अमरजीत कुमार। कोरोना महामारी के बाद देश संपूर्ण लॉकडाउन से अनलॉक-4 में प्रवेश कर चुका है। जहां एक ओर देश कोरोना महामारी जनित संक्रमण की चुनौतियों से गुजर रहा है, वहीं दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाना भी मुख्य ध्येय है। ऐसे में यह पक्ष महत्वपूर्ण है कि क्या देश वाकई कोरोना के उस दौर में प्रवेश कर चुका है, जब अन्य क्षेत्रों में भी आवश्यक रियायतें दी जा सकती हैं।

ऐसा नहीं है कि सरकार कोरोना के बढ़ते मामलों के प्रति सजगता नहीं दिखा रही है। इस पक्ष को समझने के लिए हमें हाल में किए गए सीरोलॉजिकल सर्वेक्षणों पर ध्यान देने की जरूरत है। पिछले दो महीनों के दौरान बंगलुरु, मुंबई, पुणो और अहमदाबाद सहित देश के विभिन्न शहरों में सीरो सर्वे किए गए हैं। दिल्ली के दूसरे सीरो सर्वे में कुल आबादी के 29 फीसद लोगों में कोविड का प्रतिरोध करने वाली एंटीबॉडीज पाई गई है, जबकि अहमदाबाद व पुणो में यह आंकड़ा क्रमश: 40 और 50 फीसद तक रहा है।

इस बीच कई कारणों से सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण रिपोर्ट को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति कायम है। वास्तव में इसके निहितार्थ क्या हैं? दरअसल कोरोना वायरस पर काफी शोध किया जा रहा है, ऐसे में सीरो सवे किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने में काफी मददगार है। विज्ञानियों ने चेतावनी दी है कि सीरो सर्वे जनित परिणामों के आधार पर आबादी के इस प्रतिशत को बीमारी के प्रति प्रतिरक्षित हो सकने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। वास्तविकता तो यह है कि सीरोलॉजिकल सर्वेक्षणों को मानव में निष्प्रभावी या प्रतिरक्षक एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए डिजाइन नहीं किया गया है, लेकिन यहां यह समझने की जरूरत है कि सीरोलॉजिकल सर्वेक्षणों से कोरोना के बिना लक्षण वाले मरीज की पहचान संभव हुई है। अब प्रतिदिन दस लाख से अधिक परीक्षण किए जा रहे हैं। यह परीक्षण अवसंरचना में व्यापक स्तर की प्रगति को दर्शाता है।

सीरोलॉजिकल सर्वेक्षण के परिणामों से इस सामान्य अवधारणा की पुष्टि होती है कि सार्स-कोव-2 संक्रमण बिना लक्षण वाले होते हैं, जबकि कुछ अनुमानों के अनुसार यह बात भी सामने आई है कि कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में 80 फीसद लोग बिना लक्षण वाले हो सकते हैं। गौरतलब है कि केंद्र सरकार इन पक्षों पर लगातार काम कर रही है। यही कारण है कि भारत में कोरोना महामारी से मरने वालों की दर अन्य विकसित देशों के मुकाबले काफी कम है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सीरोलॉजिकल परीक्षण वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी का पता लगाता है, और यह पता लगाने में काफी मददगार है कि किसी व्यक्ति को कोविड के साथ हाल ही में या अतीत में संक्रमण था। अभी सबसे भ्रम की स्थिति यह है कि क्या एंटीबॉडी की उपस्थिति का मतलब है कि एक व्यक्ति कोरोना महामारी से प्रतिरक्षित है? तो इसका जवाब है नहीं, क्योंकि वर्तमान में किसी भी अध्ययन ने यह मूल्यांकन नहीं किया है कि सार्स-कोव-2 के एंटीबॉडी की उपस्थिति मनुष्यों में इस वायरस द्वारा बाद के संक्रमण के लिए प्रतिरक्षा प्रदान करती है या नहीं। संक्रमण के माध्यम से एक रोगजनक के लिए एंटीबॉडी का विकास एक बहु-चरण प्रक्रिया है जो आमतौर पर एक-दो सप्ताह होती है, लेकिन एक पूर्ण प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित करने की प्रक्रिया लंबी हो सकती है। एंटीबॉडीज की उपस्थिति पर अधिकांश कोविड अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग संक्रमण से उबर चुके हैं, उनके पास वायरस के एंटीबॉडी हैं। हालांकि इनमें से ऐसे लोगों का प्रतिशत काफी कम है जिनके प्रतिरक्षक एंटीबॉडी उनके रक्त में वायरस को बेअसर करने में सक्षम होते हैं। ऐसे में यह कहना गलत है कि एंटीबॉडी पाए गए व्यक्ति को संक्रमण का खतरा नहीं है।

सीरोलॉजिकल सर्वेक्षणों में हर्ड इम्युनिटी यानी सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता की भारत के संदर्भ में विशेष चर्चा होती है। सामूहिक प्रतिरक्षा एक संक्रामक बीमारी से परोक्ष संरक्षण है, जो तब होता है जब कोई आबादी टीकाकरण के माध्यम से या तो प्रतिरक्षित होती है या पिछले संक्रमण के माध्यम से प्रतिरक्षा विकसित हो जाती है। जबकि वे लोग जो संक्रमित नहीं हैं, या जिनके संक्रमण में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया नहीं हुई है, तो उन्हें संरक्षित किया जाता है, क्योंकि उनके आस-पास के लोग जो प्रतिरक्षित हैं, उनके और संक्रमित व्यक्ति के बीच वे बफर के रूप में कार्य कर सकते हैं। कोविड के लिए सामूहिक प्रतिरक्षा स्थापित करने की सीमा अभी स्पष्ट नहीं है। अभी कई सर्वेक्षण किए जा रहे हैं, ताकि इन पक्षों को सही से समझा जा सके। महामारी पर कई शोध कार्य चल रहे हैं, जिस पर अभी भी कोई ठोस उपचार नहीं मिल पाया है, परंतु अभी तक के शोध और अध्ययन से कोरोना संक्रमितों के उपचार में कई प्रयोग लाभकारी साबित हुए हैं।

सीरो सर्वे के परिणाम, कोविड के प्रमुख नैदानिक, महामारी विज्ञान और वायरोलॉजिकल विशेषताओं के मजबूत अनुमानों को समझने में काफी मददगार साबित होते हैं। कोरोना महामारी में अभी तक के सर्वेक्षण के आधार पर संक्रमण और बीमारी-गंभीरता अनुपात, केस-फैटलिटी अनुपात को समझने में काफी मदद मिली है, वहीं कोरोना का विभिन्न आयु वर्ग पर संक्रमण के खतरों को देखते हुए अपेक्षित स्वास्थ्य दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। सीरोलॉजिकल परीक्षण बताते हैं कि संक्रमित लोगों की एक बड़ी आबादी, विशेषकर जिनमें लक्षण नहीं दिख रहे हैं, उनकी पहचान करना आवश्यक है। यही कारण है कि टेस्टिंग दर में वृद्धि की गई है, जबकि आइसीएमआर के नए दिशानिर्देशों के अनुसार ऑन डिमांड कोरोना टेस्टिंग का सुझाव दिया गया है। ऐसे में सीरो सर्वे के निहितार्थ को समझना आवश्यक है, क्योंकि सोशल मीडिया के जरिये फैलाई जा रही भ्रामक जानकारियां कहीं इस महामारी को रोकने के सरकार द्वारा किए जा रहे उपायों के लिए मुश्किल न पैदा कर दे।

देश अभी अनलॉक के चौथे चरण के तहत विभिन्न आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने की रणनीति पर काम कर रहा है। अब जिस चरण में हम प्रवेश कर चुके हैं, उसमें कोरोना महामारी से डरने से ज्यादा लड़ने की जरूरत है। सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों और दो गज की दूरी है बहुत जरूरी जैसे पक्षों को अमल में लाने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए लगातार नीतिगत फैसले ले रही है। ऐसे में इस संकट से निपटने के लिए अब हमें सजग और सकारात्मक रुख अपनाना चाहिए।

[शोधार्थी, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा, बिहार]