ब्रजबिहारी। कोरोना के इस संकटकाल में बिना रुके-थके अपने कर्तव्य पथ पर अविचलित अग्रसर डाक्टरों, नर्सों एवं दूसरे स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिसकर्मियों सहित दया, करुणा और सहानुभूति की प्रतिमूर्ति बनकर हर समय जरूरतमंदों की मदद कर रहे लोगों की प्रेरणास्पद कहानियां हम सबके अंदर आशा और विश्वास का संचार कर रही हैं। ऐसे समय में जब हम घरों में कैद हैं या फिर खुद को अधिकाधिक सुरक्षित रखते हुए काम कर रहे है, ये लोग अपनी जान की परवाह किए बिना अहर्निश सेवा में संलग्न है।

पिछले साल मार्च से अब तक सैकड़ों डाक्टरों, नर्सों एवं पुलिसकर्मियों की कोरोना से मौत हो चुकी है, लेकिन, खुली आंखों से न देखे जा सकने वाले एक सूक्ष्म जीव की वजह से पैदा हुए इस अभूतपूर्व संकट में हम इंसानों के बीच ही कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इस आपदा को अवसर के रूप में देख रहे हैं और दवा, आक्सीजन से लेकर बेड तक की कालाबाजारी से मुनाफा कमाने में मस्त हैं। आठ सौ का सिलेंडर आठ हजार में मिल रहा है। नौ सौ का रेमडेसिविर इंजेक्शन 35-35 हजार रुपये में बिक रहा है। इस इंजेक्शन को हासिल करने के लिए लोगों की इतनी भारी भीड़ जुट रही है कि उनमें से न जाने कितने कोरोना का संक्रमण लेकर लौट रहे हैं। यहां तक कि श्मशान में भी कोरोना से मृत लोगों के स्वजनों से भी जमकर वसूली हो रही है।

इस महामारी के कारण गंभीर संकट के पंजे में फंसे देश में दूसरी श्रेणी विपक्ष के उन नेताओं की है, जो कोरोना से पैदा हुए हालात को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। इंटरनेट मीडिया पर अनाप-शनाप टिप्पणियां कर रहे हैं। ये लोग भूल रहे हैं कि जब-जब मानवता पर प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित आपदा आती है, तो उससे फायदा उठाने वाले अपनी जेबें भरने में लग जाते हैं। इस देश के कई बड़े उद्योगपति दूसरे विश्व युद्ध की पैदाइश हैं, जब ब्रिटेन चारों तरफ से घिरा हुआ था और सैनिक साजो-सामान से लेकर रसद तक के लिए वह पूरी तरह से भारत पर निर्भर था।

आज इन जमाखोरों, मुनाफाखोरों और अवसरवादी नेताओं की तुलना गिद्धों से की जा रही है। पिछले महीने दिल्ली हाईकोर्ट ने भी आक्सीजन की कालाबाजारी पर कहा था कि यह समय गिद्धों की तरह व्यवहार करने का नहीं है। काश, रामायण के जटायु की तरह आज के गिद्ध भी बोल पाते तो उनका यही जवाब होता कि हे इंसानों, अपनी काली करतूतों के लिए हमारा नाम बदनाम करना छोड़ दो। अपने ही बीच के लोगों की तरफ नजर उठाकर देखों, तुम्हें कई नाम मिल जाएंगे, जिनसे इन अवसरवादियों की तुलना की जा सकती है। जैसे पीठ में छुरा भोंकने वाले गद्दारों को मीर जाफर और जयचंद कहते हो, उसी तरह इनके लिए भी कोई नाम ढूंढ लो। मीर जाफर ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को और जयचंद ने दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान के साथ धोखा किया था और देश पर विदेशी राज का रास्ता साफ किया था।

अफसोस कि गिद्ध बोल नहीं सकते। वरना वे बताते कि तमाम जीव-जंतुओं की मृत देह का भक्षण कर वातावरण को शुद्ध बनाए रखने वाले इस पक्षी कैसे हम इंसानों ने ही विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया है। वे बोल पाते तो बताते कि गिद्ध या कोई दूसरा जानवर बिल्कुल भी इंसानों की तरह नहीं हैं। दरअसल, ये जानवर हमसे बेहतर हैं। यह इंसान ही है जो बिना मतलब के अपने जैसों का खून बहाता है। जानवर सिर्फ अपना पेट भरने के लिए शिकार करते हैं और प्रकृति के सभी नियमों का पालन करते हैं। एक ही प्रजाति के जानवर एक-दूसरे की जान के दुश्मन नहीं बनते हैं। इसलिए, किसी वहशी, दरिंदे या लालची इंसान की तुलना जानवरों से करना उनके साथ अन्याय है।

यह इंसान ही है जो अपने लालच के वश में प्रकृति का इस तरह से दोहन कर रहा है कि खुद उसका ही अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इस समय दुनिया भर में इंसानों की आबादी 7.6 अरब है, लेकिन धरती पर रहने वाले सूक्ष्म जीवों, कीटों, वृक्षों और जानवरों की तुलना में उनकी संख्या महज 0.01 फीसद है। संख्या में इतना नगण्य होने के बावजूद खुद को श्रेष्ठ मानने के दंभ में इंसान अब तक 83 फीसद स्तनपायी और 50 फीसद पादपों को नष्ट कर चुका है। उसकी इस विनाशलीला से सिर्फ गाय, बैल, भैंस, सुअर, घोड़े जैसे पालतू पशु ही बच पाए हैं, क्योंकि वे खुद उसके अस्तित्व के लिए जरूरी हैं।

इंसान की सभ्यता, उदारता, वैज्ञानिक प्रगति और आर्थिक विकास आज उसे एक सूक्ष्म जीव नहीं बचा पा रही है। उसकी सारी उपलब्धियां क्षणभंगुर साबित हो रही हैं। उसकी लापरवाही, तुच्छता और ओछेपन ने इस सुंदर धरा को नर्क बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है और कोरोना का संकट गुजरने के बाद शायद वह फिर उसी राह पर चल पड़े। प्रकृति के संकेत को समझकर इस धरती के सभी जीव-जंतुओं का सम्मान करते हुए जीवन जीने की कला नहीं सीखी गई तो आगे कोरोना से भी और गंभीर एवं जानलेवा संकट आ सकते हैं।