[ राहत आस्टिन ]: इस्लामाबाद में बनने वाले पहले हिंदू मंदिर का केवल निर्माण ही खटाई में नहीं पड़ गया है, बल्कि उसके बनने के आसार भी कम हो गए हैं। प्रधानमंत्री इमरान खान इस मंदिर का निर्माण कराकर दुनिया में पाकिस्तान की छवि चमकाना चाहते थे, लेकिन अब वह कट्टरपंथी संगठनों के सामने बेबस हैं। उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है जो मंदिर की नींव खोद गए और निर्माण के लिए आया सरिया उठा ले गए। उन पर भी कोई कार्रवाई होती नहीं दिखती जो खुलेआम धमकी दे रहे हैं कि अगर यह मंदिर बना तो वे उसे विस्फोट से उड़ा देंगे।

... और हिंदू डर के मारे मंदिर बनाने का इरादा छोड़ दें

ऐसे में इसकी आशंका बढ़ गई है कि बकरीद के मौके पर मंदिर की जमीन पर गायें काटी जा सकती हैं ताकि इस जगह को नापाक किया जा सके और हिंदू डर के मारे खुद ही मंदिर बनाने का इरादा छोड़ दें। इस्लामाबाद में करीब तीन हजार हिंदू हैं। वे यहां मंदिर इसलिए बनाना चाहते हैं ताकि पूजा पाठ करने के साथ अपने लोगों का अंतिम संस्कार कर सकें। अभी उन्हेंं मृतकों का अंतिम संस्कार करने के लिए सैकड़ों किमी दूर सिंध के इलाकों में जाना पड़ता है।

नक्शा पास न होने का तर्क देकर इस्लामाबाद में हिंदू मंदिर का निर्माण रोक दिया

हालांकि इस्लामाबाद में दो मंदिर और हैं, लेकिन उन पर कब्जा है और हिंदू वहां नहीं जा सकते। इस्लामाबाद में मंदिर के लिए जमीन नवाज शरीफ सरकार ने दी थी, लेकिन उनके सत्ता में रहते समय उसके निर्माण की सूरत नहीं बन सकी। इमरान के सत्ता में आने के बाद हिंदू संगठनों की पैरवी पर उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए दस करोड़ रुपये देने की घोषणा की। जब यह रकम मिलने में देरी होती गई तो हिंदुओं ने करीब 13 लाख रुपये चंदा जमाकर मंदिर की नींव बनवानी शुरू कर दी। इसकी खबर आम होते ही नेता, मुल्ला-मौलाना, मीडिया मंदिर निर्माण के खिलाफ खड़े हो गए। जब इस बहाने मंदिर का निर्माण रोक दिया गया कि अभी उसका नक्शा पास होना बाकी है तो एक टीवी चैनल ने दावा किया कि आखिरकार उसकी मेहनत रंग लाई। इसी के साथ कट्टरपंथी लोगों ने मंदिर बनने की सूरत में खतरनाक अंजाम भुगतने की चेतावनी देने वाले वीडियो जारी करने शुरू कर दिए।

मंदिर के निर्माण को लेकर पाकिस्तानी हिंदुओं के खिलाफ गहरी नफरत

इस्लामाबाद में बनने वाले मंदिर के खिलाफ बना माहौल पाकिस्तानी हिंदुओं के खिलाफ गहरी नफरत को ही नए सिरे से बयान करता है। यह नफरत इतनी गहरी है कि जो भी चंद लोग जिन्ना और संविधान का हवाला देकर मंदिर बनने देने की पैरवी कर रहे हैं उन्हेंं धमकियां दी जा रही हैं और यह नसीहत भी कि पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर बना मुल्क है। यहां किसी और की इबादतगाह बनाने की इजाजत देना इस्लाम के खिलाफ है। हालात इतने संगीन हैं कि जब पूर्व विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने यह कहा कि सभी मजहब बराबर हैं तो उन पर यह आरोप लगा कि वह ऐसा कहकर इस्लाम की बेअदबी कर रहे हैं। कुछ लोगों ने इस्लाम को नीचा दिखाने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ ईशनिंदा की शिकायत भी कर दी।

पाकिस्तान में ईशनिंदा का कानून अल्पसंख्यकों की जान-माल का दुश्मन बना हुआ है

पाकिस्तान में ईशनिंदा का कानून अल्पसंख्यकों की जान-माल का दुश्मन बना हुआ है। पाकिस्तान में कोई किसी भी अल्पसंख्यक पर यह आरोप बहुत आसानी से मढ़ सकता है कि वह अल्लाह या कुरान की शान में गुस्ताखी कर रहा था। इसके बाद उसका जीना मुहाल हो जाता है। ईशनिंदा के मुलजिम को जेल जाना पड़ता है। कई बार तो उसके घर-बार पर कब्जा कर लिया जाता है या फिर उसे मार ही दिया जाता है। ईसाई महिला आसिया बीबी को जेल से रिहाई और विदेश जाने की इजाजत इसलिए मिल पाई, क्योंकि पश्चिमी देशों का दबाव था।

हिंदुओं पर अत्याचार की सुनवाई नहीं होती 

हिंदुओं पर अत्याचार की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। कोई देश पाकिस्तान में कुचले जा रहे हिंदुओं के पक्ष में आवाज नहीं उठाता और अगर भारत में कोई आवाज उठती है तो उन पर अत्याचार और बढ़ जाते हैं। पाकिस्तानी हिंदुओं को इंडिया का एजेंट कहकर बेइज्जत किया जाता है और उनसे कश्मीर और मोदी की नीतियों को लेकर सवाल किए जाते हैं।

दलित-आदिवासी हैं और आर्थिक रूप से कमजोर हिंदू अत्याचार और अपमान सहने को मजबूर

चूंकि ज्यादातर हिंदू दलित-आदिवासी हैं और आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हैं इसलिए वे कहीं अधिक अत्याचार और अपमान सहने को मजबूर हैं। उनकी लड़कियों का अपहरण करके उनसे जबरन निकाह का सिलसिला हर दिन तेज हो रहा है। हर साल सैकड़ों हिंदू लड़कियों का जबरन निकाह कराया जाता है।

पुलिस और अदालतें इंसाफ दिलाने में नाकाम

शायद ही किसी मामले में हिंदू लड़की अपहरण और जबरिया निकाह के बाद अपने घर लौट सकी हो, क्योंकि पुलिस और अदालतें उन्हेंं इंसाफ दिलाने में नाकाम हैं। दरअसल उनकी इसमें दिलचस्पी ही नहीं कि जुल्म का शिकार हिंदुओं को इंसाफ मिले। पाकिस्तान इस्लाम की दुहाई देकर अल्पसंख्यकों की फिक्र करने के खूब दावे करता है, लेकिन हकीकत इसके उलट है। यहां के अल्पसंख्यकों के सामने तीन ही रास्ते हैं-या तो इस्लाम कबूल कर लें या देश छोड़ दें या फिर मारे जाएं। गरीब हिंदुओं और ईसाइयों के पास देश छोड़ने का कोई जरिया नहीं इसलिए वे या तो जबरन मुसलमान बनाए जा रहे या फिर मारे जा रहे हैं।

कट्टरपंथी पाकिस्तानियों की हिंदुओं के प्रति नफरत, सरकार के पैसे से मंदिर बनना ठीक नहीं

कट्टरपंथी पाकिस्तानियों की नजर में वैसे तो सभी गैर मुस्लिम काफिर हैं, लेकिन हिंदुओं के प्रति उनकी नफरत कुछ ज्यादा ही है। पाकिस्तान में जो लोग इस्लामाबाद में बनने वाले मंदिर का खुलकर विरोध नहीं कर रहे वे बड़ी चालाकी से यह दलील दे रहे कि सरकार के पैसे से मंदिर बनना ठीक नहीं।

पाकिस्तान के मंदिरों की जमीनों और इमारतों की कीमत कम से कम सात सौ अरब रुपये है

उनके पास इसका जवाब नहीं कि आखिर इमरान सरकार ने करतारपुर पर सरकारी पैसे क्यों खर्च किए? जो यह दलील दे रहे कि किसी इस्लामी मुल्क की सरकार का गैर इस्लामी इबादतगाह पर पैसा खर्च करना हराम है उनके पास इसका जवाब नहीं कि आखिर पाकिस्तानी मंदिरों की जमीनों से होने वाली आय हलाल कैसे हो गई? एक अनुमान के तहत पाकिस्तान के मंदिरों की जिन जमीनों और इमारतों पर सरकार का कब्जा है उनकी कीमत कम से कम सात सौ अरब रुपये है।

( लेखक पाकिस्तान के मानवाधिकार एक्टिविस्ट हैं और फिलहाल दक्षिण कोरिया में रह रहे हैं )