[ सूर्यकुमार पांडेय ]: स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 के परिणाम घोषित हो गए हैं। पिछले बरसों की तरह ही इस बार जिसे पहले स्थान पर होना चाहिए वह पहले स्थान पर है और एक हमारा शहर है कि शुरू से ही उसी अंतिम सोपान पर अटका हुआ है। यह सुनकर मैंने वक्तव्य जारी करते हुए कहा, ‘एक ही स्थान पर अडिग बने रहने के लिए मेरे शहर को भी सम्मानित किया जाना चाहिए। हमारे निवासी यथास्थितिवादी हैं। हमें कोई भी अपनी जगह से टस से मस तक नहीं कर सकता। गंदगी को प्रश्रय देने के मोर्चे पर हमारा शहर उस पड़ोसी मुल्क जैसा है, जो भले ही समूल बर्बाद हो जाए, पर सतत आतंकवाद का कूड़ा एकत्र करता रहता है। वह उसे रात के अंधेरे का फायदा उठाकर जब-तब हमारी सीमा में डाल दिया करता है और जब ऐसा करते हुए पकड़ा जाता है तो नए-नए बहाने बनाता है।’

कूड़ा-कचरा पड़ोसी के दरवाजे पर फेंकने से प्रतियोगिता में पिछड़ गया शहर

इस तरह की तुलना को सुनकर मेरे शहर की गंदगी साक्षात मेरे सामने आ खड़ी हुई। उसने अपना प्रतिरोध प्रकट करते हुए कहा, मेरी वजह से तुम्हारा शहर प्रतियोगिता में पिछड़ गया है तो तुम भी इसके लिए उतने ही जिम्मेदार हो। तुम भी तो दिन-दहाड़े अपने घर का कूड़ा-कचरा पड़ोसी के दरवाजे पर उड़ेल फेंकते हो और जब वह तुम्हें रोकता-टोकता है, तब चीखने-चिल्लाने लगते हो या फिर और कहीं कचरा डालने का जुगाड़ करने में लग जाते हो।

गंदगी से बीमारी फैलती हैं, फिर भी गंदगी फैलाने से बाज नहीं आते

तुम्हें पता है कि गंदगी से बीमारी फैलती हैं, फिर भी मुझे यहां-वहां फैलाने से बाज नहीं आते। कभी चुपके से फैलाते हो और कभी सबके सामने। कभी पान की पीक से फैलाते हो और कभी पॉलिथीन से..। मैंने उसे तुरंत टोका और जवाब दिया, ‘अब बहुत हो चुका। ‘अंग्र्रेजों भारत छोड़ो’ की तर्ज पर ‘गंदगी भारत छोड़ो’ का नया नारा दिया जा चुका है। तुम्हें हमारा देश छोड़कर जाना ही होगा। यह सुनकर गंदगी हंसने लग गई। बोली, ‘मैंने भी वह नारा सुना था। ऐसा नारा सुनकर पहले तो मैं एकबारगी परेशान ही हो गई थी। फिर सोचने लगी कि मुझे क्या करना चाहिए? धरना-प्रदर्शन करूं या किसी अदालत में याचिका डालूं, लेकिन सरकार के दृढ़संकल्प को देखते हुए मेरी हिम्मत नहीं पड़ी।

मोदी सरकार जो भी मन में ठान लेती है, उसे पूरा किए बिना नहीं रुकती

यह ऐसी सरकार है कि जो भी मन में ठान लेती है, उसे पूरा किए बिना नहीं रुकती। इसने ऐसे-ऐसे ऐतिहासिक फैसले लिए हैं और उन्हें दृढ़तापूर्वक लागू भी किया, जिसे देखकर मेरी हिम्मत जवाब देने लग गई। तब भी मैंने अपनी संपूर्ण कचरा-शक्ति को अपने भीतर बिखराते हुए यह संकल्प लिया कि मैं इतनी सरलता से इस देश को नहीं छोड़ने वाली हूं। मैं कोई बाहर से नहीं आई हूं। यहीं पर जन्मी, पली और बढ़ी हूं। मैं इस देश के उन नागरिकों की भी एहसानमंद हूं, जिन्होंने मुझे अपने गले से लगाया और अभी भी अपनी आदत बदलने से इन्कार कर रहे हैं।’

कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या, बेरोजगारी के चलते गंदगी को देश छोड़ने के लिए कहा जा रहा

मैंने पाया कि गंदगी बेहद खिन्न थी। उसने अपनी सफाई में आगे कहा, ‘देश में कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। आर्थिक संकट, महंगाई, बेरोजगारी और पड़ोसी देशों की कुटिल कुचालें नाक में दम किए हुए है, ऐसे में मुझे भारत छोड़ने के लिए कहा जा रहा है। कहीं सरकार मूल मुद्दों से ध्यान भटकने के लिए ही तो मेरा नाम नहीं उछाल रही है! मैंने इस देश को छोड़ भी दिया तो मुझे भला और किस देश में शरण मिल सकती है, यह बात भी सरकार बताए। पड़ोसी देश तो पहले से ही मेरे से पटे पड़े हैं। कुछ तो अपनी दिमागी गंदगी को लेकर भी गर्व का अनुभव करते देखे जा सकते हैं। फिर वहां जाकर तो मेरी पहचान ही समाप्त हो जाएगी।’ गंदगी की यह भी जिज्ञासा थी कि जैसे कूड़े- कचरे के पहाड़ खड़ा करने की सुविधा उसे इस देश में प्राप्त है, वैसी और कहीं भी मिल सकती है क्या?

गंदगी से पिंड छुड़ाना नामुमकिन

गंदगी जिस तरह जिद पर अड़ी थी उसे देखकर लगा कि उसे मात्र झाड़ू और ठेला गाड़ियों से हटा पाना नामुमकिन है और फिर हमारे शहर में ही नहीं, बल्कि हमारे जीवन के हर क्षेत्र में अलग-अलग रूप में घुसी बैठी है। हमें हर तरह की गंदगी से भारत का पिंड छुड़ाने की स्थायी व्यवस्था करनी होगी।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]