अनंत मित्तल। तेलंगाना में कोरोना संक्रमण के दो मरीजों का स्वस्थ घोषित होने के बाद दोबारा संक्रमित हो जाना महामारी से लड़ाई के लिए नई चुनौती है। इससे पहले हांगकांग और चीन में भी कोविड के संक्रमण से स्वस्थ घोषित कुछ लोगों में दोबारा महामारी की छूत पकड़ में आई है। ऐसे में आíथक परेशानी का दंश ङोल रहे भारत के लिए दोबारा संक्रमण की सूचना बेहद चिंताजनक है। इससे जहां हमारी इलाज संबंधी व्यवस्था लड़खड़ा सकती है, वहीं महामारी पर काबू पाने की समय-सीमा तथा अर्थव्यवस्था को उसके घातक असर से उबारने की तैयारियों पर गहरा असर पड़ेगा।

तेलंगाना के दो मरीजों के दोबारा संक्रमित होने के मामले में डॉक्टरों का अनुमान है कि पहली बार संक्रमण के बाद जिस व्यक्ति में पर्याप्त मात्र में एंटीबॉडीज यानी प्रतिरोधक विकसित नहीं हो पाते, वे दोबारा संक्रमित हो सकते हैं। इस बीच रोजाना 40,000 लोगों के टैस्ट को तैयार दिल्ली सरकार संक्रमण की दर करीब 3,000 प्रतिदिन होने के लिए पड़ोसी राज्यों को जिम्मेदार ठहरा रही है। उसके अनुसार दिल्ली के अस्पतालों में भर्ती महामारी संक्रमितों में एक-तिहाई बाहर के हैं।

हालांकि दिल्ली में नाबालिगों के सबसे ज्यादा संख्या में संक्रमित होने का तथ्य इन दलीलों पर पानी फेर रहा है। मुंबई के सीरो सर्वेक्षण में संक्रमण के निशाने पर मध्य वर्ग को आंका गया है। दिल्ली का सीरो सर्वेक्षण 29 फीसद आबादी में एंटीबॉडी पैदा होने की बात कर रहा है, मगर उनमें सबसे अधिक 34.7 फीसद पांच से 17 साल के बच्चे हैं। बच्चे अब घर से बाहर खेलने जा रहे हैं, जिससे वे संक्रमित हो रहे हैं।

देश में लोगों को दोबारा छूत लगने का सिलसिला शुरू होने से चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। इससे हर्ड इम्युनिटी यानी सामुदायिक संक्रमण के जरिये बचाव के सिद्धांत पर भी सवाल उठ रहे हैं। हालांकि हर्ड इम्युनिटी विकसित होने के प्रमाण दिल्ली और मुंबई में सीरो सर्वेक्षण के दोनों दौर में स्पष्ट परिलक्षित हुए हैं, मगर इसके असर की नए सिरे से जांच करनी होगी।

बहरहाल दोबारा संक्रमण के मामलों को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अत्यंत संवेदनशील बताया है। दोबारा संक्रमण फैलना भारत के लिए चिंताजनक इसलिए भी है, क्योंकि सात महीने लंबे महामारी काल में हम अब तक 4.8 करोड़ यानी करीब साढ़े चार फीसद आबादी का ही टेस्ट करा पाए हैं। महामारी से दुनिया में मारे जा चुके आठ लाख लोगों के मुकाबले हमारी मृत्यु दर वैश्विक औसत से कम (1.75 फीसद) है, पर दोबारा संक्रमण इसे कई गुना बढ़ा सकता है। भारत में विशाल आबादी व संकुचित बस्तियों के कारण लोगों से मास्क लगाने व दो गज की दूरी रखने पर अमल कराना मुश्किल हो रहा है, इसलिए स्वास्थ्य विशेषज्ञ महामारी के घटने का समय तय नहीं कर पा रहे।

इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के मुखिया डॉ. बलराम भार्गव का यह बयान कि भारत में गैर-जिम्मेदार लोग महामारी का प्रकोप बढ़ा रहे हैं, इसी बेचारगी का इजहार है। ऐसे में क्या हम मान लें कि अगले साल फरवरी में भारत में रोजाना करीब तीन लाख लोगों के संक्रमित होने की अमेरिकी संस्था एमआइटी की आशंका के फलीभूत होने के आसार हैं? एमआइटी ने उक्त आशंका भारत की आबादी, उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं, लोगों की आदतों और जुलाई में संक्रमण के स्वभाव के सम्मिलित विश्लेषण से लगाया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख भी महामारी पर काबू पाने में दो साल लगने का अनुमान जता रहे हैं। दोबारा छूत के मामले आने से अनिश्चितता और बढ़ गई। दोबारा संक्रमण का दौर चल निकला तो आइसोलेशन बेड, आइसीयू और वेंटिलेटर्स की भारी कमी पड़ सकती है। यह महामारी पर काबू पाने की समयावधि को बढ़ा भी सकता है।

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