[ संजय गुप्त ]: पटना में आई भीषण बाढ़ ने जहां शहरी आधारभूत ढांचे की पोल खोल दी वहीं यह भी साफ कर दिया कि तेजी से बिगड़ता पर्यावरण गंभीर समस्याएं पैदा कर रहा है। जब बारिश और बाढ़ से पटना के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में जलप्रलय की स्थिति है तब देश के कुछ हिस्सों में सूखे जैसे हालात हैैं। पिछले एक दशक में देश-दुनिया में तमाम स्थानों पर जरूरत से ज्यादा बारिश के कारण जान-माल की व्यापक क्षति हुई है। इसी दौरान यूरोपीय देशों में गर्मी के रिकॉर्ड भी टूटे हैं।

केरल में बारिश से हुई तबाही

पिछले वर्ष केरल में बारिश से हुई तबाही को हम भूल नहीं सकते। वहां अगस्त के शुरुआती 19 दिनों में ही 758.6 मिलीमीटर बारिश हुई जो सामान्य से 164 फीसद अधिक थी। इसके चलते जो बाढ़ आई उसमें तीन सौ से अधिक लोगों की जान गई। जलवायु परिवर्तन के कारण वायुमंडल लगातार गर्म हो रहा है और इसके चलते अंटार्कटिका के साथ ग्रीनलैंड में मौजूद बर्फ की चादर तेजी से पिघल रही है।

2050 तक अधिकांश ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे

अनुमान है कि 2050 तक अधिकांश ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे। इनमें हिमालयी ग्लेशियर भी शामिल हैं। यह भारत के लिए एक बड़ी विपदा का संकेत है। हमें इसे लेकर चेतना ही होगा कि जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी असर ने भारत की दहलीज पर दस्तक दे दी है। दुखद यह है कि अब भी हमारे कार्य व्यवहार पर यथास्थितिवाद हावी दिख रहा है।

जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारक प्रदूषण

जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारक प्रदूषण के मुद्दे पर नीति निर्माताओं ने गंभीरता तो दिखाई, पर अभी उसके अपेक्षित नतीजे नहीं दिखे हैैं। इसका कारण समाज में जागरूकता की कमी है। यदि प्राकृतिक संपदा और पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारी उदासीनता दूर नहीं हुई तो भविष्य भयावह हो सकता है। चूंकि आजकल जोर लोकलुभावन नीतियों पर है इसलिए पर्यावरण की दशा सुधारने के लिए सख्त फैसले नहीं लिए जा रहे हैैं।

पराली जलाने से वायुमंडल प्रदूषित होता है

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फसलीय अवशेष यानी पराली जलाए जाने से सर्दियों के मौसम में वायुमंडल बुरी तरह प्रदूषित हो जाता है। सब इससे परिचित हैं कि पराली जलने से बड़ी मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड के साथ अन्य विषैले गैसों का उत्सर्जन होता है, लेकिन उस पर रोक नहीं लग पा रही है। पराली जलाने की समस्या आज की नहीं, दशकों पुरानी है।

राजनीति ने बांध रखे सरकार के हाथ

राजनीतिक कारणों से न तो हरियाणा सरकार ने किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए जरूरी कदम उठाना जरूरी समझा और न ही पंजाब सरकार ने। वे शुतुरमुर्गी रवैया अपनाए रहीं। जब इसके खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लोग सक्रिय हुए और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सरकारों की कळ्ंभकर्णी नींद टूटी। यदि समय रहते किसानों को पराली जलने से होने वाले खतरों से अवगत कराया जाता और आम जनता को उन सभी कारणों से परिचित कराया जाता जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं तो बेहतर होता।

नदियां दम तोड़ने की कगार पर

हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि जलवायु परिवर्तन के कारण आदिकाल से जीवनदायिनी रहीं हमारी नदियां आज दम तोड़ने की कगार पर हैैं। तमाम नदियां अब नष्टप्राय: हैैं। हिमालय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की वजह से गंगा और यमुना की सहायक जलधाराएं तेजी से सूख रही हैं। इसके लिए आम लोग भी दोषी हैं। हम जहां नदियों की पूजा करते हैं वहीं उन्हें प्रदूषित करने से भी बाज नहीं आते। आखिर प्रतिमाओं के विसर्जन के समय यह ख्याल क्यों नहीं आता कि उनमें इस्तेमाल होने वाले रसायन और अन्य हानिकारक पदार्थ नदियों को जहरीला बनाते हैैं? मुश्किल यह है कि शासन-प्रशासन धार्मिक आस्था के चलते प्रतिमाओं के विसर्जन के खिलाफ कोई कदम उठाने का साहस नहीं करता। यह अच्छा हुआ कि एनजीटी ने गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगा दी, लेकिन देखना है कि प्रशासन उस पर अमल करा पाता है या नहीं?

प्लास्टिक के खिलाफ जागरूकता अभियान

पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बीच केंद्र सरकार ने एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को ही लाल किले की प्राचीर से इसके खिलाफ मुहिम चलाने की घोषणा की थी। संयुक्त राष्ट्र के मंच से भी उन्होंने दुनिया को इस अभियान के बारे में बताते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन रोकने के मामले में बातें करने का समय निकल चुका है, अब काम करके दिखाने का समय है। प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को देखते हुए देर से सही, एक दुरुस्त फैसला लिया गया।

सिंगल यूज प्लास्टिक के चलन को रोकना है

केंद्र सरकार ने आम आदमी के रोजगार को ध्यान में रखते हुए प्लास्टिक पर प्रतिबंध जैसा कदम नहीं उठाया है। चूंकि प्लास्टिक की वस्तुओं का निर्माण छोटे-छोटे उद्योग करते हैं इसलिए उनके निर्माण पर यकायक पाबंदी लगती तो लाखों लोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ता। राज्य सरकारों को यह समझना चाहिए कि सिंगल यूज प्लास्टिक के चलन को रोकने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। क्षरणशील न होने के कारण प्लास्टिक सैकड़ों साल ज्यों का त्यों बना रहता है। इससे पानी भी दूषित होता है और मिट्टी भी।

पर्यावरण सुधारने में मदद मिलेगी

प्लास्टिक अवशेष नदियों के जरिये समुद्र तक पहुंचते हैं और उनमें मौजूद जैव विविधता को बर्बाद करते हैं। जिस माइक्रो प्लास्टिक में पेय पदार्थों या खाद्य सामग्री की पैकिंग होती है वह भी सेहत के लिए हानिकारक है। यदि हम जागरूक होकर सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद कर सकें तो हर साल नदियों, नालों और जमीन में जमा होने वाले लाखों टन प्लास्टिक कचरे से निजात मिल सकती है। स्पष्ट है कि इससे पर्यावरण सुधारने में मदद मिलेगी।

भारत भी पेरिस जलवायु समझौते में शामिल है

भारत पेरिस जलवायु समझौते में शामिल है। यह जलवायु परिवर्तन रोकने की वैश्विक पहल है। यह तभी प्रभावी होगी जब सभी देश मिलकर काम करेंगे। चिंताजनक यह है कि कई ऐसे विकसित देश अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने को तैयार नहीं जो कहीं अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं।

पेरिस समझौते से बाहर हुआ अमेरिका

जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए 2015 में हुए पेरिस समझौते को अपने लिए अनुचित बताते हुए अमेरिका इससे बाहर हो गया। इसके तहत विकसित देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के साथ विकासशील देशों को तकनीकी एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी थी ताकि वे अपना विकास रोके बगैर जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम करने में सहायक बन सकें। अमेरिका के इस समझौते से बाहर हो जाने के कारण पेरिस में जो लक्ष्य तय किए गए थे उन्हें हासिल करना मुश्किल हो रहा है।

भारत पेरिस समझौते पर अमल के लिए प्रतिबद्ध है

चूंकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पेरिस समझौते पर अमल के लिए प्रतिबद्ध हैैं इसलिए दुनिया भर में उनकी सराहना हो रही है। उन्होंने सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ जिस जन आंदोलन छेड़ने की बात कही उसमें समाज के हर तबके को शामिल होने की जरूरत है। वास्तव में यह बुनियादी बात सभी को समझनी ही होगी कि पर्यावरण संरक्षण केवल शासन-प्रशासन का काम नहीं, इसमें तो हर व्यक्ति का योगदान चाहिए। बेहतर होगा कि इस मामले में आम आदमी से लेकर उद्योगपति तक अपने महती दायित्व को समझें।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]