मनोज झा। अयोध्या के ढांचा ध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय ने भारतीय राजनीति में राम के प्रति आग्रह और स्वीकार्यता को एक नया फलक व विस्तार प्रदान किया है। कांग्रेस समेत कई दलों ने इस बात को समझ लिया है कि राजनीतिक दृष्टि से राम का विरोध कहीं न कहीं घाटे का सौदा है। इससे भारतीय जनता पार्टी के निरंतर विस्तार को भी जोड़कर देखा जाता है। शायद यही कारण है कि मध्य प्रदेश में सवा साल के अंदर सत्ता गंवाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने तो वहां के हालिया उपचुनाव में राम के प्रति बारंबार श्रद्धा और समर्पण का सार्वजनिक प्रदर्शन किया।

इसे आप बेशक राजनीतिक विवशता कह सकते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में राम का मामला कुछ दूसरी तरह का है। भगवान से ज्यादा राम यहां के भांजे हैं। इसलिए उनके प्रति आस्था से कहीं ज्यादा नेह का भाव है। भूपेश बघेल सरकार के दो साल पूरे होने पर मुख्यमंत्री समेत राज्य मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों के चंदखुरी जाने का कार्यक्रम है। चंदखुरी राम का ननिहाल यानी माता कौशल्या का मायका है। भाजपा इसे दिखावा कह रही है तो कांग्रेस पलटवार कर रही है।

दरअसल, छत्तीसगढ़ में राम या हिंदुत्व कभी प्रबल चुनावी या राजनीतिक मुद्दा नहीं रहा है। इसलिए जब भाजपा चंदखुरी कार्यक्रम के बहाने राम के प्रति कांग्रेस की निष्ठा पर सवाल उठाती है तो जवाबी मोर्चा खुद मुख्यमंत्री भूपेश थामते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के सवालों पर भूपेश का कहना है कि भाजपा तो राम का सिर्फ राजनीतिक दोहन करती है। राम सदा-सर्वदा से छत्तीसगढ़ के प्रिय रहे हैं। राजनीति में भी राम की महत्ता को सबसे पहले हमारे नेता महात्मा गांधी ने ही रेखांकित किया था। बावजूद इसके कांग्रेस ने कभी राजनीतिक दृष्टिकोण से इसका इस्तेमाल नहीं किया।

भूपेश अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए भाजपा के चंदा संग्रह अभियान पर भी निशाना साधते हैं। नजदीक से देखें तो अपने दो साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री भूपेश ने कुछ मुद्दों पर साफ और सीधी लाइन ली है। मामला चाहे किसानों का हो या फिर राम का, उन्होंने आगे बढ़कर स्टैंड लिया है। जहां तक राम या फिर अयोध्या में मंदिर का प्रश्न है तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद उन्होंने प्रदेश में भाजपा को इस मामले में बढ़त लेने का कोई मौका नहीं दिया। अन्य प्रदेशों में जहां भाजपाइयों ने जश्न मनाया और कांग्रेस बैकफुट पर दिखी, वहीं छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने न सिर्फ अयोध्या में राममंदिर का स्वागत किया, बल्कि भूपेश स्वयं चंदखुरी गए और उसके कायाकल्प का संकल्प दोहराया।

अब भूपेश सरकार के दो साल का कार्यकाल पूरा होने पर फिर चंदखुरी में कार्यक्रम रखा गया है। इसके तहत प्रदेश में उत्तर और दक्षिण की ओर से राम वनगमन पथ पर बाइक रैली निकाली जाएगी। इसका समापन चंदखुरी में होगा। इस दौरान पूरे रास्ते रामधुन भी बजेगा। प्रथमद्रष्टया यह सब भाजपा का कार्यक्रम प्रतीत होता है। दरअसल इन आयोजनों के माध्यम से भूपेश शायद यह संदेश देना चाहते हैं कि कम से कम छत्तीसगढ़ में राम पर वह भाजपा को राजनीतिक बढ़त नहीं लेने देंगे। इस दृष्टि से राम वनगमन पथ पर बाइक रैली या चंदखुरी का कार्यक्रम सुविचारित फैसला प्रतीत होता है। मुख्यमंत्री ने इससे पहले भी राम वनगमन पथ के कायाकल्प का संकल्प प्रदर्शित कर यह संदेश देने की कोशिश की है कि उन्हें राम की सुध किसी अन्य से कहीं ज्यादा है।

पड़ोसी राज्य झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जय श्रीराम का नारा सुनकर बेशक सिरदर्द हो सकता है, लेकिन जहां तक भूपेश बघेल का सवाल है तो राम के प्रति उनका आग्रह या उद्घोष भगवा खेमे की तरह बुलंद और स्पष्ट है। और फिर सवाल सिर्फ राम का ही नहीं है। खेती-किसानी, धान और गोबर खरीदी कोरोना से मुकाबला जैसे विभिन्न मुद्दों पर उन्होंने एक स्पष्ट और निर्णायक स्टैंड लिया है। इनमें मारवाही की हालिया जीत राजनीतिक दृष्टि से ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह तो पता नहीं कि भूपेश की इस चमक और बढ़त में राम का कोई प्रताप है या नहीं, लेकिन रामचरितमानस के बालकांड में राम नाम की महिमा पर इस चौपाई का पाठ दोहराना प्रासंगिक प्रतीत होता है:

राम नाम मनिदीप धरु, जीह देहरी

द्वार। तुलसी भीतर बाहेरहुं, जौ चाहसि

उजियार।।

अर्थात यदि तू भीतर और बाहर दोनों

ओर उजाला चाहता है तो मुख रूपी द्वार

की जीभ रूपी देहरी पर राम नाम रूपी

मणि-दीपक को रख।

[राज्य संपादक, नई दुनिया, छत्तीसगढ़]