[ गजेंद्र सिंह शेखावत ]: हमारे देश में यह त्रासदी रही कि जिस स्वच्छता को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वतंत्रता से भी ज्यादा आवश्यक मानते थे उस विषय को आजादी के बाद यथोचित प्राथमिकता नहीं दी गई। 1947 से लेकर 2014 तक हम केवल 39 प्रतिशत घरों तक ही शौचालय की सुविधा पहुंचा पाए थे। इसके अभाव में न केवल हमारी माताओं और बहनों को काफी परेशानी हो रही थी, बल्कि हमारे बच्चे भी इस अभाव के दुष्प्रभाव से पीड़ित थे। हमारी माताएं और बहनें तो आजाद देश में भी उजाले की कैदी की तरह थीं। उन्हें अंधेरे का इंतजार करना होता था ताकि वे शौच के लिए जा सकें। यह मानवीय गरिमा के खिलाफ तो था ही, महिलाओं के स्वाभिमान पर सीधा आघात भी था। इसे बदलने की नितांत आवश्यकता थी।

गांव की स्वच्छता के बारे में जागरूक रहना चाहिए: गांधी जी

गांधी जी ने युवावस्था में ही भारतीयों में स्वच्छता के प्रति उदासीनता को महसूस कर लिया था। उन्होंने किसी भी सभ्य और विकसित मानव समाज के लिए स्वच्छता के उच्च मानदंड की आवश्यकता को समझा। गांधी जी कहते थे कि कार्यकर्ता को गांव की स्वच्छता और सफाई के बारे में जागरूक रहना चाहिए और गांव में फैलने वाली बीमारियों को रोकने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने चाहिए।

स्वच्छ भारत मिशन

महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित हमारे प्रधानमंत्री जी ने देश की कमान संभालते ही वर्ष 2014 में लाल किले की प्राचीर से देशवासियों से यह आह्वान किया कि हम बापू के सपनों का स्वच्छ भारत निर्मित करें। उन्होंने यह संकल्प लिया कि अगले पांच वर्षों में लोक सहयोग से हम स्वच्छ भारत का निर्माण करेंगे और गांधी जी की 150वीं जयंती पर यह कृतज्ञ राष्ट्र उनके कदमों में एक स्वच्छ भारत समर्पित करेगा। उस वक्त किसने यह यकीन किया होगा कि पांच वर्षों में 60 करोड़ लोगों का व्यवहार परिवर्तन संभव हो जाएगा और भारत सदियों से खुले में शौच की प्रथा से मुक्त हो जाएगा? उनके संकल्प की आज सिद्धि हुई है। उन्होंने न केवल जन-मानस को स्वच्छ भारत के लिए प्रेरित किया, अपितु समाज के सभी वर्गों को अपने स्वच्छता के प्रति समर्पण से निरंतर अनुप्राणित किया। उन्होंने स्वच्छता के लिए अभूतपूर्व धनराशि भी उपलब्ध कराई ताकि स्वच्छ भारत के क्रियान्वयन में धन की कमी बाधा न बने।

स्वच्छ भारत अभियान बना जन-आंदोलन

तमाम अवसरों पर तो वह स्वयं स्वच्छता की गतिविधियों का नेतृत्व करते देखे गए। देखते ही देखते बीते पांच वर्षो में स्वच्छ भारत अभियान ने एक जन-आंदोलन का स्वरूप लिया और संभवत: यह दुनिया के सबसे बड़े व्यवहार परिवर्तन कार्यक्रम के रूप में स्थापित हुआ। यह इस जनांदोलन का ही परिणाम रहा कि जहां 2014 में मात्र 39 प्रतिशत घरों के पास शौचालय की सुविधा उपलब्ध थी वहीं आज वह बढ़कर 99 प्रतिशत हो गई है। स्वच्छ भारत अभियान के प्रारंभ के बाद से देश में 10 करोड़ से ज्यादा शौचालयों का निर्माण हुआ है। देश के सारे जिले और सारे गांव खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं। आज जो आसान प्रतीत हो रहा है वह हमारे लाखों स्वच्छाग्रहियों, सरपंचों, स्वयं सहायता समूह की महिलाओं, बच्चों, अभिभावकों और जन-सामान्य के असामान्य परिश्रम का प्रतिफल है। छह लाख से ज्यादा गांवों को स्वच्छता के लिए प्रेरित करना बहुत ही कठिन कार्य था। हमने सामुदायिक उत्प्रेरण की तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए इन गांवों को खुले में शौच से मुक्त बनाने की तकनीकों का सफलतापूर्वक उपयोग किया और यह सुनिश्चित किया कि लोग अपनी जिम्मेदारियों को समझें और अपने गांवों को स्वच्छ बनाने में अपनी भूमिका अदा करें।

स्वच्छ भारत सामाजिक क्रांति का कार्यक्रम बना

स्वच्छ भारत वस्तुत: एक बहुत बड़ा सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक क्रांति का कार्यक्रम बना है। स्वच्छ भारत ने समाज को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। सभी वर्गों और सभी धर्मों के लोगों ने एक साथ आकर स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाया है। स्वच्छ भारत अभियान के दौरान सभी जातियों के लोगों ने आपसी भेद-भाव को भूलकर अपने ग्राम को खुले में शौच से मुक्त बनाया। इस कार्यक्रम में अनेक ऐसे पड़ाव आए जब समस्त ग्रामवासियों ने एक साथ बैठकर आपसी बैर-भाव को भूलकर अपने गांव को खुले में शौच से मुक्त बनाने हेतु उल्लेखनीय कार्य किया।

खुले में शौच से मुक्ति

इस कार्यक्रम ने महिलाओं को और अधिक मुखर बनाया। आपसी सहयोग से उन्होंने न सिर्फ खुले में शौच की अपनी समस्या का निदान किया, बल्कि अनेक कुरीतियों का भी निदान किया। स्वच्छता कार्यक्रम ने गरीब वर्गों के लिए रोजगार के अवसर भी सृजित किए और कई राज्यों में तो महिलाओं ने रानी मिस्त्री बनकर अपने लिए नए रोजगार खोजे। एक अनुमान है कि 10 करोड़ शौचालयों के निर्माण में लगभग 83 करोड़ से अधिक मानव दिवस रोजगार उत्पन्न हुए होंगे। इस स्वच्छता कार्यक्रम ने महिलाओं के स्वयं सहायता समूह को भी बढ़ावा दिया।

46 फीसदी गांव खुले में शौच से मुक्त

खुले में शौच वाले गांवों में डायरिया के मामले ओडीएफ यानी खुले में शौच से मुक्त गांवों की तुलना में 46 प्रतिशत अधिक पाए गए। यूनिसेफ का अनुमान है कि मुख्यत: स्वच्छता की कमी के कारण भारत के पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में से लगभग 38 प्रतिशत बच्चे शारीरिक और संज्ञानात्मक रूप से कळ्पोषित हैं। हमारे भविष्य के कार्य बल का इतना बड़ा हिस्सा अपनी पूर्ण उत्पादक क्षमता तक नहीं पहुंच पा रहा था। अध्ययन से यह परिलक्षित होता है कि स्वच्छ भारत अभियान के क्रियान्वयन के बाद इस दिशा में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।

सभी लोग स्वच्छता की सुविधाओं से युक्त हों

मेरा मानना है कि हमने काफी सफलता हासिल की है, परंतु अभी बहुत कार्य किया जाना बाकी भी है। हमें देश के हर घर तक पहुंचना है और यह सुनिश्चित करना है कि सभी लोग स्वच्छता की सुविधाओं से युक्त हों और स्वच्छ व्यवहारों को सदैव अपनाते रहें। आने वाले दिनों में स्वच्छता एवं स्वच्छता संबंधी व्यवहार के स्थायित्व के लिए बड़े पैमाने पर कार्य किए जाएंगे। अगले एक वर्ष में हम सभी ग्राम प्रधान स्वच्छाग्रही और हितग्राहियों की क्षमता वर्धन का कार्य करेंगे ताकि वे स्वच्छता सेवाओं के स्थायित्व को सुनिश्चित कर सकें।

गांवों में कूड़े-कचरे के निपटान की व्यवस्था

इसी सिलसिले में ओडीएफ प्लस के कार्यक्रम चलाए जाएंगे ताकि गांवों में कूड़े-कचरे एवं ग्रे वाटर के समुचित निपटान की व्यवस्था हो सके। इसी क्रम में प्लास्टिक कचरे के निपटान की भी व्यवस्था की जाएगी। वास्तव में हम सबको मिलकर स्वच्छता के कई नए आयाम प्राप्त करने हैं। जन सहयोग और जन सहभागिता हमारी वह पूंजी है जो इन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन का माध्यम बनेगी। हमें भरोसा है कि देश वास्तविक रूप में गांधी जी के सपनों का स्वच्छ भारत बन कर रहेगा।

(लेखक केंद्रीय जलशक्ति मंत्री हैैं)