[ निकोलस क्रिस्टॉफ ]: बीते कुछ समय में चीन ने जो उपलब्धियां हासिल की हैं उससे चीनी नेताओं का कद बहुत ऊंचा दिखाई पड़ता है। भारी-भरकम राजनीतिक एवं आर्थिक शक्ति पर सवार होकर उन्होंने एक अद्भुत संसार रचा है। चीन में साप्ताहिक दर से एक नया विश्वविद्यालय तैयार हो रहा है। बीते तीन वर्षों में वह इतना सीमेंट इस्तेमाल कर चुका है जितने सीमेंट की खपत अमेरिका में पूरी बीसवीं शताब्दी के दौरान नहीं हो पाई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग को ‘उम्दा नेता’ बता चुके हैं। माइकल ब्लूमबर्ग भी कह चुके हैं कि ‘शी कोई तानाशाह नहीं हैं’, लेकिन हमें शी के तानाशाही भरे रवैये का चीन और शेष विश्व के लिए खतरा स्पष्ट रूप से दिख रहा है। इसमें ताजा उदाहरण है कोरोना वायरस का। इस वायरस की पहली दस्तक चीनी शहर वुहान में एक दिसंबर को ही दर्ज हो गई थी।

कोरोना वायरस से निपटने के लिए वुहान में निर्णायक कार्रवाई की पहल नहीं हुई

दिसंबर खत्म होते-होते वुहान के स्वास्थ्य गलियारों में इस बीमारी को लेकर खतरे की घंटी बजने लगी थी। यह वह दौर था जब संबंधित विभाग इससे निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई की पहल करता। उसने ऐसी निर्णायक कार्रवाई अवश्य की, लेकिन इस वायरस के खिलाफ नहीं, बल्कि उन लोगों के खिलाफ जो इस चुनौती के खिलाफ जनजागरूकता का बिगुल बजा रहे थे। चीन में इस्तेमाल होने वाले वॉट्सएप सरीखे एप ‘वी चैट’ पर इस बीमारी को लेकर जानकारी दे रहे एक डॉक्टर पर कम्युनिस्ट पार्टी ने कार्रवाई की। उन्हें मजबूर किया गया कि इस ‘गलती’ के लिए वह माफी मांगें। इस महामारी को लेकर ‘अफवाह फैलाने’ वाले उनके जैसे आठ डॉक्टरों को पुलिस ने जरूरी ‘शिक्षा’ देकर ‘सीधा’ किया। बेहतर होता कि शी ने ऐसे डॉक्टरों को प्रताड़ित करने के बजाय उनकी बातों को ध्यान से सुना होता।

चीन ने कोरोना वायरस से नागरिकों को अंधेरे में रखा

चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को कोरोना वायरस की जानकारी तो 31 दिसंबर को ही दे दी, परंतु अपने नागरिकों को अंधेरे में रखा। दूसरे देश संक्रमण को लेकर शिकायत करते रहे, लेकिन चीन कहता रहा कि इसका प्रकोप केवल वुहान तक सीमित है। शुरुआत में वुहान के मेयर इस पर बोलने से कन्नी काटते रहे। लोगों ने भी कोई एहतियात नहीं बरती।

जब हालात काबू से बाहर हो गए तब जाकर सरकार हरकत में आई

जब हालात काबू से बाहर हो गए तब जाकर सरकार हरकत में आई और उसने 23 जनवरी को वुहान को पूरी तरह बंद करने का फैसला किया। इससे लोग शहर में एक तरह से बंधक बन गए। मेयर के अनुसार पचास लाख लोग इससे पहले ही शहर छोड़कर जा चुके थे। पहले-पहल चीनी प्रशासन इस महामारी पर पर्दा डाले हुए था तो अस्पताल भी पर्याप्त रूप से तैयार नहीं थे।

चीन में मास्क, परीक्षण किट की किल्लत

अब तो वहां मास्क, परीक्षण किट तक की किल्लत हो गई है। कुछ डॉक्टरों का काम तो प्लास्टिक फोल्डर से चश्मे बनाने तक सीमित हो गया है। शुरुआती स्तर पर इसे छिपाने में इसलिए भी सफलता मिल सकी कि शी के शासन के दौरान चीन में पत्रकारिता, सोशल मीडिया, गैर-सरकारी संस्थाओं और विधिक मामलों जैसी उन संस्थाओं का पराभव ही हुआ जो एक किस्म की जवाबदेही तय करने का काम करती हैं। हालांकि चीन में इन संस्थाओं की सेहत कभी भी अच्छी नहीं रही, लेकिन शी के आगमन से पहले स्थिति इतनी खराब नहीं थी।

आजादी का गला दबाते हुए शी ने चीन को और अंधियारे दौर में धकेल दिया

इस मामले में मेरा खुद का अनुभव रहा है। एक प्रयोग के सिलसिले में मैं 2003 तक चीनी ब्लॉग्स की थाह लेता रहा, लेकिन उसके बाद मुझे कुछ नहीं मिल सका। नागरिक समाज और किसी भी प्रकार की आजादी का गला दबाते हुए शी ने चीन को और गहरे अंधियारे दौर में धकेल दिया है।

शी की बढ़ती तानाशाही के चलते ही चीन कोरोना वायरस को लेकर मात खा गया

शी की बढ़ती तानाशाही के चलते ही चीन कोरोना वायरस को लेकर मात खा गया। इससे पहले 2018 में भी वह स्वाइन फ्लू से ढंग से नहीं निपट पाया। इसने चीन के सुअर मांस उद्योग को तहस-नहस कर दिया जिसके कारण दुनिया के एक चौथाई सुअर मारने पड़े। तानाशाह अक्सर खराब निर्णय करते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उन तक सही सूचनाएं नहीं पहुंच पातीं। जब आप स्वतंत्र आवाजों को दबा देते हैं तब आपके पास अपने इर्दगिर्द जमा चौकड़ी से खुशामद और चापलूसी के अलावा कुछ और नहीं मिलता।

शी ने सिलसिलेवार की कई गलतियां

कई वरिष्ठ चीनी अधिकारियों ने मुझे बताया कि स्थानीय अधिकारियों से मेल-मुलाकात को लेकर वह कैसे अक्सर झूठ बोलते हैं। इससे जमीनी हकीकत का सही अंदाजा नहीं मिल पाता। शी ने सिलसिलेवार कई गलतियां की हैं। वह हांगकांग में उत्पन्न राजनीतिक संकट को सही ढंग से नहीं संभाल पाए। ताइवान की राष्ट्रपति जैसी अपनी मुखर विरोधी की अनजाने में ही सही दोबारा ताजपोशी की राह आसान बना दी। साथ ही उनके दौर में अमेरिका सहित तमाम देशों के साथ चीन के संबंध भी लगातार तल्ख होते गए।

कोरोना वायरस दस लाख उइगर मुसलमानों को भी अपने चपेट में ले सकता है

कोरोना वायरस पहले ही चीन के सुदूर पश्चिमी प्रांत शिनझियांग तक पहुंच गया है। इससे यह जोखिम भी बढ़ गया है कि यह उन तकरीबन दस लाख उइगर मुसलमानों को भी अपने चपेट में ले सकता है जिन्हें ऐसे प्रताड़ना केंद्रों में रखा गया है जहां साफ-सफाई और स्वास्थ्य सेवाएं बेहद सीमित हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि वायरस किसी भी देश के लिए बड़ी चुनौती होते हैं और इस मामले में चीन को शाबासी देनी भी बनती है कि उसने खसरा जैसी बीमारियों की रोकथाम के मामले में अमेरिका से बेहतर काम किया है।

जीवन प्रत्याशा के मामले में चीन के तंत्र को श्रेय दिया जाना चाहिए

चीन के तंत्र को इसका श्रेय दिया जाना चाहिए कि आज बीजिंग में जन्मे बच्चे की जीवन प्रत्याशा वाशिंगटन में जन्मे शिशु से अधिक होती है। जीवन प्रत्याशा के मामले में अमेरिका की स्थिति कंबोडिया और बांग्लादेश से भी लचर है। ऐसे में अमेरिका किसी भी मुल्क को स्वास्थ्य पर भाषण देने की स्थिति में नहीं है। इसके बावजूद यदि कोई अमेरिकी विनम्रता के आग्रह से ही सही शी के अधिनायकवादी शासन की प्रशंसा करे तो उसे भी तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए।

 चीन की सुस्त अर्थव्यवस्था कोरोना के कोप से और सिकुड़ सकती है

चीन का सामाजिक मंत्र यही है कि वहां सरकार चुनने का अधिकार नहीं, अलबत्ता धीरे-धीरे ही सही जीवन गुणवत्ता सुधरती है। हालांकि चीनी अर्थव्यवस्था भी सुस्ती की शिकार होकर तीन दशक की सबसे तेज गिरावट वाले मोड़ पर है और कोरोना के कोप से वह और सिकुड़ सकती है।

शी एक आत्ममुग्ध तानाशाह हैं और इसकी कीमत नागरिकों को चुकानी पड़ रही है

शी अपने वादों पर भी खरे नहीं उतर पा रहे जिससे चीनी उनसे कुपित होने लगे हैं। इसकी पुष्टि उन चीनी सोशल मीडिया मंचों से होती है जिन्हें सेंसर करने की भरसक कोशिशों के बाद भी वहां से कुछ बातें सामने आ ही जाती हैं। मुझे नहीं पता कि अपने कुशासन के चलते शी किसी राजनीति संकट में हैं या नहीं, लेकिन उन्हें इसकी तपिश जरूर झेलनी चाहिए। वह एक आत्ममुग्ध तानाशाह हैं और इसकी कीमत नागरिकों को चुकानी पड़ रही है।

( लेखक द न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार हैं )