संजय मिश्र। यह सच है कि विदेशी आक्रांताओं ने हमारे देश के अनेक शहरों के नाम बदलकर इतिहास के साथ छेड़खानी की। इसके साथ उन्होंने यहां की संस्कृति और परंपराओं को भी प्रभावित करने की पुरजोर कोशिश की। यह अलग बात है कि भारतीय समाज की जीवटता के कारण हमारी संस्कृति का अस्तित्व बचा रहा। कभी मुगलों ने तो कभी अंग्रेजों ने हमारे अस्तित्व को नए रंग में रंगने का प्रयास किया। इन थोपे गए नामों को बदलकर शहरों को उनकी पुरानी पहचान दिलाने का काम अब मध्य प्रदेश में भी शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समय की मांग और सियासी जरूरत को समझ चुके हैं। अब वह नाम बदलने को लेकर ताबड़तोड़ फैसले ले रहे हैं।

हाल में मुख्यमंत्री ने नर्मदा किनारे बसे होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम करने की घोषणा की थी। इसके दो दिन बाद ही जब वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में पहुंचे तो सभा में मौजूद जनसमुदाय की मांग पर तुरंत नसरुल्लागंज का नाम बदलकर भेरुंदा करने की घोषणा कर दी। इन शहरों के नाम की कहानी भी दिलचस्प है। सबसे पहले बात होशंगाबाद की। नर्मदा किनारे बसे इस शहर का नाम पहले नर्मदापुर था। इतिहासकारों के मुताबिक मांडू का सुल्तान हुशंगशाह यहां आया था। तब उसने नर्मदापुर का नाम बदलकर होशंगाबाद रख दिया था। परमारकालीन ताम्रपत्र में भी होशंगाबाद का नाम नर्मदापुर होने का उल्लेख मिलता है। 2009 में शिवराज सरकार ने जब होशंगाबाद को संभाग का दर्जा दिया तो स्थानीय लोगों की मांग पर संभाग का नाम नर्मदापुरम रख दिया, लेकिन शहर का नाम होशंगाबाद ही रहने से इसे ज्यादा पहचान नहीं मिली।

अब थोड़ी चर्चा नसरुल्लागंज की करते हैं। इस छोटे से शहर का इतिहास भी कम दिलचस्प नहीं है। इसका नाम भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्ला खान के बड़े भाई के नाम पर रखा गया था। इतिहासकार असर किदवई के मुताबिक भोपाल की नवाब सुल्तान जहां बेगम ने अपने सबसे बड़े बेटे नसरुल्ला खान को भोपाल रियासत में ही भेरुंदा नाम की जागीर दी थी। बाद में उन्हीं के नाम पर भेरुंदा का नाम नसरुल्लागंज कर दिया गया। कहा जाता है कि नसरुल्लागंज में जिस समाज का बाहुल्य था, उनके आराध्य भेरु भगवान थे, इसलिए नगर का नाम भेरुंदा रखा गया था। वैसे मध्य प्रदेश में कई अन्य शहरों के भी नाम बदलने को लेकर काफी दिनों से मांग की जा रही है। पहली मांग तो मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की ही है। राजा भोज की नगरी का नाम भोजपाल किए जाने को लेकर कई दशकों से मांग उठ रही है।

इतिहासकार भी इससे सहमत हैं कि भोपाल का नाम भोजपाल होना चाहिए। भोपाल से राजा भोज का नाम जोड़ने के लिए ही शिवराज ने कई वर्ष पहले भोजताल में राजा भोज की आदमकद प्रतिमा लगाई। गौरतलब है कि भोपाल में परमारवंशी राजाओं का शासन रहा है, जिन्होंने राजधानी के समीप भोजपुर मंदिर का भी निर्माण कराया था। इसके अलावा उज्जैन का नाम उज्जयनी करने की मांग भी की जा चुकी है। संस्कारधानी जबलपुर को भी महाकोशल के लोग जबालीपुरम का नामकरण चाहते हैं। नर्मदा तट पर बसे इस शाहर का नाम जबाली नामक एक ऋषि के नाम पर पड़ा था। बाद में यह जबलपुर में तब्दील हो गया। भाजपा के भी कई नेता कई शहरों, संस्थाओं के नाम बदलने की मांग काफी समय से कर रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भोपाल के पास स्थित हलाली डैम का नाम बदलने की मांग भी पिछले दिनों की थी। वहीं विधानसभा के सामयिक अध्यक्ष रहे रामेश्वर शर्मा ने भोपाल में ईदगाह हिल्स का नाम गुरुनानक टेकरी करने को लेकर लंबा अभियान चलाया। इसी तरह ओबेदुल्लागंज, बेगमगंज, गैरतगंज, शाहगंज, सुल्तानपुर, इस्लामपुरा सहित कई नाम ऐसे हैं जिन्हें बदलने की मांग भी उठ रही।

शिवराज की छवि एक सौम्य राजनेता की है। वे किसानों, महिलाओं और गरीबों के हितैषी के रूप में देखे जाते हैं। इसी वजह से नाम बदलने के उनके फैसलों की काफी चर्चा हो रही है। अब सरकार ने दो शहरों के नाम बदलने की घोषणा कर दी है। यह देखना होगा कि घोषणा के बाद औपचारिक प्रक्रिया को पूरी करने में सरकार कितना समय लगाती है।

[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]