सुशील कुमार सिंह। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्र से भारत के साथ-साथ अमेरिका ने भी कई अपेक्षाएं पाल रखी थी। चूंकि भारत का नैसर्गिक मित्र रूस है, लिहाजा अभी यह कहना भी जल्दबाजी होगी कि जब अमेरिका और रूस आमने-सामने हों तब क्या हो सकता है। फिलहाल इस दो दिवसीय यात्रा के पूरे मर्म का विश्लेषण तीन तथ्यों की ओर इशारा करता है। पहला यह संदेश कि दोनों देश अपना भविष्य पहले से कहीं अधिक उज्ज्वल बनाएंगे। दूसरा संकेत यह कि भारत को धरती पर सबसे अच्छे सैन्य उपकरण देने के लिए अमेरिका तत्पर है। और तीसरा संकेत यह दिखता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का सबसे नायाब देश है और मोदी एक बेहतरीन नेता हैं।

ट्रंप का पाकिस्‍तान को संकेत 

पाकिस्तान में पनपे आतंकवाद पर भी डोनाल्ड ट्रंप ने यह संकेत दिया है कि पाकिस्तान को इस मामले में सुधरना ही होगा। साथ ही यह भी प्रतिबद्धता जताई कि अमेरिका भारत के साथ मिलकर इस्लामिक आतंकवाद को खत्म करेगा। इसे देखते हुए दुनिया को यह संदेश जाता है कि आतंकवाद के खात्मे को लेकर भारत की मुहिम परवान चढ़ चुकी है।

कॉम्प्रिहेंसिव ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्विपक्षीय संबंधों को कॉम्प्रिहेंसिव ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप के स्तर पर ले जाने का निर्णय लिया है। उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया है कि ड्रग तस्करी नार्को-आतंकवाद और संगठित आतंकवाद जैसी गंभीर समस्याओं के लिए दोनों की सहमति है। स्ट्रैटेजिक एनर्जी पार्टनरशिप की सुदृढ़ता को भी इस मुलाकात में बल मिलता दिखाई देता है। इतना ही नहीं, कुछ समय से इस क्षेत्र में आपसी निवेश भी बढ़ा है, जिसके चलते तेल और गैस के लिए अमेरिका भारत का एक महत्वपूर्ण स्नोत बन गया है। अमेरिका हमेशा ‘अमेरिका फस्र्ट’ की नीति पर चलता है। यदि ऐसा है तो भारत उसके लिए द्वितीय ही रहेगा। अब भारत को यह देखना है कि अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका के साथ कितना कारोबार हो सकता है।

भारत की उम्‍मीद बरकरार

अमेरिका ने ‘तरजीह देश’ का दर्जा छीन कर भारत को मिलने वाली टेरिफ छूट को पहले ही खत्म कर दिया है। साथ ही ईरान से तेल खरीदने पर पिछले दो मई से प्रतिबंध लगा रखा है। इतना ही नहीं, भारत कृषि, ऑटोमोबाइल, वाहनों के पुर्जे व इंजीनियरिंग इत्यादि से जुड़े अपने उत्पादों के लिए अमेरिका से दरवाजा खोलने की उम्मीद रखता रहा है। इस समझौते में इन उम्मीदों को भी देखा जाएगा। हालांकि अमेरिका, भारत पर कृषि और विनिर्माण से लेकर डेयरी उत्पाद और चिकित्सा उपकरणों के लिए बाजार की अपेक्षा रखता है जो भारत के अनुकूल नहीं है। ऐसे में दोस्ती की डील इन कड़वाहट के बीच कितनी मिठास लेगा इसे बाद के लिए छोड़ देना चाहिए।

लगातार मजबूत हो रहे हैं संबंध 

फिलहाल भारत और अमेरिका के बीच संबंध लगातार वृद्धि करते रहे हैं। दोनों देशों के बीच टू-प्लस-टू वार्ता समेत कई द्विपक्षीय संबंध इस बात को पुख्ता करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की केमिस्ट्री पिछले साल सितंबर में ‘हाउडी मोदी’ में देखी गई। फिलहाल भारत और अमेरिका रक्षा कारोबार भी इस मुलाकात की पटकथा का एक बड़ा हिस्सा था। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन यह उम्मीद पहले ही जता चुका था कि दोनों देशों का रक्षा कारोबार 18 अरब डॉलर को पार करेगा।

पूर्व की अमेरिकी सरकारों ने संबंधों को किया मजबूत 

गौरतलब है कि बीती सदी के आखिरी दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका का रुख भारत की ओर नरम हो गया था। उसके एक दशक बाद लगातार अमेरिकी राष्ट्रपतियों का भारत दौरा द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देता रहा। बिल क्लिंटन के बाद जॉर्ज डब्ल्यू बुश, बराक ओबामा और अब डोनाल्ड ट्रंप का भारत दौरा मित्रता और द्विपक्षीय संबंधों को और पुख्ता कर गया।

(लेखक वाइएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेश के निदेशक हैं)

ये भी पढ़ें:- 

अफगानिस्‍तान पर संभावित तालिबान-अमेरिका समझौता बना है भारत की चिंता और डर का सबब

फिजिक्‍स में नोबेल पुरस्‍कार पाने वाले पहले एशियाई थे डॉक्‍टर सीवी रमन

कोरोना वायरस से जुड़ी सभी खबरों को पढ़ने के लिए क्लिक करें  

रोहतकवासियों के सपनों से दूर होती जा रही है दिल्‍ली मेट्रो, अब सियासत भी हो गई शुरू 

जानें भारत के लिए कितना फायदेमंद रहा ट्रंप का दौरा, चीन-पाकिस्‍तान पर क्‍या है एक्‍सपर्ट की राय