[ संजय गुप्त ]: कोरोना महामारी के बीच चीन ने लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर भारतीय सैनिकों को जिस तरह छल से निशाना बनाया उससे यह साफ है कि उसके इरादे खतरनाक हैं। बीते कुछ दिनों में चीनी सेना ने लद्दाख के साथ सिक्किम में भी भारतीय सीमा में छेड़छाड़ की जो कोशिश की वह महज दुर्योग नहीं हो सकती। चीन भारतीय सीमाओं का अतिक्रमण करने की कोशिश जानबूझकर कर रहा है, यह इससे पता चलता है कि उसने एलएसी पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए बनी सहमति का उल्लंघन किया। यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि चीनी सेना ने योजनाबद्ध तरीके से भारतीय सैनिकों पर हमला किया।

चीन के हमलावर रुख के पीछे कोरोना फैलाने में संदिग्ध भूमिका से दुनिया का ध्यान हटाना चाहता है

चीन के हमलावर रुख के पीछे कई कारण नजर आते हैं। एक तो यह कि वह कोरोना वायरस फैलाने में अपनी संदिग्ध भूमिका से दुनिया का ध्यान हटाना चाहता है। इस वायरस के संक्रमण से न केवल लाखों लोग मारे गए हैं, बल्कि दुनिया आर्थिक मंदी की चपेट में भी आ गई है। कई विकसित देश उसे आड़े हाथ ले रहे हैं। चीन को लगता है कि भारत उसके खिलाफ विकसित देशों संग खड़ा हो रहा है। ध्यान रहे अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल में जहां चीन को कठघरे में खड़ा किया वहीं भारतीय प्रधानमंत्री को जी-7 सम्मेलन में निमंत्रित किया।

चीन सहमा है कि भारत अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान से मिलकर उसे घेर रहा है 

चीन से त्रस्त ऑस्ट्रेलिया भी भारत से अपनी निकटता बढ़ा रहा है। चीन की दादागीरी से परेशान जापान पहले से ही भारत के साथ है। चीन इससे भी सहमा है कि क्वॉड के जरिये भारत अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलकर उसकी घेरेबंदी कर रहा है, लेकिन गलवन में उसकी हरकत से तो भारत इस गठबंधन को मजबूती देना ही पसंद करेगा।

विकसित देशों की कंपनियां चीन से कारोबार समेट कर भारत को नया ठिकाना बना सकती हैं

अब यह किसी से छिपा नहीं कि विकसित देशों की कंपनियां चीन से अपना कारोबार समेट रही हैं और इन कंपनियों के लिए भारत नया ठिकाना बन सकता है। जाहिर है चीन को यह रास नहीं आ रहा है। वह अपनी आदत के मुताबिक विवादों को बातचीत से सुलझाने के बजाय आक्रामकता दिखा रहा है, लेकिन आज के युग में उसका यह रवैया काम आने वाला नहीं है।

भारत दुर्गम हिमालयी क्षेत्र में अपने आधारभूत ढांचे को मजबूत कर रहा 

चीन इसे लेकर भी परेशान दिख रहा कि भारत दुर्गम हिमालयी क्षेत्र में अपने आधारभूत ढांचे को मजबूत कर रहा है। बीते छह साल में मोेदी सरकार ने चीन से लगती सीमा पर आधारभूत ढांचे के निर्माण में न केवल खासी तेजी दिखाई है, बल्कि यह भी साफ किया है कि यह काम उसकी प्राथमिकता में शामिल है।

चीन विश्व को बताना चाह रहा कि कोरोना को लेकर कठघरे में खड़ा होना स्वीकार नहीं 

चीन भारत के साथ अपने अन्य पड़ोसी देशों को जिस तरह तंग कर रहा उससे यही लगता है कि वह विश्व को यह बताना चाह रहा है कि कोविड-19 महामारी को लेकर वह कठघरे में खड़ा होना स्वीकार नहीं करेगा। वह भारत को तंग करके विकसित देशों को यह संदेश देना भी चाह रहा है कि इस देश में निवेश करना ठीक नहीं होगा।

दुनिया जानती है कि भारत चीन की दादागीरी पर लगाम लगा सकता है

महाशक्ति बनने के लिए बेचैन चीन यह देख रहा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का कद बढ़ रहा है और दुनिया के तमाम देश भारत को एक ऐसे देश के रूप देखने लगे हैं जो चीन की दादागीरी पर लगाम लगा सकता है।

भारत ने चीन की बीआरआइ परियोजना का खुले रूप में किया विरोध

ध्यान रहे भारत उन चंद देशों में है जिसने चीन की बीआरआइ परियोजना का खुले रूप में विरोध किया है। इसके अलावा मोदी के नेतृत्व में भारत ने जिस तरह पाकिस्तान पर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक करने के बाद जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया उससे देश की छवि एक मजबूत राष्ट्र की बनी है। वह मोदी की मजबूत नेता की छवि पर प्रहार करना चाह रहा है।

पीएम मोदी ने  अपने इरादे साफ कर दिए कि भारत अपनी एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ेगा

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि गलवन में भारत को धोखा देने के पहले उसने नेपाल को उकसाने का काम किया। तानाशाह चीन के इरादे जो भी हों, प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं कि भारत अपनी एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ेगा और हर हाल में देश के स्वाभिमान की रक्षा करेगा।

चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर सभी देश इस निर्भरता को खत्म करना चाहते हैं

आज दुनिया भर के बाजार चीन के उत्पादों से पटे पड़े हैं। इसके अलावा करीब-करीब हर देश चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर है, लेकिन अब सभी देश इस निर्भरता को खत्म करना चाहते हैं। कोरोना महामारी के बाद भारत भी ऐसा ही करना चाहता है। गलवन घाटी की घटना के बाद भारत चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करने में जुट भी गया है। वैसे इसकी कोशिश आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत पहले ही शुरू हो गई थी।

भारतीय कंपनियों को अतिरिक्त सक्रियता दिखानी होगी

अब इस अभियान को और गति देनी होगी। इसमें भारतीय कंपनियों को अतिरिक्त सक्रियता दिखानी होगी। उन्हें अपनी उत्पादकता सुधारने के साथ अपने उत्पादों की गुणवत्ता को भी विश्व स्तरीय बनाना होगा। यह समय की मांग है कि जो तमाम कच्चा माल और उपकरण भारतीय कंपनियां चीन से आयात कर रही हैं उसे खुद तैयार करने की दिशा में कदम उठाएं। हो सकता है कि शुरू में कुछ परेशानियां आएं, लेकिन चीन की दादागीरी का प्रतिकार करने के लिए उन्हें अपने को सशक्त करना ही होगा।

गलवन की घटना के बाद दोनों देशों के बीच में युद्ध की स्थिति बन सकती है, यह कहना कठिन है

फिलहाल यह कहना कठिन है कि गलवन की घटना के बाद दोनों देशों के बीच में युद्ध की स्थिति बन सकती है, फिर भी भारत को सतर्क रहना होगा, क्योंकि 1962 के युद्ध में चीन ने भारत के जिन क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था वे अभी तक उसके पास ही हैं। हालांकि चीन यह अच्छे से जानता है कि आज का भारत 1962 वाला भारत नहीं है, लेकिन उस पर भरोसा न करने में ही भला है। 

चीन के आघात के बाद देश को एकजुट होना चाहिए था, किंतु राहुल मोदी को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं

यह ठीक नहीं कि गलवन घाटी में चीन के आघात के बाद जब देश को राजनीतिक रूप से एकजुट होना और दिखना चाहिए था तब राहुल गांधी प्रधानमंत्री पर बेतुके आरोप लगाकर उन्हें कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। उनके बयानों से यह समझना कठिन है कि वह किसके हितों की आपूर्ति कर रहे हैं?

राहुल कांग्रेस की उन भूलों की याद करें जिनके चलते चीन सिरदर्द साबित हो रहा है

राहुल जिस तरह प्रधानमंत्री के खिलाफ उलटे-सीधे बयान दाग रहे हैं उससे तो यही लगता है कि वह चीन के मामले में कांग्रेस नेतृत्व की घातक भूलों को ढकने की कोशिश कर रहे हैं। अच्छा हो कि वह कांग्रेस की उन भूलों की याद करें जिनके चलते चीन सिरदर्द साबित हो रहा है। उन्हेंं इसका भी अहसास होना चाहिए कि वह सस्ती राजनीति कर रहे हैं। इसी सस्ती राजनीति का परिचय सोनिया गांधी और कुछ अन्य विपक्षी नेताओं ने सर्वदलीय बैठक में भी दिया। राहुल गांधी को यह आभास हो जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी किसी दबाव और उकसावे में आने वाले नहीं हैं। यह आभास चीन को भी हो जाए तो बेहतर।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]