रामदास आठवल। Dr. B R. Ambedkar's Death Anniversary 2019 बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने भारतीय समाज के दलितों, वंचितों और पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए मसीहा की भूमिका का निर्वाह किया। इसके अलावा उन्होंने महिलाओं और मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए भी महान कार्य किया। बाबा साहब को युग प्रवर्तक या युग परिवर्तनकारी व्यक्ति कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।

बाबा साहब का पूरा नाम डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर था। उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था और वह छह दिसंबर, 1956 को स्वर्गवासी हुए। बाबा साहब जानेमाने विधिवेत्ता थे। वह भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता थे और इसीलिए उन्हें संविधान का शिल्पी और जनक भी कहा जाता है। इसके अलावा, बाबा साहब भारतीय गणराज्य के संस्थापक पुरोधाओं में से एक थे।

राजनेता और समाज सुधारक के रूप में भी प्रख्यात

बाबा साहब की यह ख्याति केवल भारत और आसपास के देशों में ही नहीं है, बल्कि पश्चिम के भी तमाम देश उनकी प्रतिभा और कृतित्व का लोहा मानते हैं। वे जानेमाने अर्थशास्त्री, राजनेता और समाज सुधारक के रूप में भी प्रख्यात हैं। उनके जन्म के समय से ही समाज में पिछड़ों, दलितों और वंचितों के विरुद्ध जो भेदभाव था, उसका सामना उनके परिवार को भी करना पड़ा। वे स्वयं इस भेदभाव से पीड़ित थे, लेकिन इसके बावजूद उनके नैतिक बल पर इन विपरीत परिस्थितियों का नकारात्मक प्रभाव कम ही पड़ा।

पिछड़ों और दलितों की स्थिति में सुधार

विशेष बात तो यह है कि बाबा साहब ने इस सामाजिक कुरीति को झेलते हुए इसके खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाई, बल्कि लोगों को संगठित कर एक आंदोलन खड़ा करने का काम भी किया। हालांकि बाबा साहब आंबेडकर को अपने समय में जब यह महसूस हुआ कि वह समाज के परिवर्तन के कार्य में वांछित सफलता नहीं पा सके हैं तो उन्होंने यह घोषणा तक कर दी कि वह भले ही एक हिंदू के रूप में जन्मे हैं, किंतु उनकी मृत्यु एक हिंदू के रूप में नहीं होगी। इसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने अपने जीवन के आखिरी समय में बौद्ध धर्म को अपना लिया। यह बात अलग है कि आज भले ही बाबा साहब का सपना पूरी तरह से पूरा नहीं हो सका है, लेकिन फिर भी पिछड़ों और दलितों की स्थिति में बीते सात दशकों में जो सुधार हुआ है, उसका बहुत बड़ा श्रेय डॉ. भीमराव आंबेडकर को ही जाता है।

यहां यह कहना प्रासंगिक होगा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की कैबिनेट ने लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को दस वर्ष बढ़ाने के प्रस्ताव को भी हरी झंडी दे दी है। उल्लेखनीय है कि यह आरक्षण वर्ष 2020 के जनवरी महीने की 20 तारीख को खत्म होने जा रहा है। अब दस वर्ष की अवधि बढ़ाने के बाद आरक्षण वर्ष 2030 तक जारी रहेगा। जाहिर है कि बाबा साहब के सपने और गैर बराबरी को खत्म करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने यह कदम उठाया है।

मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजे गए बाबा साहब को स्कूल में अन्य छात्रों के साथ इसलिए बैठने को नहीं मिलता था, क्योंकि वह दलित थे, लेकिन उन्होंने इस उपेक्षा को अपनी ऊर्जा में बदलने का काम किया। कमोबेश इन्हीं स्थितियों का सामना उनको देश में उच्चस्तर तक की पढ़ाई के दौरान भी करना पड़ा। यहां तक कि जब उन्होंने शिक्षक के रूप में विद्यार्थियों को पढ़ाना शुरू किया तो उनके साथ के शिक्षकों ने उन बर्तनों से पानी पीना स्वीकार नहीं किया, जिसका इस्तेमाल बाबा साहब करते थे।

बाबा साहब का कहना था कि छुआछूत गुलामी से भी बदतर है। यह समझा जा सकता है कि उस समय देश तो गुलामी की जंजीरों से जकड़ा ही हुआ था, लेकिन समाज भेदभाव की उससे भी बुरी और जटिल बेड़ियों में फंसा हुआ था। बाबा साहब ने चूंकि उच्च शिक्षा बड़ौदा की रियासत के संरक्षण में पाई थी और उनकी सेवा करने के लिए वे एक समझौते के तहत बाध्य थे, लेकिन उन्हें महाराजा गायकवाड़ के सैन्य सचिव का पद भी जातिगत भेदभाव के कारण रास नहीं आया। उन्होंने नौकरी छोड़ दी। इसके बाद वह लेखाकार और निजी शिक्षक के रूप में काम करने लगे। फिर निवेश परामर्श के कार्य में लगे, लेकिन यहां भी छुआछूत का जो बोलबाला था, उसके कारण उनके क्लाइंट उनसे दूर हो गए।

दुनिया भर के लोकतंत्रवादी 

भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने संविधान को शक्ल देने में दिन-रात एक कर दिया। उन्होंने दुनिया भर के लोकतंत्रवादी अनेक संविधानों का अध्ययन किया और उनकी अच्छी-अच्छी बातों को भारत के संविधान में समायोजित किया। भारत की जनसंख्या जिस तरह से बहुलतावादी है, इसका ध्यान रखते हुए उन्होंने अल्पसंख्यकों और कम आबादी वाले धर्मों तथा गरीबों और वंचितों के हितों के संरक्षण का विशेष ध्यान रखा। 26 नवबर, 1949 को जब उन्होंने संविधान की प्रति संविधानसभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सौंपी तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उनकी मेधा, परिश्रम और दूरदर्शिता की व्यापक प्रशंसा की। समता, स्वतंत्रता और भाईचारा उनके जीवन का मिशन रहा, जिसे उन्होंने भारतीय संविधान में भी शामिल किया है। संविधान के अनुच्छेद 14ए, 15ए, 16 और 17 दलितों और पिछड़ों के उत्थान के लिए अहम हैं।

आज देश बहुत बडे़ बदलाव के दौर से गुजर रहा है। विकास की इस प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों का शामिल होना जरूरी है। लेकिन आज भी जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद, नक्सलवाद और आतंकवाद भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा बने हुए हैं। इन चुनौतियों से निपटने की शक्ति बाबा साहब द्वारा दिए गए भारत के संविधान में निहित है। इन समस्याओं से निपटने और बाबा साहब के सपने को साकार करने के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार निरंतर प्रयत्न कर रही है। हम यह उम्मीद करते हैं कि भारतीय समाज से गैर बराबरी की विसंगतियां आने वाले समय में जल्द ही खत्म होंगी और पूरा समाज एकसाथ तरक्की करेगा।

[केंद्रीय मंत्री, भारत सरकार]