[डॉ. सुधीर सिंह]। लद्दाख में चीन के साथ तनातनी के बीच क्वॉड समूह को लेकर चर्चा तेज हो गई है। यह एक ऐसे नए प्रभावी अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में उभर रहा है, जिसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। इस समूह की स्थापना का विचार सबसे पहले हाल में पीएम पद छोड़ने की घोषणा करने वाले जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबी ने 2007 में रखा था। 2011 में इसकी पहली औपचारिक शुरुआत हुई। मूलत: इसके तीन सदस्य थे-अमेरिका, जापान और भारत। इसे प्रजातांत्रिक देशों के समूह के रूप में भी रेखांकित किया गया, क्योंकि इसमें शामिल होने वाले सभी देश प्रजातांत्रिक हैं। 2011 के बाद लंबे समय तक इस समूह की गतिविधियां सीमित रहीं।

इस बीच ऑस्ट्रेलिया भी इस समूह में शामिल हो गया। इस समूह की स्थापना मुख्यत: एशिया प्रशांत क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानूनों के पालन पर जोर देने के लिए की गई है। हाल के समय में इस क्षेत्र में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिनमें अंतरराष्ट्रीय कानूनों को चुनौती दी गई। यह काम चीन द्वारा ही किया गया। चाहे वह दक्षिण चीन सागर का मामला हो या पूर्वी चीन सागर का या फिर मेकांग नदी जल साझेदारी का, चीन ने अंतरराष्ट्रीय मर्यादाओं की अवमानना ही की है।

क्वॉड समूह चीन के खिलाफ

शीत युद्ध के पश्चात और खासकर 9/11 की घटना के बाद अंतरराष्ट्रीय पटल पर एशिया प्रशांत क्षेत्र की महत्ता काफी बढ़ी है। 21वीं सदी को एशिया की सदी कहा जा रहा है, लेकिन अपनी आर्थिक ताकत के नशे में चूर चीन इसे अपनी सदी बनाने पर आमादा है। वह इस सदी को न केवल अपनी सदी बनाने पर आमादा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका के एक मात्र महाशक्ति के दर्जे को भी छीनना चाहता है। चीन की यह चाहत 2013 से कुछ ज्यादा ही बढ़ी है, जबसे चिनफिंग चीन के राष्ट्रपति पद पर काबिज हुए हैं। इसके बाद से चीन की नीति पड़ोसियों के साथ-साथ अन्य देशों के प्रति भी आक्रामक हो गई। चीन ऐसा मानता है कि क्वॉड समूह उसके खिलाफ बना है। 

मोदी सरकार आते ही क्वॉड को महत्ता मिलनी शुरू हुई

चूंकि चीन इसे एक मुद्दा बनाता रहा, इसलिए भारत इस समूह में अपनी भागीदारी के प्रति उतना संजीदा नहीं दिखा, जितना उसे दिखना चाहिए था। 2014 में नरेंद्र मोदी सत्ता में आए और उन्होंने भारतीय विदेश नीति में आमूल-चूल परिवर्तन किया। इसी के साथ क्वॉड को महत्ता मिलनी शुरू हुई। अक्टूबर 2014 में प्रधनमंत्री मोदी जापान के दौरे पर गए। वहां उन्होंने परोक्ष रूप से चीन पर प्रहार करते हुए कहा कि 19वीं सदी का विस्तारवाद आज चलने वाला नहीं है। हालांकि पिछले छह वर्षों में मोदी ने चीन से संबंध सुधारने के लिए तमाम पहल की, लेकिन लद्दाख में चीनी सेना की आक्रामकता ने यही दिखाया कि शी चिनफिंग अपने रवैये को बदलने के लिए तैयार नहीं। उन्हें मोदी से पहली चुनौती 2017 में डोकलाम में मिली, जब भारतीय सेना ने चीनी सेना की राह रोक ली। डोकलाम में भारतीय और चीनी सेना का 72 दिनों तक आमना-सामना रहा। अंत में संवाद के माध्यम से इस तनाव को कम किया गया। इसके बाद अप्रैल 2018 में प्रधानमंत्री मोदी चीनी शहर वुहान गए। इसके बाद चिनफिंग अक्टूबर 2019 में महाबलीपुरम आए और इस तरह उनकी मोदी के साथ दूसरी शिखर बैठक हुई। इसके बाद ही चीन ने भारत के संदर्भ में अपनी नीति बदलनी शुरू कर दी।

क्वॉड को एक सशक्त संगठन के तौर पर उभारा जाए 

चीन के आक्रामक रवैये को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि क्वॉड को जल्द से जल्द एक सशक्त संगठन के तौर पर उभारा जाए। इस समूह ने साझा नौसैनिक अभ्यास करना शुरू कर दिया है। इसे मालाबार नौसैनिक अभ्यास के नाम से जाना जाता है। अभी तक इस अभ्यास में अमेरिका, जापान और भारत शामिल रहे हैं। अब ऑस्ट्रेलिया के भी इसमें शामिल होने के आसार बढ़ गए हैं, क्योंकि वह भी चीन से तंग है। 2019 के जी-20 के शिखर सम्मेलन में क्वॉड समूह के शीर्ष नेताओं ने अलग से बैठक की थी। 

चीन के बीच ऑस्ट्रेलिा का भी बढ़ा तनाव

इसके बाद पिछले महीने क्वॉड समूह की वर्चुअल बैठक हुई। इसके विदेश मंत्रियों की बैठक अक्टूबर में नई दिल्ली में प्रस्तावित है। ऑस्ट्रेलिया शुरू में क्वॉड समूह में सक्रिय भागीदारी के लिए पर्याप्त उत्सुक नहीं था, लेकिन उसकी ओर से कोरोना वायरस फैलने के लिए चीन को उत्तरदायी ठहराए जाने के बाद उसके और चीन के बीच तनाव बढ़ गया है। आज ऑस्ट्रेलिया न सिर्फ इस समूह में सक्रिय भागीदारी के लिए तैयार है, बल्कि चीन के खिलाफ खासा मुखर भी है। क्वॉड समूह में वियतनाम, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड को भी शामिल करने का प्रस्ताव है। क्वॉड समूह की बढ़ती सक्रियता से चीन परेशान है।

भारतीय सेना ने दिया मुंहतोड़ जवाब

हाल में चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने कहा था कि भारत को ऐसे समूहों का सदस्य नहीं बनना चाहिए, लेकिन भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि चीन लद्दाख सीमा पर आक्रामक है। हालांकि भारतीय सेना ने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया है और वह लद्दाख से अरुणाचल तक चीन से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है, लेकिन चीन सुधरने के लिए तैयार नहीं। चीन मुख्य तौर पर मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ता रहा है। चीन ने सोचा था कि मोदी सरकार पूर्ववर्ती सरकारों की तरह रक्षात्मक ही रहेगी, लेकिन मोदी सरकार ने चीन के खिलाफ आक्रामक नीति अपना ली। इससे चीन हतप्रभ है।

यह उल्लेखनीय है कि क्वॉड समूह के देशों ने लद्दाख संकट को लेकर भारत के पक्ष में अपनी आवाज बुलंद की है। इस समूह में भारत की बढ़ती भागीदारी एशिया के शक्ति संतुलन को चीन के विपरीत कर सकने में सक्षम है। चूंकि यह समूह अंतरराष्ट्रीय कानूनों की पालना के लिए कृतसंकल्प है, इसलिए भारत को इसमें अपनी सक्रियता बढ़ानी चाहिए। चीन को साफ संकेत देने की जरूरत है कि वह अपने दायरे में रहे। वास्तव में वह यही भाषा अच्छी तरह समझता है।

 

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं।