पंकज चतुर्वेदी। असम के कई इलाकों में नदियों के बहाव में अनियमितता आने के कारण किनारों पर कटाव बढ़ता जा रहा है। इन कटावों की चपेट में नदियों के किनारे बनाए गए कई स्कूल समेत अनेक छोटे-बड़े रिहायशी मकान भी आए हैं। सदियों पहले नदियों के साथ बह कर आई मिट्टी से निर्मित असम राज्य अब इन्हीं व्यापक जल-भंडारों के जाल में फंस कर बाढ़ व भूमि कटाव के श्रप से ग्रस्त है। ब्रह्मपुत्र और बराक व उनकी करीब 50 सहायक नदियों का द्रुत बहाव अपने किनारों की बस्तियों-खेत को जिस तरह उजाड़ रहा है, उससे राज्य में कई तरह के सामाजिक, कानून व्यवस्था और आर्थिक विग्रह जन्म ले रहे हैं।

राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के आंकड़े बताते हैं कि असम राज्य के कुल क्षेत्रफल 78.52 लाख हेक्टेयर में से 31.05 लाख हेक्टेयर यानी करीब 39.5 फीसद हर साल नदियों के जल-प्लावन में अपना सबकुछ लुटा देता है। यह आंकड़ा कितना भयावह है, इसके लिए पूरे देश में बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का आंकड़ा गौरतलब है जो कि महज 9.40 प्रतिशत है। राज्य में हर साल बाढ़ का दायरा विस्तारित हो रहा है और इसमें सर्वाधिक खतरनाक है नदियों द्वारा अपने ही तटों को खा जाना। गत छह दशक के दौरान इस राज्य की 4.27 लाख हेक्टेयर जमीन कट कर पानी में बह चुकी है जो कि राज्य के कुल क्षेत्रफल का 7.40 प्रतिशत है।

वर्ष 1912-28 के दौरान जब ब्रह्मपुत्र नदी का अध्ययन किया गया था, तो यह कोई 3,870 वर्ग किमी के क्षेत्र से गुजरती थी। वर्ष 2006 में किए गए इसी तरह के अध्ययन से पता चला कि नदी का भूमि छूने का क्षेत्र 57 प्रतिशत बढ़ कर 6,080 वर्ग किमी हो गया। वैसे तो नदी की औसत चौड़ाई 5.46 किमी है, लेकिन कटाव के चलते कई जगह इस नदी का पाट 15 किमी तक चौड़ा हो गया है। अकेले 2010 से 2015 के बीच नदी के बहाव में 880 गांव पूरी तरह बह गए, जबकि 67 गांव आंशिक रूप से प्रभावित हुए। ऐसे गांवों का भविष्य अधिकतम दस साल आंका गया है।

वैसे असम की लगभग 25 लाख आबादी ऐसे गांवों में रहती है, जहां हर साल नदी उनके घर के करीब आ रही है। ऐसे इलाकों को यहां चार कहते हैं। इनमें से कई नदियों के बीच के द्वीप भी हैं। हर बार चार के संकट, जमीन का कटाव रोकना, मुआवजा, पुनर्वास चुनावी मुद्दा भी होते हैं, लेकिन यहां बसने वाले किस तरह उपेक्षित हैं इसकी बानगी यहां का साक्षरता आंकड़ा है जो कि महज 19 फीसद है। यहां की आबादी का 67 प्रतिशत हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाला है।

वर्ष 2019 में संसद में एक प्रश्न के उत्तर में जल संसाधन राज्य मंत्री ने जानकारी दी थी कि अभी तक राज्य में 86,536 लोग कटाव के चलते भूमिहीन हो गए। दुनिया के सबसे बड़े नदी-द्वीप माजुली का अस्तित्व ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों की बढ़ती लहरों से मिट्टी क्षरण या तट के कटाव की गंभीर समस्या के चलते ही खतरे में है। माजुली का क्षेत्रफल पिछले पांच दशक में 1,250 वर्ग किमी से सिमट कर 800 वर्ग किमी हो गया है। हाल ही में रिमोट सेंसिंग से किए गए एक सर्वेक्षण में ब्रह्मपुत्र के अपने ही किनारों को निगलने की भयावह तस्वीर सामने आई है। पिछले पांच दशकों के दौरान नदी के पश्चिमी तट की 758 वर्ग किमी भूमि बह गई।

इसमें कोई शक नहीं कि असम की भौगोलिक स्थिति जटिल है। उसके कई पड़ोसी राज्य पहाड़ों पर हैं और वहां से नदियां तेज बहाव के साथ नीचे की तरफ आती हैं। असम की ऊपरी अपवाह में कई बांध बनाए गए। चीन ने तो ब्रह्मपुत्र पर कई विशाल बांध बनाए हैं। इन बांधों में जब कभी जल का भराव पर्याप्त हो जाता है, पानी को अनियमित तरीके से छोड़ दिया जाता है, एक तो नदियों का अपना बहाव और फिर साथ में बांध से छोड़ा गया जल, इनकी गति बहुत तेज होती है और इससे जमीन का कटाव होना ही है। भारत सरकार की एक रिपोर्ट बताती है कि असम में नदी के कटाव को रोकने के लिए बनाए गए अधिकांश तटबंध जर्जर हैं और कई जगह पूरी तरह नष्ट हो गए हैं। एक मोटा अनुमान है कि राज्य में कोई 4,448 किमी नदी तटों पर पक्के तटबंध बनाए गए थे ताकि कटाव को रोका जा सके, लेकिन आज इनमें से आधे भी बचे नहीं हैं। बरसों से इनकी मरम्मत नहीं हुई, वहीं नदियों ने अपना रास्ता भी खूब बदला।

भूमि कटाव का बड़ा कारण राज्य के जंगलों व आद्र्र भूमि पर हुए अतिक्रमण भी हैं। सभी जानते हैं कि पेड़ मिट्टी का क्षरण रोकते हैं और बरसात को भी सीधे धरती पर गिरने से बचाते हैं। आद्र्र भूमि पानी की मात्र को बड़े स्तर पर नदी के जल-विस्तार को सोखते थे। दुर्भाग्य कि ऐसे स्थानों पर अतिक्रमण का रोग ग्रामीण स्तर पर संक्रमित हो गया और तभी नदी को अपने ही किनारे काटने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखा।

आज जरूरत इस बात की है कि असम की नदियों में ड्रेजिग के जरिये गहराई को बढ़ाया जाए। इसके किनारे से रेत उत्खनन पर रोक लगे। इसके अलावा सघन वन भी कटाव रोकने में मददगार होंगे। अमेरिका की मिसीसिपी नदी भी कभी ऐसे ही भूमि कटाव करती थी। वहां 1989 में तटबंध को अलग तरीके से बनाया गया और उसके साथ खेती के प्रयोग किए गए। आज वहां नदी-कटाव पूरी तरह नियंत्रित है।

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