मध्य प्रदेश [आशीष व्यास]। मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इस बार गर्व नहीं, शर्म के नए अध्याय को लेकर देश के सामने उपस्थित है। शनिवार सुबह तक कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या 249 हो चुकी है और इसी शहर में मौत से मात खाने वालों का आंकड़ा 30 पर जा पहुंचा है।

यह कभी नहीं भुलाया जा सकता कि इसी शहर के एक हिस्से में चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों को धिक्कारा गया, यह भी हमेशा याद रखा जाएगा कि कैसे और क्यों पुलिसकर्मियों को निशाना बनाकर पथराव किया गया। भुलाया तो यह भी नहीं जाना चाहिए कि प्रशासनिक गलतियों का बड़ा पिटारा इंदौर में ही खोला-बंद किया गया, याद यह भी रखा जाना चाहिए कि राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने इंदौर को सुधरने-संवरने का अवसर ही नहीं दिया।

चिंता और चुनौती का ऐसा ही ‘चक्रव्यूह’ अब भोपाल में भी दिखाई देने लगा है। मान लिया कि इंदौर से ढेरों गलतियां हुई हैं। लेकिन भोपाल में भी उसे क्यों दोहराया गया? ग्वालियर समझ नहीं पाया और जबलपुर संभलते-संभलते फिर चपेट में आने लगा। जान लिया कि हम, हमारा पूरा प्रदेश अब खतरे में है। कोरोना के संदर्भ में हम देश के लिए खतरा बन गए या बनते जा रहे हैं। हमने अबकी बार देश का नाम ऊंचा करने के बजाय नीचा कर दिया है।

अब आगे क्या?

केंद्र से लेकर राज्य तक, क्या हर कोई दूर से बैठकर दिशानिर्देश देगा? टीकाटिप्पणियां करेगा? आरोप-प्रत्यारोप भी करेगा? लेकिन यदि इंदौर, भोपाल या फिर मुरैना-खरगोन कहीं भंवर में फंस गए हैं तो उन्हें बाहर कौन निकालेगा? कोई मानें या ना माने, फिलहाल कोरोना के जाल में बुरी तरह उलझ चुके इंदौर की हालत उस मकड़ी की तरह हो गई है जिसे खुद ही जाल बुनकर अपने आप को बचाना है और फिर खुद ही इस मकड़जाल से बाहर भी आना है।

जब इंदौर में ‘संक्रमण’ फैल रहा था तो राजधानी के अफसर भोपाल में बैठकर आदेश दे रहे थे। थिंक टैंक की ‘पेपर-प्लानिंग’ और मैदानी अमले में जोश-होश के साथ काम करवाने वाले अफसरों की फौज ‘गायब’थी। आज यदि इंदौर ‘मिनी मुंबई’ के रूप में मुंबई के बाद देश में दूसरे स्थान पर है, तो वल्लभ भवन से लेकर विधानसभा के गलियारों में चक्कर लगाने वाले महसूस कर सकते हैं कि यहां इंदौर आज भी‘अलग-थलग’ही है। शायद इसीलिए मौत का कलंक लेकर मेडिकल हब कहलाने वाला इंदौर, अब भारत की सीमाएं पार कर इटली जैसे देश को टक्कर देने पर तुला है। इंदौर में कोरोना पॉजिटिव मरीजों की मृत्युदर देश में सबसे ज्यादा यानी 10 प्रतिशत से ज्यादा है। वहीं रोजाना मौत की नई-नई काली-कहानी सुनाने वाले इटली की मृत्युदर 11 फीसद है।

बात भीलवाड़ा मॉडल की:

सप्ताह भर से ज्यादा हो गया जब हर कोई कह रहा है कि इंदौर सहित पूरे मध्य प्रदेश में राजस्थान का भीलवाड़ा-मॉडल लागू करें। देश भर में अब सभी को पता है कि भीलवाड़ा ने मरीज मिलते ही लॉकडाउन कर दिया। क्या सिर्फ इतने से ही वहां संक्रमण रुक गया? नहीं, बिल्कुल भी नहीं। यह संभव हुआ राज्य सरकार और जिले के प्रशासनिक तंत्र के बीच पुख्ता समन्वय से। भीलवाड़ा जिला प्रशासन का दावा है कि यहां 27 कोरोना पॉजिटिव मिले थे और अब कोई कोरोना पॉजिटिव मरीज नहीं है। मौत का आंकड़ा भी शून्य है। हालांकि कलेक्टर राजेंद्र भट्ट अब थ्री-लेयर क्वारंटाइन और आइसोलेशन योजना पर काम कर रहे हैं।

स्पीड:

पहला मरीज मिलते ही, ढाई घंटे के अंदर पुख्ता लॉकडाउन। ढाई दिन के भीतर ही अस्पताल के 384 कर्मचारी, 400 मरीजों की स्क्र्रींनग और सैंपलिंग। इसमें दो डॉक्टर समेत 18 संक्रमित पाए गए थे। सभी को आसपास हीआइसोलेट- क्वारंटाइन किया गया।

बड़ा सवाल:

मध्य प्रदेश में 18 दिन में एक हजार लोगों को ही क्वारंटाइन कर पाए। क्वारंटाइन किए गए घर के बाहर पहरेदार: मॉनिटरिंग, क्वारंटाइन या आइसोलेट किए गए परिवारों व कंटेनमेंट जोन में हर घर के बाहर पहरेदार। ताकि वे बाहर आकर आस-पड़ोस या कॉलोनी में किसी से संपर्क नहीं कर सकें। संभवत: इस कारण मरीजों की संख्या नियंत्रित रही।

बड़ा सवाल:

मध्य प्रदेश में राज्य सरकार और मेडिकल कॉलेज केवल पॉजिटिव मरीजों और मौत के अलगअलग आंकड़े जारी करते रहे। कोई सफलता टीमवर्क के बगैर संभव नहीं है। 15 सीनियर डॉक्टर्स की टीम के साथ एक डीएसपी स्तर के अधिकारी 24 घंटे जुटे हुए हैं। जब हम मरीज के साथसाथ वायरस से लड़ रहे थे तब पुलिस टीम लोगों की आदतों से संघर्ष कर रही थी। इसे इस तरह समझिए, हम सभी तीन दिन का कपड़ा लेकर घर से चले थे। तब से अब तक, यहीं से कपड़े खरीदकर पहन रहे हैं। हमारे परिणामदायक योगदान को देखते हुए घरवालों ने भी कह दिया है कि अब काम पूरा करके ही लौटना।

बड़ा सवाल:

इंदौर में कफ्र्यू के पहले ही दिन दूध वितरण को लेकर जन प्रतिनिधियों से सरकारी नुमाइंदों तक ने ऐसा दबाव बनाया कि चंद घंटों में ही तीन बार फैसला बदलना पड़ा। बहरहाल इंदौर से इटली तक कोरोना संक्रमण से बचाव के तरीके, उपचार, नवाचार और प्रशासनिक व्यवस्था पर नजर डालें तो यह सिर्फ कोरोना संक्रमितों की प्रतिरोधक क्षमता की परीक्षा नहीं है, बल्कि जनता, प्रशासन और सरकार की इम्युनिटी पावर का भी टेस्ट है। 

इसे यूं भी समझ सकते हैं कि वर्तमान ने हमारे इतिहास को लिखने के लिए अक्षरों का ऐसा झुंड रख दिया है, जो खुद ही शब्द बनकर अपने आप को अर्थ दे रहा है! धीरे-धीरे अपनी पंक्तियां भी खुद ही तय कर रहा है! अब सवाल हमारी समझ और सरोकार का है कि वर्तमान की इस अर्थपूर्ण शिक्षाओं से हम क्या सबक सीखते हैं। (संपादक, नई दुनिया, मध्य प्रदेश)