संजय मिश्र। कोरोना वायरस ने एक बार फिर मध्य प्रदेश की प्रगति का रास्ता रोक दिया है। वर्ष 2020 की इस महामारी से घायल प्रदेश उठ खड़ा होने की तैयारी कर रहा था, लेकिन दूसरी लहर ने पहले से भी अधिक तेज प्रहार किया है। हर दिन संक्रमित मरीजों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है। स्कूल, कालेज तो बंद हैं ही प्रमुख शहरों में कारोबार पर भी एक तरह से ताला लग गया है। अप्रैल में कोरोना अपने चरम पर होगा, यह अनुमान लगाने में प्रशासनिक मशीनरी विफल रही है। स्थिति यह है कि जिस गति से संक्रमण बढ़ रहा है उसी गति से हमारी चिकित्सा व्यवस्था की कमियां भी सामने आ रही हैं।

अस्पतालों में दवा से लेकर बिस्तर तक की कमी पड़ गई है। गंभीर मरीजों तक के लिए आसानी से वेंटिलेटर नहीं मिल पा रहे हैं। ऑक्सीजन की आपूíत भी नि¨श्चत करने वाली नहीं है। दो दिन पहले ऑक्सीजन की कमी से एक अस्पताल में तीन मरीजों की मौत हो गई, जिससे कई सवाल उठे हैं। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भरोसा दिया है कि किसी भी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी नहीं होने दी जाएगी, लेकिन मध्य प्रदेश को ऑक्सीजन की अपूíत करने वाले प्रदेशों में भी कोरोना संक्रमण जिस तरह बढ़ रहा है, उससे साफ है कि आने वाले कुछ दिनों तक कठिनाई बनी रहेगी। पिछले वर्ष सितंबर में भी प्रदेश के अस्पतालों में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ने पर ऑक्सीजन संकट पैदा हुआ था। तब सरकार ने तय किया था कि वह प्रदेश को ऑक्सीजन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम करेगी। होशंगाबाद के निकट इसका एक प्लांट लगाने के लिए मंजूरी दे दी गई, लेकिन इस काम में तेजी नहीं आ पाई।

यद्यपि राज्य सरकार बार-बार कह रही है कि वह संपूर्ण लॉकडाउन किए जाने के पक्ष में नहीं है, लेकिन भोपाल और इंदौर सहित राज्य के 12 शहरों में लगाया गया कफ्र्यू एक तरह का लॉकडाउन ही है। इसके कारण व्यापार-कारोबार सब ठप हैं। पिछले चार दिनों से किसानों के खेतों की सब्जियां बाजारों में नहीं पहुंच पा रही हैं। इसका असर आगामी दिनों में हमारी अर्थव्यवस्था पर गंभीर रूप से देखने को मिल सकता है। यह बड़ी सचाई है कि कोरोना ने सरकार और समाज के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा कर दिया है। प्रदेश में अब हर दिन करीब दस हजार मरीज मिलने लगे हैं। चिकित्सा व्यवस्था की लाचारी भी बढ़ती जा रही है। हालत यह है कि मरीज जिंदगी बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, लेकिन उन्हें उत्तम चिकित्सा की गारंटी नहीं मिल पा रही है। कहीं ऑक्सीजन की मारामारी मची है तो कहीं रेमडेसिविर इंजेक्शन की।

गंभीर चिंता की बात यह है कि जब तक सरकार व्यवस्था का विस्तार करती है तब तक कोरोना संक्रमण का दायरा और भी बढ़ चुका होता है। स्वास्थ्य विभाग ने पूर्व के संक्रमण दर के आधार पर अनुमान लगाया था कि इस साल 30 अप्रैल तक प्रदेश में 50 हजार सक्रिय मरीज होंगे, लेकिन 15 अप्रैल के पहले ही संक्रमितों की संख्या इतनी हो गई है। संक्रमण बढ़ने की दर ने सरकार के सारे अनुमानों को झुठला दिया है। हर दिन दो से तीन हजार सक्रिय मरीज बढ़ रहे हैं। यह संख्या इसी गति से बढ़ती रही तो 30 अप्रैल तक सक्रिय मरीजों का आंकड़ा एक लाख तक पहुंच जाएगा। ऐसे में चुनौती अनुमान से भी बड़ी होगी। अभी तक कुल संक्रमित मरीजों में करीब 60 फीसद होम आइसोलेशन में हैं, जबकि 40 फीसद अस्पतालों में रह रहे हैं। अस्पतालों में भर्ती मरीजों में करीब 10 फीसद आइसीयू में हैं। ऐसे में अगर 30 अप्रैल तक एक लाख सक्रिय मरीज हो गए तो इनमें करीब चार हजार के लिए आइसीयू की जरूरत पड़ेगी। इन मरीजों के लिए बिस्तर और ऑक्सीजन उपलब्ध कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी। फिलहाल प्रतिदिन प्रदेश में 220 टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है, जबकि 30 अप्रैल तक संक्रमण की गति यही रही तो ऑक्सीजन की जरूरत दोगुनी होगी।

विशेषज्ञ भी मानते हैं कि चिकित्सा उपायों के साथ-साथ संक्रमण की इस रफ्तार को रोकने और उसकी चेन तोड़ने के लिए सरकार को दो विकल्पों पर फोकस करना होगा। पहला, लोगों को मास्क और शारीरिक दूरी के लिए प्रेरित किया जाए, जिसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरा जोर लगा रहे हैं। दूसरा, जनता कफ्यरू को अधिक दिनों तक जारी रखा जाए। इसे सफल बनाने के लिए सामाजिक संगठनों एवं राजनीतिक दलों का सहयोग लिया जाए।

[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]