देवेंद्रराज सुथार। हाल ही में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया एवं लोकल सर्कल्स द्वारा कराए गए एक ऑनलाइन सर्वेक्षण के आंकड़ों पर आधारित ‘इंडिया करप्शन सर्वे 2018’ नामक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि इस साल 56 प्रतिशत लोगों को अपना काम करवाने के लिए रिश्वत का सहारा लेना पड़ा है। पिछले साल भी संस्था ने सर्वेक्षण कराया था जिसमें यह आंकड़ा 45 प्रतिशत था, जो इस साल 11 फीसद की बढ़ोतरी के साथ 56 प्रतिशत तक पहुंच गया है।

ऑनलाइन सर्वेक्षण
गौरतलब है कि इस ऑनलाइन सर्वेक्षण में देश के 215 शहरों में 50 हजार लोगों की राय ली गई है जिसमें 33 प्रतिशत महिलाएं भी शामिल हैं। सर्वे में लोगों ने यह स्वीकार किया है कि रिश्वत देने से उनका काम आसानी से अंजाम तक पहुंच जाता है, जिससे उनके समय और ऊर्जा दोनों की बचत होती है। हालांकि देश में रिश्वत के खिलाफ बने कानून के मुताबिक रिश्वत देना अपराध है और इसके लिए सात साल की जेल और जुर्माना दोनों ही का प्रावधान पहले से है, इसे जानते हुए भी 23 प्रतिशत लोगों ने यह माना है कि उन्हें कानून से डर नहीं लगता है, बल्कि कानून प्रभावहीन है।

भ्रष्टाचार का कारण रिश्वतखोरी
देश में भ्रष्टाचार का एक प्रमुख कारण रिश्वतखोरी भी है। रिश्वतखोरी को सरल शब्दों में समझें तो यह ऊपर की कमाई और घूस है। रिश्वत लेना और देना फैशन बनता जा रहा है। बेधड़क रिश्वत का काला कारोबार आसानी से फूल-फल रहा है। आए दिन दैनिक समाचार पत्रों में फलां-फलां अधिकारी या मंत्री के रिश्वत लेते कारनामे उजागर हो रहे हैं। वस्तुत: आज प्रत्येक क्षेत्र रिश्वतखोरी के रंग में रंग चुका है। लोगों में रिश्वत देकर काम निकालवाने की प्रवृत्ति घर करती जा रही है।

लाखों लोगों के जीवन प्रभावित
कुछ लोग करोड़ों की रिश्वत देकर लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। जनमानस में धारणा बैठ गई है कि रिश्वत देने से हर जटिल काम सरल हो जाता है। इसलिए आज मंदिर में दर्शन के लिए, स्कूल अस्पताल में एडमिशन के लिए, ट्रेन में रिजर्वेशन के लिए, राशनकार्ड, लाइसेंस, पासपोर्ट बनवाने के लिए, नौकरी के लिए, रेड लाइट पर चालान से बचने के लिए, मुकदमा जीतने और हारने के लिए, सरकारी ठेका लेने जैसे कई कामों के लिए रिश्वत दी और ली जा रही है।

रिश्वत लेने का सिलसिला पुराना
सरकारी दफ्तरों में रिश्वत लेने का सिलसिला बहुत पुराना है। जब तक मुट्ठी गरम नहीं की जाती, तब तक फाइल एक मेज से दूसरे मेज तक सरकती नहीं है। भारत में इस मर्ज के उपचार के लिए कई छोटे-मोटे ऑपरेशन किए गए, पर अब तक पूर्ण सफलता हाथ नहीं लग पाई है, क्योंकि अधिकांश लोगों का सोचना है कि कोई ओर खजाना लूटे इससे अच्छा तो पहले हम ही लूट लें। रिश्वत लेते और देते वक्त लोग यह भूल जाते हैं कि वे ऐसा करके खुद के साथ अन्याय तो कर ही रहे हैं साथ ही किसी भले आदमी का हक भी मार रहे हैं।

सत्ताधीशों की जिम्मेदारी
लोगों में यह गलत धारणा है कि ‘मेरे अकेले के रिश्वत लेने और देने से कौन सा देश बदल जाएगा’। हमें ईमानदार बनने की सर्वप्रथम शुरुआत स्वयं से करनी होगी, क्योंकि इस समस्या का हल सरकार से ज्यादा स्वयं लोगों के पास है। जनता को सोचना होगा कि वे एक ईमानदार देश के नागरिक होने का गौरव प्राप्त करना चाहते हैं या एक भ्रष्टाचार के कीचड़ में धंसे देश का कलंक भुगतना चाहते हैं। सत्ताधीशों की जिम्मेदारी है कि वे भ्रष्टाचार मिटाने के ठोस कदम उठाएं और रिश्वतखोरी के खिलाफ बने कानून को असरदार बनाएं।