[ संजय गुप्त ]: कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेताओं की ओर से नेतृत्व की अक्षमताओं को लेकर सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखे हुए छह माह से अधिक हो गया है, लेकिन अभी तक इस चिट्ठी में उठाए गए सवालों का समाधान होने की सूरत नहीं दिख रही है। कांग्रेस नेतृत्व यानी गांधी परिवार 23 नेताओं के समूह की चिट्ठी में उठाए गए सवालों से बचने की जितनी कोशिश कर रहा है, पार्टी में कलह उतनी ही तेज हो रही है। पिछले दिनों इस समूह के प्रमुख नेताओं ने जम्मू में गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में एकत्र होकर कांग्रेस के कमजोर होते जाने की बात फिर कही। इसके पहले आनंद शर्मा और कपिल सिब्बल ने राहुल गांधी को यह नसीहत भी दी कि मतदाताओं की समझदारी पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए। यह नसीहत इसलिए दी गई, क्योंकि केरल में राहुल ने कहा था कि उत्तर भारत के लोग सतही मुद्दों पर राजनीति करते हैं। इसके बाद गुलाम नबी आजाद ने प्रधानमंत्री मोदी की इसके लिए तारीफ की कि वह अपनी जड़ों से जुडे़ हुए हैं। यह कथन कांग्रेस को रास नहीं आया।

समूह 23 के नेता राहुल के तौर-तरीकों का करते हैं नापसंद, अंतरिम अध्यक्ष की व्यवस्था से खुश नहीं

इन 23 नेताओं के अलावा भी कांग्रेस में कई ऐसे नेता हैं, जो यह महसूस कर रहे हैं कि पार्टी नेतृत्व यथास्थिति का शिकार है। नि:संदेह कोई भी नेता खुले तौर पर सोनिया अथवा राहुल का विरोध नहीं कर रहा है, लेकिन वे अंतरिम अध्यक्ष की व्यवस्था से खुश भी नहीं। वे राहुल के तौर-तरीकों को भी नापसंद कर रहे हैं, जबकि एक समय यही सब उन्हें भविष्य का नेता मानते थे। अब वे उनकी कार्यशैली से निराश हैं।

'चौकीदार चोर है' के नारे पर राहुल को मुंह की खानी पड़ी

2019 के चुनाव में राहुल ने राफेल सौदे को तूल दिया। वह राफेल विमानों की खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप के साथ चौकीदार चोर है का नारा भी उछालते रहे। उन्हें मुंह की खानी पड़ी। वह खुद अमेठी से हारे और कांग्रेस फिर से इतनी सीटें नहीं जीत सकी कि लोकसभा में विपक्ष का दर्जा हासिल कर सके। कांग्रेस को बालाकोट एयर स्ट्राइक पर बेजा सवाल उठाने के भी दुष्परिणाम भोगने पड़े। इधर राहुल हम दो हमारे दो का जुमला उछालकर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह केवल मुकेश अंबानी और गौतम अदाणी के लिए काम कर रहे हैं। उनकी जुमलेबाजी खुद उन पर भारी पड़ रही है, लेकिन वह सबक सीखने के बजाय नए-नए जुमले गढ़ रहे हैं। चूंकि वह लगभग हर दिन मोदी सरकार के खिलाफ तंज भरे ट्वीट करते हैं, इसलिए यह कहा जाने लगा है कि उनकी राजनीति ट्विटर तक सीमित हो गई है। समस्या केवल यह नहीं कि वह किसी ट्रोल की तरह व्यवहार कर रहे, बल्कि यह भी है कि उनका विमर्श सतही और खोखला होता जा रहा है। वास्तव में सतही विमर्श से पूरी पार्टी ग्रस्त हो गई है।

संसद में कांग्रेसी नेता सार्थक चर्चा में हिस्सा लेने के बजाय जुमलेबाजी अधिक करते हैं

संसद में भी कांग्रेसी नेता किसी सार्थक चर्चा में हिस्सा लेने के बजाय जुमलेबाजी ही अधिक करते हैं। कृषि कानूनों के विरोध में खड़े राहुल तब मौन रहे, जब इन कानूनों पर संसद में चर्चा हो रही थी, लेकिन बजट पर चर्चा के दौरान उन्होंने इन कानूनों के खिलाफ हम दो हमारे दो का जुमला उछाला। जैसे कृषि कानून बनाने का वादा कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में किया था, वैसे ही कानून बन जाने पर वह उनके खिलाफ खड़ी होकर किसानों को बरगला रही है। इससे कुल मिलाकर किसान और कृषि का ही अहित हो रहा है। 

राहुल घोर मोदी विरोध से ग्रस्त, राहुल का आपातकाल पर बयान हास्यास्पद

राहुल किस कदर घोर मोदी विरोध से ग्रस्त हैं, इसका पता उनकी ओर से मोदी को भयंकर शत्रु करार देने से चलता है। राजनीति में ऐसी भाषा के लिए कोई जगह नहीं, लेकिन राहुल इसी तरह की शब्दावली के आदी बनते जा रहे हैं। मोदी सरकार पर उनका ताजा आरोप है कि उसकी मदद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सभी संस्थाओं पर कब्जा करता जा रहा है। यह आरोप उन्होंने तब लगाया, जब वह आपातकाल को एक भूल बता रहे थे। उन्होंने यह सफाई दी कि आपातकाल में लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने का काम नहीं किया गया था। यह हास्यास्पद है, क्योंकि उस दौरान सर्वोच्च न्यायालय तक को दबाव में ले लिया गया था।

कांग्रेस गांधी परिवार की निजी जागीर, पार्टी रसातल में जा रही, गुजरात निकाय चुनाव में सूपड़ा साफ

लगता है गांधी परिवार ने यह ठान लिया है कि वह कांग्रेस को निजी जागीर की तरह ही चलाएंगे। कुछ चाटुकार नेता यह माहौल भी बनाने में जुटे हैं कि गांधी परिवार ही कांग्रेस को सही नेतृत्व दे सकता है। इन नेताओं की समझ से गांधी परिवार को धुरी बनाकर कांग्रेस को एकजुट रखा जा सकता है, लेकिन वे यह नहीं देख पा रहे कि पार्टी रसातल में जा रही है। कांग्रेस की कमजोरी का ताजा प्रमाण गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में उसका लगभग सफाया हो जाना है। वहां आम आदमी पार्टी कांग्रेस का स्थान लेती दिखी।

कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के खिलाफ तीखी टिप्पणियां करने से बच रहे हैं गांधी परिवार से जुड़े नेता

विद्रोह की मुद्रा में खड़े कांग्रेस के शीर्षक्रम के नेता इससे भली-भांति परिचित हैं कि असंतोष के चलते जो भी लोग पार्टी से अलग हुए वे या तो क्षेत्रीय नेता के तौर पर अपनी राजनीतिक पहचान बना सके या फिर कांग्रेस से किसी न किसी रूप में जुड़ने को विवश हुए। ममता बनर्जी और शरद पवार इसके उदाहरण हैं। ऐसे नेता राष्ट्रीय राजनीति में कुछ खास नहीं कर पाए। शायद यही कारण है कि जी-23 समूह के नेता गांधी परिवार को परोक्ष रूप से तो आड़े हाथ ले रहे हैं, लेकिन पार्टी से अलग होकर अपना दल बनाने के संकेत नहीं दे रहे हैं। गांधी परिवार और उसकी चाटुकारिता कर रहे नेता इससे परिचित हैं और इसीलिए वे असंतुष्ट नेताओं के खिलाफ तीखी टिप्पणियां करने से बच रहे हैं।

कांग्रेस लगातार हाशिये पर जा रही, कांग्रेस विधानसभा चुनावों में सांप्रदायिक तत्वों के साथ

आगे जो भी हो, यह साफ है कि कांग्रेस लगातार हाशिये पर जा रही है। इस समय बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। कांग्रेस इनमें से कहीं पर भी सत्ता में नहीं है। उसने बंगाल में चुनाव जीतने के लिए कट्टरपंथी मौलाना अब्बास सिद्दीकी से गठबंधन किया है तो असम में बदरुद्दीन अजमल से। यह घोर विडंबना है कांग्रेस सरीखा राष्ट्रीय दल सांप्रदायिक तत्वों के साथ खड़ा हो रहा है।

राहुल गांधी की नफरत की राजनीति कांग्रेस को जनता से दूर करने का काम करेगी

राहुल गांधी के तेवरों से ऐसा लगता है कि वह हर चुनौती का सामना कर लेंगे, लेकिन उनकी समस्त राजनीति मोदी को नीचा दिखाने पर केंद्रित है। उनकी राजनीति में गंभीर विमर्श के बजाय नफरत और आक्रोश ही दिखता है। वह यह समझने को तैयार नहीं कि नफरत की यह राजनीति कांग्रेस को जनता से और अधिक दूर करने का ही काम करेगी।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]