विनीता श्रीवास्तव। Shramik Special Trains मार्च माह के आखिरी दौर में भारत में संपूर्ण लॉकडाउन कर दिया गया था। इसी बीच 22 मार्च से जब भारतीय रेल की यात्री सुविधाओं को थामा गया तो रेलकर्मी और रेलयात्री सभी सन्न रह गए। दरअसल इसका कारण यह था कि वर्ष 1853 में शुरू होने के बाद से भारतीय रेल के इतिहास में इस तरह का देशव्यापी चक्का-जाम पहली बार देखने में आया।

यह देशवासियों को कोरोना महामारी के संक्रमण से बचाने के लिए लिया गया ऐतिहासिक फैसला था। यह फैसला मानवतापूर्ण, सहिष्णु और सौम्यता पर आधारित था, ताकि रेल यात्रियों को महामारी के प्रकोप से बचाया जा सके। कोरोना संक्रमण के दौर में देशव्यापी लॉकडाउन के बीच भारतीय रेल ने जिस सहूलियत से समूचे देश में कोने-कोने तक श्रमिकों को विशेष ट्रेनों से पहुंचाया, उसे लंबे समय तक याद रखा जाएगा।

रेल मंत्रलय के समन्वय से समसामयिक कदम : इस बीच लॉकडाउन का दौर लंबा खिंचते जाने से देश के अनेक महानगरों व शहरों में रहने वाले मजदूरों द्वारा गांवों तक जाने के लिए अपने-अपने गृह राज्यों के लिए रेल चलाने की मांग को देखते हुए रेलवे ने इस संबंध में सोचना शुरू किया। इसके बाद संबंधित राज्य सरकारों व रेल मंत्रलय के समन्वय से समसामयिक कदम उठाए जाने लगे। इसमें सबसे अहम सवाल यात्री सुरक्षा से संबंधित था। दरअसल एक अदृश्य व घातक संक्रमण से खतरा था, जिसके चलते नए तरीके से सबकुछ प्रबंध करने की चुनौती थी।

स्पेशल ट्रेनों को चलाने की तैयारी महीनों पूर्व होती है : हमें समझना होगा कि स्पेशल ट्रेन के लिए सवारी डिब्बे उपलब्ध कराना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें संचालन, मरम्मत, साफ-सफाई, कर्मीदल, समय सारणी, खानपान आदि सभी संबंधित प्रयोजन कई माह पहले ही निर्धारित हो जाते हैं। कुंभ मेला, ग्रीष्मकालीन स्पेशल ट्रेन, तीर्थ यात्रा स्पेशल ट्रेन या त्योहारों के अवसर पर चलाई जाने वाली स्पेशल ट्रेनों को चलाने की तैयारी महीनों पूर्व होती है। ऐसे में समझा जा सकता है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन कितना जटिल कार्य था। इसके कई कारण हैं, मसलन पूर्व-निर्धारित समय सारणी नहीं होना, ट्रेन संचालक दल को रेल मार्ग का समुचित ज्ञान न होना, सिग्नल की जानकारी व सुरक्षा संबंधी नियमों का पालन सुनिश्चित करना आदि। प्लेटफॉर्म पर यात्रियों के बीच दूरी को बनाए रखने व भीड़ को नियंत्रित करने की चुनौती भी बड़ी समस्या के रूप में थी।

रेलवे ने 1.5 करोड़ पानी के बोतल यात्रियों में बांटे : हालांकि इन तमाम चुनौतियों के बावजूद भारतीय रेल ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए लॉकडाउन में भी स्टेशनों पर यात्रियों के लिए भोजन-पानी की व्यवस्था का यथासंभव प्रयास किया। आइआरसीटीसी के आंकड़ों के मुताबिक इस मुश्किल दौर में भी रेलवे ने 1.19 करोड़ भोजन के पैकेट यात्रियों को वितरित किए, जबकि राज्य सरकारों ने भी अपनी ओर से 54 लाख फूड पैकेट यात्रियों को दिए। साथ ही रेलवे ने 1.5 करोड़ तो राज्य सरकारों ने 54 लाख पानी के बोतल यात्रियों में बांटे।

कई चरणों में इस नई कार्यप्रणाली को कार्यान्वित किया गया : भारतीय रेल ने अपनी ओर से राज्यों द्वारा नामित कोई भी श्रमिक सेवा रद नहीं होने दी। कुछ राज्य, जैसे महाराष्ट्र में कुल 885 नामित स्पेशल ट्रेन में से 776 ही चल सकीं। अन्य ट्रेनों का उपयोग राज्य सरकार नहीं कर पाई। वैसे महाराष्ट्र सरकार ने इसका कारण बताया कि तय समयसीमा के भीतर यात्री निर्धारित रेलवे स्टेशन पर एकत्रित नहीं हो सके। महानगरों व शहरों से मजदूरों को ट्रेन से उनके गृह राज्यों तक भेजने के लिए प्रत्येक स्तर पर रेल व राज्य सरकारों के बीच समन्वय कायम करने के लिए सक्षम अधिकारियों के दल बनाए गए। कई चरणों में इस नई कार्यप्रणाली को कार्यान्वित किया गया। पहला चरण एक से 19 मई का था जिसमें कुछ गिनी-चुनी सेवाएं चलाई गईं। सभी यात्रियों की यात्र पूर्व स्वास्थ्य जांच को सुनिश्चित किया गया और राह में भोजन-पानी का पूरा इंतजाम किया गया। इस चरण में क्वारंटाइन यानी यात्र के बाद संक्रमण रोकने के लिए एकांतवास का प्रयोजन उस राज्य की जिम्मेदारी थी जो श्रमिकों का निवास स्थान या गंतव्य था।

रेलवे के तमाम जोन व डिवीजन मुस्तैदी से काम मे जुटेे : श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के संचालन का दूसरा चरण 20 से 24 मई के बीच रहा जिसमें उच्च स्तरीय वार्ता के बाद 19 मई से श्रमिक ट्रेनों के संचालन के लिए राज्यों की पूर्व अनुमति के प्रावधान को हटा दिया गया। इससे श्रमिक ट्रेनों के संचालन का प्रबंधन कुछ हद तक सरल हुआ और समय भी बचा। ऐसा होने से रेलवे के तमाम जोन व डिवीजन और भी मुस्तैदी से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के काम मे जुट गए तथा रेल संचालन से संबंधित राज्यों में गंतव्य स्टेशन के अलावा अन्य स्टेशनों पर भी श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का ठहराव संभव हो सका। दरअसल गृह मंत्रलय के आदेशानुसार नियमों के पालन हेतु इन गंतव्यों पर उतर रहे यात्रियों को बस द्वारा क्वारंटाइन स्थान पर ले जाना था, इस कारण रेलवे प्लेटफॉर्म पर ट्रेनों से यात्रियों को बाहर निकालने में काफी समय लगता रहा। स्पेशल श्रमिक सेवाओं में 20 से 24 मई के दौरान कुछ समस्याएं जरूर आईं। प्रतिदिन करीब सौ श्रमिक ट्रेनों में से अधिकांश उत्तर प्रदेश और बिहार की ओर जाने से कुछ रेलमार्गो पर अधिक दबाव पड़ने लगा। फिर भी श्रमिकों यानी यात्रियों के स्वास्थ्य और शारीरिक दूरी संबंधी नियमों का पालन संपूर्ण यात्र के दौरान पूरी मुस्तैदी से किया गया। इस पूरी व्यवस्था में राज्य सरकारों के साथ साझा समीकरण अभूतपूर्व और अनूठा अनुभव देने वाला रहा है।

लॉकडाउन के बीच भारतीय रेल ने जनता को अधिक से अधिक सुविधाएं मुहैया कराने के लिए अपनी ओर से समग्र प्रयास किए। श्रमिक रेलगाड़ियां मुसाफिरों को सुरक्षित उनके घरों तक पहुंचाने में जुटी रहीं। यह एक ऐसा प्रसंग है जो रेल सेवाओं को जन-मानस के संस्मरण में प्रेरणा, आशा और सुहानुभूति का अहसास सदैव जीवित रखेगा।

[कार्यकारी निदेशक, रेल मंत्रलय]