नई दिल्ली [गौतम अडाणी]। आज हमारे भविष्य पर कोविड-19 का व्यापक प्रभाव पड़ता दिख रहा है। अर्थव्यवस्थाओं, नौकरियों और मानव जाति का अस्तित्व संकट में है। हालांकि निराशा के बीच कई ऐसी चीजें भी उभरकर सामने आई हैं जो ध्यान देने योग्य हैं।

इस बारे में कौन सोच सकता था कि मायलैब डिस्कवरी सॉल्यूशंस, पुणे में एक छोटा स्टार्टअप स्वदेशी कोरोना वायरस परीक्षण किट बनाने वाली पहली भारतीय फर्म बन जाएगी। और वह भी ऐसे समय में जब भारत को उच्च-गुणवत्ता और किफायती परीक्षण किट की सख्त आवश्यकता है।

जिस किट का विकास करने में कई माह लग जाते हैं, इस स्टार्टअप ने इस कार्य को महज कुछ सप्ताह में कर दिया। इससे भी अधिक प्रेरक इस परियोजना का नेतृत्व करने वाले वायरोलॉजिस्ट मीनल दक्ष भोंसले की कहानी है। मानव आत्मा को झकझोरने वाली, आशा और शक्ति प्रदर्शित करने वाली सैकड़ों ऐसी अविश्वसनीय कहानियों के बारे में आजकल हम रोजाना देखसुन रहे हैं। उदाहरण के लिए देश में आवश्यक चीजों की आपूर्ति में देश के बंदरगाहों पर कार्यरत कर्मचारियों की महत्वपूर्ण भूमिका।

विशाखापत्तनम में अडानी पोर्ट में इंजीनियरों की एक टीम ने महज चार घंटे में ही सभी के उपयोग के लिए सेनेटाइज पानी के एक शावर का निर्माण कर दिया। ऐसे उदाहरण हमें यह बताते हैं कि मुश्किल समय हमें करीब लाता है और किसी भी घटना का सामना करने के लिए मजबूत बनाता है। समाज के विभिन्न वर्गों के कई परिवारों ने वंचितों के लिए आवश्यक वस्तुओं को एकत्र करने में अपने लॉकडाउन के समय का सदुपयोग किया है। ये सामान्य लोग हैं जो साधारण जीवन जीते हैं, लेकिन जो चीज उन्हें असाधारण बनाती है, वह है दूसरों की देखभाल करने की उनकी मंशा।

घरों में सहायकों के तौर पर काम करने वाले लोग, दैनिक वेतनभोगी कामगार और विविध तरीकों से अपना जीवन-यापन करने वाले लोगों को आज संकट के इस दौर में मदद के लिए न केवल सरकार और बड़े निगम या फिर धर्मार्थ संगठन सामने आए हैं, बल्कि उनके आसपास रहने वाले लोग भी उनकी मदद कर रहे हैं। मैंने नवीन एमएस के बारे में पढ़ा जिन्होंने कर्नाटक में ग्रामीण समुदायों के बीच कोरोना वायरस पर जागरूकता पैदा करने और मिथकों को दूर करने का जिम्मा उठाया।

एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, चित्रदुर्ग जिले का युवक एक सोशल मीडिया समूह का हिस्सा बन गया जिसने लोगों को महामारी पर प्रामाणिक जानकारी तक पहुंच में मदद की। इसमें जो चीज सबसे सराहनीय है, वह है उनका विजन। उन्होंने सोचा कि अर्थव्यवस्था को फिर से जीवित करने के लिए यह जरूरी है कि लोगों का दिमाग स्वस्थ रहे।

मुझे अडानी फाउंडेशन में युवा स्वयंसेवकों द्वारा दिए जा रहे सामुदायिक कार्यों को देखकर कृतज्ञता महसूस होती है। दरअसल कोविड-19 संकट ने हमें केवल भलाई की इस भावना को प्रतिबिंबित करने का अवसर प्रदान किया है। हालांकि कोरोना वायरस के बाद की दुनिया खतरनाक प्रतीत हो सकती है, लेकिन मेरा नजरिया इस दौर के प्रति सकारात्मक है। आज जिस तरीके से देश-समाज में सभी लोग कंधे से कंधा मिलाकर कोविड-19 से पैदा होने वाली समस्या से संघर्षरत हैं, उससे मुझे यह उम्मीद बंधी है कि हम इस समस्या से अवश्य निपटने में कामयाब होंगे।

कोरोना वायरस हमारी गतिविधियों को रोक सकता है, लेकिन इससे एक साथ लड़ने और भलाई करने का हमारा इरादा कमजोर नहीं हो सकता है। यह हमें भविष्य के बारे में सकारात्मक होने से नहीं रोक सकता है।भले ही इसमें समय लग सकता है, लेकिन राष्ट्र इस संकट से निपटेगा, मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है।

(चेयरमैन, अडाणी समूह, ब्लॉग से संपादित अंश, साभार)