डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव। भारत के साथ लद्दाख सीमा पर तनातनी और अमेरिका के साथ चल रहे तनाव के बीच चीन ने अपना रक्षा बजट प्रस्तुत किया, जिसमें उसने भारी वृद्धि की है। चीन का यह रक्षा बजट भारत के रक्षा बजट से तीन गुना से भी ज्यादा है। चीन का घोषित रक्षा बजट गत वर्ष की तुलना में 6.8 प्रतिशत अधिक है। चीन का वर्ष 2020 का रक्षा बजट 196 अरब डॉलर का था।

चीन द्वारा उसके सैनिक खर्चो में यह बढ़ोतरी ऐसे समय की गई है जब एलएसी पर पिछले लगभग 10 माह से चल रहा तनाव सैनिकों की वापसी के समझौते के बाद कम होने लगा है। इतना अवश्य है कि चीन का अमेरिका के साथ सैन्य एवं राजनीतिक तनाव बढ़ता जा रहा है। शायद इसीलिए चीन के रक्षा बजट ने पहली बार 200 अरब डॉलर के आंकड़े को पार किया है। हालांकि यह लगातार ऐसा छठा वर्ष है जब चीन के रक्षा बजट में बढ़ोतरी का प्रतिशत इकाई अंक तक ही सीमित रहा। फिर भी रक्षा बजट के मामले में चीन अभी भी अमेरिका से काफी पीछे है, लेकिन इस घोषणा के बाद चीन अमेरिका के बाद रक्षा पर सबसे अधिक खर्च करने वाला दूसरा बड़ा देश बन गया है। अमेरिका का रक्षा बजट चीन के मुकाबले अभी भी लगभग चार गुना ज्यादा है। अमेरिका ने वर्ष 2021 के लिए अपना रक्षा बजट 740 अरब डॉलर घोषित किया है, जबकि भारत का रक्षा बजट इसी अवधि के लिए 65 अरब डॉलर है।

वर्ष 2019 में लगभग साढ़े सात प्रतिशत की बढ़ोतरी करके चीन ने रक्षा बजट 177 अरब डॉलर किया था। साल 2018 के लिए चीन का रक्षा बजट 175 अरब डॉलर और वर्ष 2017 में 150 अरब डॉलर का था। चीन ने वर्ष 2015 तक रक्षा के क्षेत्र में दोहरे अंकों की बढ़ोतरी की थी, लेकिन 2016 से वह अपने रक्षा बजट में हर साल दस प्रतिशत से कम की बढ़ोतरी कर रहा है। अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बावजूद 2016 में चीन ने अपने रक्षा बजट को 7.6 प्रतिशत की वृद्धि की। चीन के इस कदम को सेना के आधुनिकीकरण के प्रयासों से जोड़कर देखा जा रहा है। कोरोना काल की खराब आíथक स्थिति के बावजूद चीन ने रक्षा बजट में वृद्धि सैन्यीकरण के प्रयासों को तेजी देने के लिए ही की है। वह अपनी सामरिक क्षमता बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है।

चीन ने रक्षा बजट में वृद्धि को उचित ठहराते हुए यह भी कहा है कि अमेरिका एशिया-प्रशांत क्षेत्र का सैन्यीकरण कर रहा है। खासकर दक्षिण चीन सागर को लेकर खींचतान सबसे ज्यादा है। पिछले कुछ वर्षो के दौरान दोनों देशों के बीच यह तनाव का कारण बना हुआ है। दक्षिण चीन सागर के सैन्यीकरण के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराना भ्रम पैदा करने के लिए है। चीन के नीति नियंताओं के मुताबिक सेना को अत्याधुनिक बनाए जाने के फोकस को देखते हुए रक्षा बजट बढ़ाया गया है। चीन का ध्यान स्टील्थ लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत सेटेलाइट रोधी मिसाइल समेत नई सैन्य क्षमता विकसित करने पर है। चीन अपना दबदबा बढ़ाने के लिए नौसेना की पहुंच को समुद्री क्षेत्रों में फैला रहा है। चीन के एक प्रमुख नेता का कहना है कि चीन अपनी सेना के प्रशिक्षण और युद्ध की तैयारी के सभी पहलुओं पर ध्यान देगा और अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाएगा। साथ ही, चीन अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों को सुरक्षित करने पर ध्यान देगा।

चीन का कहना है कि देश की संप्रभुता एवं सुरक्षा के लिए चीन की सैन्य क्षमता का विस्तार जारी रहेगा। इस साल के रक्षा बजट का मुख्य जोर नौसेना के विकास पर रहेगा, क्योंकि दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर पर उसके दावे तथा समुद्री आवागमन के लिहाज से इस क्षेत्र में तनाव बढ़ा हुआ है। इसलिए दक्षिण चीन सागर में चीन अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। उसके रक्षा अधिकारियों के मुताबिक दक्षिण चीन सागर में अमेरिका की बराबरी में आने के लिए विमानवाहक पोत व पनडुब्बियों की जरूरत है।

चीन के एक संबंधित थिंक टैंक का कहना है, ‘हम देश की सुरक्षा एवं सशस्त्र बलों के सुधार के प्रयासों का समर्थन करेंगे। ठोस सुरक्षा और मजबूत सशस्त्र बल चीन की विश्वस्तरीय ताकत के अनुरूप है। हम सैन्य प्रशिक्षण और रक्षा तैयारी बढ़ाएंगे, ताकि हमारी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास के हित सुनिश्चित हो सकें। हम अपनी समुद्री और वायु सुरक्षा मजबूत करेंगे। देश के सैन्य खर्च में बढ़ोतरी का मकसद विदेशों में तेजी से विस्तारित होते देश के हितों की रक्षा करना है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में अस्थिर सुरक्षा स्थिति को देखते हुए उसके जवाब के तौर पर तैयार होना है।’

चीन ने पहले भी कहा था कि देश की सुरक्षा जरूरतों, आíथक विकास और राजकोषीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए रक्षा बजट बढ़ाने का फैसला किया गया है। पड़ोसी देशों के साथ जमीनी और समुद्री सीमा पर टकराव के बीच चीन सैन्य आधुनिकीकरण के संबंध में विश्व की बड़ी सैन्य ताकत अमेरिका से प्रतिस्पर्धा कर रहा है। इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि चीन सैन्य क्षेत्र में दुनिया के शक्तिशाली देशों की तुलना में सबसे ऊपर रहना चाहता है। ऐसी स्थिति में भारत को चीन की रक्षा खर्च में बढ़ोतरी से सजग रहने की आवश्यकता है।

[प्राध्यापक, सैन्य विज्ञान विषय]