आतिशी। पंजाब में धान की फसल के लिए वर्षों से पानी के अंधाधुंध दोहन के चलते रसातल में जा पहुंचे भूजल की गंभीर समस्या से निपटने के लिए भगवंत मान सरकार ने जो पहल की है, वह उम्मीद की नई रोशनी लेकर आई है। पंजाब की नई सरकार ने हाल में धान की बुआई के लिए 1,500 रुपये प्रति हेक्टेयर प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की है। इसमें डीएसआर (डायरेक्ट सीडिंग राइस) विधि यानी सीधी बुआई के तरीके को अमल में लाया जाएगा। डीएसआर विधि के तहत धान के बीजों को एक मशीन की मदद से नम मिट्टी वाले खेतों में सीधे बोया जाता है। पारंपरिक विधि में धान के पौधों को पहले नर्सरी में उगाया जाता है, फिर उन्हें पानी से भरे खेत में रोपा जाता है। उल्लेखनीय है कि धान की पारंपरिक तरीके से खेती में पानी की अत्यधिक खपत होती है।

पंजाब को गेहूं और धान के उत्पादन में भारत का अन्न भंडार कहा जाता है। एक समय पंजाब जल संसाधन से संपन्न था और कृषि के मामले में एक आत्मनिर्भर राज्य था। पंजाब हरित क्रांति का एक प्रमुख गढ़ बना। इस क्रांति का लक्ष्य भारत को भूख से मुक्त करना था। पंजाब के किसानों ने खेती के नए तरीकों को अपनाने में बहुत लचीलापन दिखाया, लेकिन इसकी कीमत उनके पानी, उनकी मिट्टी और यहां तक कि उनकी सेहत को भी चुकानी पड़ी।

हरित क्रांति के बाद 1972 और 1985-86 के बीच भारत की कृषि विकास दर 2.3 प्रतिशत थी, जबकि पंजाब की दर 5.7 प्रतिशत थी। इसके बाद पंजाब में अगले दो दशकों में गिरावट देखी गई और 2005-06 तथा 2014-15 के बीच 1.61 प्रतिशत की गिरावट आई। पंजाब के कृषि संकट का कारण भूजल का ज्यादा दोहन और गलत फसल पद्धतियां अपनाया जाना है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया कि 1998 से 2018 तक राज्य के 22 में से 18 जिलों में हर साल भूजल स्तर में एक मीटर से अधिक की गिरावट आई। पंजाब में भूजल का स्तर इसलिए नीचे जाता गया, क्योंकि यहां धान की खेती पारंपरिक विधि से ही की जाती रही, जिसमें पानी की अधिक खपत होती है। धान की सीधी बुआई वाली डीएसआर तकनीक से 15 से 20 प्रतिशत पानी की बचत होती है। इसके अलावा भूजल स्तर में 10 प्रतिशत से अधिक का सुधार होता है। स्पष्ट है कि यह तकनीक जल स्तर में आती खतरनाक गिरावट को काफी हद तक रोक सकती है। धान की परंपरागत रोपाई विधि के तहत किसान नर्सरी में धान के बीजों से पौधों को उगाता है। बाद में इन पौधों को लगभग एक महीने बाद पानी वाले खेत में लगाता है। रोपाई के बाद पहले तीन-चार हफ्तों तक खेतों में चार-पांच सेमी पानी सुनिश्चित करने के लिए धान की फसल को लगभग दैनिक रूप से पानी देना पड़ता है।

जब धान की पौध का तना विकास के चरण में होता है, तब अगले चार-पांच सप्ताह तक आम तौर पर किसान हर दो-तीन दिनों में खेत की सिंचाई करते हैं। चूंकि धान की सीधी बुआई वाली डीएसआर तकनीक में पानी से भरे खेत की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है। इसके परिणामस्वरूप अगली फसल में उपज में वृद्धि होती है। चूंकि डीएसआर तकनीक में पानी और बिजली की भी बचत होती है, इसलिए वह किसानों के लिए कहीं किफायती है। इससे धान की रोपाई में आने वाला मजदूरी का खर्च भी बचता है।

धान की खेती में डीएसआर तकनीक अपनाने से लागत 2,000-2,500 रुपये प्रति एकड़ से अधिक नहीं आती। इसमें मशीन का किराया, कीटनाशक स्प्रे और खेत को फसल के लिए तैयार करना भी शामिल है। एक आंकड़े के अनुसार 2020 में इस पद्धति से धान की खेती करने वाले किसान प्रति एकड़ लगभग 4,000 से 5,000 रुपये बचाने में कामयाब रहे। इससे लगभग 500 से 600 करोड़ रुपये की बचत हुई। पंजाब सरकार का लक्ष्य अब इस बचत को तीन गुना करना है। इसके लिए मान सरकार ने 12 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को धान की सीधी बुआई यानी डीएसआर तकनीक के तहत लाने का लक्ष्य रखा है। यह पिछले साल डीएसआर के तहत क्षेत्र की तुलना में लगभग दोगुना होगा। इससे बहुत अधिक दीर्घकालिक लाभ होंगे।

पंजाब के 20 फीसद क्षेत्र में किसान पहले से ही धान की सीधी बुआई कर रहे हैं, लेकिन यह ध्यान रहे कि पंजाब के लिए डीएसआर तकनीक की सिफारिश 2010 में की गई थी। पता नहीं किन कारणों से पिछली सरकारों ने इसकी खूबियों से अवगत होने के बावजूद गत 12 वर्षों से इस तकनीक को बढ़ावा देने और किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया? इसका परिणाम यह हुआ कि भूजल का स्तर और गिरता चला गया।

कोविड महामारी ने डीएसआर को एक आशा की किरण के रूप में सामने लाने और पंजाब को अपने खोए हुए संसाधनों को पुन: प्राप्त करने का एक रास्ता दिखाया। डीएसआर तकनीक से होने वाले लाभ को देखते हुए ही पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने पिछली सरकारों की ऐतिहासिक गलती को सुधारने और धान की सीधी बुआई को प्रोत्साहित करने का फैसला किया है। पंजाब के किसानों ने राज्य को भारत का अन्न का कटोरा बनाने में बहुत योगदान दिया है। अब समय आ गया है कि कारगर साबित हो चुकी डीएसआर तकनीक को सभी किसानों की ओर से सहर्ष अपनाया जाए, ताकि भूजल संरक्षण के संकल्प को हासिल किया जा सके। इसके लिए उद्यम की भावना का प्रदर्शन करना होगा। इससे ही राज्य फिर से हंसता-खेलता पंजाब बनेगा। वास्तव में आवश्यकता तो इस बात की है कि धान की खेती के मामले में डीएसआर तकनीक को अन्यत्र भी अपनाया जाए, क्योंकि देश के कई इलाके ऐसे हैं, जहां भूजल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है।

(लेखिका आम आदमी पार्टी की विधायक हैं)