकार और ट्विटर के बीच तल्खी बढ़ी, जिसका मकसद कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान देश में आक्रोश की नई चिंगारी भड़काना था। ट्विटर को इस बात को लेकर भी सूचित किया गया कि भारत में असंतोष को हवा देने और सौहार्द की भावना बिगाड़ने में उसके मंच का दुरुपयोग किया जा रहा है। इसके साथ ही सरकार ने उसे दो-टूक लहजे में चेताया कि ट्विटर एक माध्यम मात्र है और उसे भारतीय संविधान और संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करना ही होगा।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाजायज फायदा उठाकर माहौल बिगाड़ना 

इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी सचिव ने ट्विटर के अधिकारियों से कहा कि उनकी कंपनी उन लोगों का पक्ष ले रही है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाजायज फायदा उठाकर भारत में माहौल बिगाड़ना चाहते हैं। सरकार का पक्ष गलत नहीं है, क्योंकि अक्सर ट्वीट बहुत अश्लील, भद्दे और गाली-गलौज से भरे होते हैं। उनमें शिष्टता की बलि चढ़ जाती है। बात केवल यहीं तक सीमित नहीं रही। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर भी ट्विटर ने दोहरा रवैया दिखाया। भारत सरकार और जनता ने इसका संज्ञान तब लिया जब 6 जनवरी को अमेरिकी संसद पर हमले और 26 जनवरी को दिल्ली के लालकिले पर हुई हिंसा को लेकर ट्विटर ने अलग-अलग तेवर दिखाए। इन दोनों मामलों पर ट्विटर के रुख से यही स्पष्ट हुआ कि वह केवल ‘दक्षिणपंथी’ विचार वालों पर कार्रवाई करेगा। वहीं अगर सरकार भी ‘दक्षिणपंथी’ विचार से जुड़ी दिखाई दे और उसके विरोधी वामपंथी हिंसक गतिविधियां करें तो उनका कोई अपराध न माना जाए। उन्हें मूल अधिकारों का चोला पहना दिया जाए। ट्विटर की प्रतिक्रिया भी बहुत विचित्र है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर ट्विटर का कोई वैश्विक मानदंड नहीं

अमेरिकी संसद और लाल किला प्रकरण से स्पष्ट है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर उसका कोई वैश्विक मानदंड नहीं है। ट्विटर के अधिकारी यह समझ लें कि भारत में अनुच्छेद 19(1)(ए) के अंतर्गत सभी नागरिकों को वाक्् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। हालांकि इसी अनुच्छेद में ‘युक्तियुक्त निर्बंधन’ का भी प्रविधान है, जहां सरकार भारत की एकता-अखंडता, राज्य की सुरक्षा, मित्र राष्ट्रों के साथ संबंध, अदालत की अवमानना, लोक व्यवस्था और मानहानि जैसे कुछ मामलों में इस अधिकार को सीमित कर सकती है। ये युक्तियुक्त निर्बंधन भी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1951 में पहले संविधान संशोधन में जोड़े थे, क्योंकि उनकी दृष्टि में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्वच्छंद होकर लोक व्यवस्था को बिगाड़ने, नागरिकों की मानहानि करने और अपराधों को भड़काने का निमित्त बन रही थी। संसद द्वारा इस संशोधन को विधिक स्वरूप प्रदान करने के बाद न्यायालय द्वारा यह निर्धारित करने की भूमिका शेष रह जाती है कि सरकारी प्रतिक्रिया युक्तियुक्त थी अथवा नहीं? इसके बावजूद ट्विटर ने सिविल सोसायटी एक्टिविस्ट, नेताओं और मीडिया से जुड़े अकाउंट बंद नहीं किए, क्योंकि इससे उनके मूल अधिकार का ‘उल्लंघन’ होता। उसने यही राग अलापा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को समर्थन देना जारी रखेगा।

ट्विटर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की व्याख्या अपने एजेंडे के अनुसार नहीं कर सकता

ट्विटर को समझना होगा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की व्याख्या अपने एजेंडे के अनुसार नहीं कर सकता। उसे हमारे संविधान और कानूनों का सम्मान करना ही होगा। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के क्या मापदंड है? इसकी सटीक व्याख्या एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मुखर्जी के विख्यात फैसले के आलोक में दुर्गादास बसु ने की है। उसका सार यही है, ‘ऐसी कोई असीमित या अनियंत्रित स्वतंत्रता नहीं हो सकती जो पूरी तरह अंकुश से मुक्त हो, जिससे अराजकता और व्यवस्था भंग होने की नौबत आ जाए। संविधान का यही उद्देश्य है कि वैयक्तिक स्वतंत्रता और सामाजिक सुरक्षा में एक सही संतुलन हो।’ अनुच्छेद 19 की व्याख्या में उन्होंने यही कहा कि इसमें वैयक्तिक स्वतंत्रता और उस पर संभावित प्रतिबंधों की व्यवस्था भी है, ताकि वैयक्तिक स्वतंत्रता का लोक कल्याण या सार्वजनिक नैतिकता के साथ कोई टकराव न हो। यही हमारा संवैधानिक रुख है और हमारे लिए सुप्रीम कोर्ट के शब्द ही मायने रखते हैं। इसमें हम किसी इंटरनेट माध्यम को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं देंगे। हमारा संविधान सर्वोच्च है और वही कानून मान्य है, जिसे हमारा सुप्रीम कोर्ट मान्यता देता है। कोई भी देसी-विदेशी कंपनी या संस्था खुद को उनसे ऊपर न समझे। न ही उसे खुद को हमारे मूल अधिकारों के संरक्षक के रूप में पेश करना चाहिए। हम भारतीय अपनी और अपनी संप्रभुता का खयाल रखने में पूरी तरह सक्षम हैं।

( लेखक लोकतांत्रिक विषयों के विशेषज्ञ हैं )